नरसंहार के मामलों से निपटने के लिए अलग और मजबूत कानून की जरूरत- दिल्ली हाईकोर्ट

नरसंहार के मामलों से निपटने के लिए अलग और मजबूत कानून की जरूरत- दिल्ली हाईकोर्ट

Bhaskar Hindi
Update: 2018-12-18 03:38 GMT
नरसंहार के मामलों से निपटने के लिए अलग और मजबूत कानून की जरूरत- दिल्ली हाईकोर्ट
हाईलाइट
  • नरसंहार मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट ने जताई चिंता
  • न्यायाधीश एस. मुरलीधर ने कहा ऐसे मामलों के लिए अलग कानून की जरूरत

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मानवता के खिलाफ अपराध और नरसंहार जैसे मामलों से निपटने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने अलग से कानून बनाने की बात कही है। सिख विरोधी दंगे के मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को हाईकोर्ट ने सजा सुनाते हुए कहा कि आज की तारीख में नरसंहार जैसे मामलों में एक सख्त कानून की जरूरत है। कोर्ट ने कहा, कानून में लूपहोल के चलते ऐसे नरसंहार के अपराधी केस चलने और सजा मिलने से बच निकलते हैं। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए देश के लीगल सिस्टम को मजबूत किए जाने की जरूरत है ताकि मानवता के खिलाफ अपराध के मामलों में बिना समय गंवाए केस बढ़ाया जा सके। 

न्यायाधीश एस. मुरलीधर ने कहा ऐसे मामलों के लिए अलग से कोई कानूनी एजेंसी न होने का ही अपराधियों को फायदा मिला और वे लंबे समय तक बचे रहे। ऐसे मामलों को मास क्राइम के बड़े परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए। इसके लिए अलग ही अप्रोच की जरूरत है। बेंच ने कहा कि सिख दंगों में दिल्ली में 2,733 लोगों और पूरे देश में 3,350 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। मास क्राइम का न तो यह पहला मामला था और न ही यह आखिरी था।

सज्जन कुमार के मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने मुंबई में 1993 के दंगों, 2002 के गुजरात दंगों, ओडिशा के कंधमाल में 2008 को हुई हिंसा और मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए दंगे का जिक्र किया। कोर्ट कहा कि ये कुछ उदाहरण हैं, जहां अल्पसंख्यकों को टारगेट किया गया। चाहे वह किसी भी धर्म के रहे हों। ऐसे मामलों को अंजाम देने में सक्रिय रहे राजनीतिक तत्वों को कानून लागू कराने वाली एजेंसियों की ओर से संरक्षण देने का काम किया गया। 

 

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