भारत में डॉक्टर्स के पास मरीज के लिए 2 मिनट से ज्यादा का समय नहीं

भारत में डॉक्टर्स के पास मरीज के लिए 2 मिनट से ज्यादा का समय नहीं

Bhaskar Hindi
Update: 2017-11-09 07:03 GMT
भारत में डॉक्टर्स के पास मरीज के लिए 2 मिनट से ज्यादा का समय नहीं

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत के अस्पतालों की क्या हालात हैं इस बात से तो सभी लोग वाकिफ हैं। लेकिन मेडिकल कंसल्टेशन पर हुए सबसे बड़े इंटरनैशनल रिसर्च में यह पता चला है कि भारत के डॉक्टर्स मरीजों को सिर्फ दो मिनट का वक्त देते हैं। बता दें कि बंग्लादेश और पाकिस्तान की हालत तो और खराब है, यहां तो डाक्टर्स से कंसल्टिंग टाइम केवल 48 सेकंड से 1.3 मिनट ही है। 

गौरतलब है कि यह रिसर्च गुरुवार को मेडिकल जर्नल बीएमजे ओपन में छपी थी। भारत की हालत के विपरीत वहीं स्वीडन, यूएस और नॉर्वे जैसे देशों में कंसल्टेशन का एवरेज समय 20 मिनट है। जिसके सामने भारत कहीं नहीं टिकता है। यह रिसर्च यूके के कई अस्पतालों के रिसर्चस मिलकर की थी। जर्नल में लिखा है कि, "यह चिंता की बात है कि 18 ऐसे देश जहां की दुनिया की 50 फीसदी जनसंख्या रहती है यहां का औसत कंसल्टेशन टाइम 5 या इससे भी कम मिनट निकला है। जो बहुत ही चिन्ता की बात है। 

डाक्टर्स का मरीजों को इतना कम समय देना मरीजों के लिए तो चिंता की बात है ही साथ में फिजिशन के वर्कलोड और उसके स्ट्रेस को भी प्रभावित करता है। स्टडी के मुताबिक, मरीज ज्यादा वक्त या तो मेडिकल स्टोर में या ऐंटीबायॉटिक दवाएं खाकर काट रहे हैं साथ ही डॉक्टर्स से मरीजों के रिश्ते भी उतने फैंडली नहीं हैं जितने होने चाहिए। कंसल्टेशन का समय कम होने का मतलब है कि हेल्थकेयर सिस्टम में ज्यादा बड़ी समस्या। भारत की जनसंख्या को देखते हुए यह बात और गंभीर हो जाती है। ये रिसर्च भारत के अस्पतालों में भीड़ और प्राइमरी केयर फिजिशन की कमी को दर्शाती है। प्राइमरी केयर डॉक्टर कंसल्टेंट्स से अलग होते हैं जो कि मेडिसिन की खास ब्रांच में ट्रेनिंग पाए होते हैं। 

 

भारत में कंसल्टेशन को दो मिनट का वक्त मिलने वाली बात से किसी को भी हैरानी नहीं हुई। हेल्थ कंमेंटेटर रवि दुग्गल का कहना है, "यह बात सभी को पता है कि अस्पतालों में भीड़भाड़ के चलते डॉक्टर मरीजों को कम वक्त दे पाते हैं।" 

सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में भी डॉक्टर भीड़ के चलते एक साथ दो-तीन मरीजों को बैठा लेते हैं। डॉ दुग्गल के मुताबिक, "कोई नई बात नहीं है कि डॉक्टर मरीजों के लक्षणों में भ्रमित हो जाएं।" वहीं प्राइवेट क्लीनिक और अस्पतालों में भी भीड़ का यही हाल है। यहां डॉक्टर सिर्फ लक्षण पूछते हैं और बहुत कम ही शारीरिक परीक्षण कर पाते हैं। 
 

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