समलैंगिकता अपराध नहीं लेकिन SAME SEX मैरिज अप्राकृतिक है - RSS

समलैंगिकता अपराध नहीं लेकिन SAME SEX मैरिज अप्राकृतिक है - RSS

Bhaskar Hindi
Update: 2018-09-06 12:30 GMT
समलैंगिकता अपराध नहीं लेकिन SAME SEX मैरिज अप्राकृतिक है - RSS
हाईलाइट
  • ये संबंध प्राकृतिक नहीं होते इसलिए हम इस तरह के संबंध का समर्थन नहीं करते।
  • RSS ने कहा कि समलैंगिकता अपराध नहीं हैं
  • लेकिन सेम सेक्स मैरिज का समर्थन भी नहीं करते हैं
  • क्योंकि यह प्राकृतिक नहीं है।
  • इस विषय पर चर्चा की जानी चाहिए और सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर इस विषय को निपटाया जाना चाहिए।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय के धारा 377 को लेकर दिए फैसले के बाद, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) ने गुरुवार को कहा कि वह समलैंगिकता को अपराध नहीं मानते, लेकिन SAME SEX मैरिज का समर्थन भी नहीं करते हैं, क्योंकि यह प्राकृतिक नहीं है। आरएसएस की अखिल भारतीय प्रचार समिति के प्रमुख अरुण कुमार ने कहा, ये संबंध प्राकृतिक नहीं होते इसलिए हम इस तरह के संबंध का समर्थन नहीं करते। भारतीय समाज परंपरागत रूप से इस तरह के संबंधों को पहचान नहीं पाता है। मनुष्य आमतौर पर अनुभवों से सीखते हैं, इसलिए इस विषय पर चर्चा की जानी चाहिए और सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर इस विषय को निपटाया जाना चाहिए।

बता दें कि देशभर में सुप्रीम कोर्ट के धारा 377 पर फैसले को एक आजादी के रूप में स्वीकार किया जा रहा है। गुरुवार को इस मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली शीर्ष अदालत की संवैधानिक पीठ ने कहा कि LGBT कम्युनिटी को भी किसी आम नागरिक की तरह अधिकार हैं। एक दूसरे के अधिकारों का सम्मान करें, यही सर्वोच्च मानवता हैं। समलैंगिक सेक्स को आपराधिक कहना तर्कहीन है। दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने को SC की पीठ ने खारिज कर दिया। खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि आईपीसी की धारा 377 के अन्य पहलुओं में जानवरों और बच्चों के साथ यौन संबंध बनाना पहले की तरह अपराध की श्रेणी में आएगा।

यहां हम आपको यह भी बता दें कि आईपीसी की धारा 377 में कहा गया था कि,"अगर कोई भी इंसान स्वेच्छा से किसी भी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति के आदेश के खिलाफ शारीरिक संबंध बनाता है, उसे दंड के रूप में 10 साल की सजा भुगतनी पड़ सकती है। दोषी पर  जेल के साथ-साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यह कानून सबसे पहले 1861 में ब्रिटिश शासन के दौरान आया था। अब इस धारा को खत्म कर दिया गया है।

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