HC ने पलटा 42 साल पुराना फैसला, सुनवाई के लिए दोबारा नोटिस भेजना जरूरी नहीं

HC ने पलटा 42 साल पुराना फैसला, सुनवाई के लिए दोबारा नोटिस भेजना जरूरी नहीं

Bhaskar Hindi
Update: 2018-03-20 05:56 GMT
HC ने पलटा 42 साल पुराना फैसला, सुनवाई के लिए दोबारा नोटिस भेजना जरूरी नहीं

डिजिटल डेस्क, जबलपुर। एक अहम फैसले में जबलपुर हाईकोर्ट ने दो जजों की बैंच द्वारा 42 साल पुराना फैसला पलट दिया है। उक्त फैसले में दो जजों की बैंच ने कहा था कि मुकदमे की कार्रवाई शुरु होने के दौरान पक्षकारों को पहले नोटिस जारी करना जरूरी है। चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बैंच ने उस फैसले को गलत करार देते हुए कहा है कि एक बार जब पक्षकारों ने कोर्ट में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी हो, तो उन्हें फिर से नोटिस जारी करना कानूनन उचित नहीं है।
 

लार्जर बैंच ने यह फैसला महर्षि विद्या मंदिर सागर की प्राचार्य की ओर से वर्ष 2017 में दायर अपील पर दिया। वैसे यह मामला हाईकोर्ट की एकलपीठ द्वारा 12 जनवरी 2017 को दिए फैसले को चुनौती देकर दायर किया गया था। विगत 19 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान अपील पर सुनवाई के दौरान युगलपीठ के सामने भगवान दास विरुद्ध राधेश्याम गुप्ता व अन्य के मामले पर हाईकोर्ट की युगलपीठ का 8 मार्च 1976 को दिया फैसला बतौर उदाहरण रखा गया। उक्त फैसले में माना गया था कि सुनवाई के पहले पक्षकारों को नोटिस देना जरूरी है, ताकि वे अपना पक्ष पेशी के दौरान रख सकें। युगलपीठ ने उक्त फैसले पर असहमति जताते हुए यह मामला लार्जर बैंच को भेजा था, ताकि मप्र औद्योगिक विवाद नियम 1957 की धारा 10ए व 10वी के प्रावधानों के मुताबिक यह तय हो सके कि लेबर कोर्ट को कब नोटिस जारी करना चाहिए? 


चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता, जस्टिस विजय कुमार शुक्ला और जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की लार्जर बैंच के सामने हुई सुनवाई के दौरान आवेदक की ओर से अधिवक्ता रजनीश गुप्ता और राज्य सरकार की ओर से शासकीय अधिवक्ता अमित सेठ ने अपनी दलीलें रखीं। सुनवाई के बाद लार्जर बैंच ने हाईकोर्ट की युगलपीठ का 42 साल पुराना फैसला पलटते हुए कहा कि मुकदमें की पेशी का नोटिस एक बार ही दिया जाना चाहिए। जब किसी मामले में पक्षकार के हाजिर हो जाने पर नोटिस देना जरूरी नहीं रह जाता।

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