समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में आज भी होगी सुनवाई

समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में आज भी होगी सुनवाई

Bhaskar Hindi
Update: 2018-07-10 02:26 GMT
समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में आज भी होगी सुनवाई
हाईलाइट
  • पांच जजों की खंडपीठ करेगी मामले की सुनवाई
  • मुंबई के संगठन हमसफर ने दायर की थी याचिका
  • समलैंगिकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 पर सुनवाई आज

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। समलैंगिकता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 को अंसवैधानिक करार देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में कल मंगलवार को सुनवाई हुई थी। यह अब आज भी जारी रहेगी।अरविंद दातार ने कहा कि समलैंगिकता बीमारी नहीं है। यौन रुझान और लैंगिक पहचान दोनों समान रूप से किसी की प्राकृतिक प्रवृत्ति के तथ्य हैं। अरविंद दातार ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति का यौन रुझान अलग है तो इसे अपराध नहीं कहा जा सकता। इसे प्रकृति के खिलाफ नहीं कहा जा सकता। दातार ने अदालत से कहा कि अगर यह कानून आज लागू किया जाता तो यह संवैधानिक तौर पर सही नहीं होता।

इस पर कोर्ट ने उनसे कहा है कि आप हमें भरोसा दिलाइए कि अगर आज की तारीख में कोई ऐसा कानून बनाया जाता है तो यह स्थायी नहीं होगा। बेंच में इकलौती जज इंदु मल्होत्रा ने कहा कि समलैंगिकता केवल पुरुषों में ही नहीं जानवरों में भी देखने को मिलती है। वह दातार के समलैंगिता को सामान्य और अहिंसक बताने और मानवीय यौनिकता का एक रूप बताने पर टिप्पणी कर रही थीं। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में दोबारा शामिल करने के फैसले को चुनौती वाली याचिकाओं पर सुनवाई स्थगित करने की केंद्र की मांग को ठुकरा दिया गया था।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने इस मामले पर सुनवाई टालने से इनकार कर दिया था। जजों ने कहा था कि इसे स्थगित नहीं किया जाएगा। आज फिर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले में सुनवाई कर रही है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि सुनवाई टाली नहीं जाएगी। साल 2009 में अपने एक फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि, आपसी सहमति से समलैंगिकों के बीच बने यौन संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं होंगे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को दरकिनार करते हुए समलैंगिक यौन संबंधों को आईपीसी की धारा 377 के तहत ‘अवैध’ घोषित कर दिया था। 

गौरतलब है कि मुंबई के सरकारी संगठन हमसफर ट्रस्ट की याचिका के साथ ही समलैंगिकता के मुद्दे पर सुनील मेहरा, अमन नाथ, रितू डालमिया, नवतेज सिंह जौहर और आयशा कपूर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर समलैंगिकों के संबंध बनाने पर IPC 377 के कार्रवाई के अपने फैसले पर विचार करने की मांग की थी। सभी का कहना था कि इसकी वजह से वो डर में जी रहे हैं और यहां उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है। साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक वयस्कों के बीच संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के दिल्ली हाईकोर्ट के 2009 के फैसले को रद्द कर दिया था।

जब दो ऐसे व्यक्ति पुरूष या महिला आपस में यौन संबंध बनाते हैं तो उसे समलैंगिकता की श्रेणी में माना जाता है। IPC की धारा 377 के तहत कोई व्यस्क स्वेच्छा से किसी पुरुष, या महिला के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है तो, उसे अधिकतम उम्र कैद या कम से कम दस साल की सजा के साथ जुर्माना के लिए दंडित किया जाएगा। 

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