अब स्मार्ट सिटी की तर्ज पर विकसित होंगे 2000 मिलिट्री स्टेशन्स, सेना होगी तकनीकों से लैस 

अब स्मार्ट सिटी की तर्ज पर विकसित होंगे 2000 मिलिट्री स्टेशन्स, सेना होगी तकनीकों से लैस 

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-22 12:47 GMT
अब स्मार्ट सिटी की तर्ज पर विकसित होंगे 2000 मिलिट्री स्टेशन्स, सेना होगी तकनीकों से लैस 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश की सैन्य छावनियों की हालत तो अपने देखी ही होगी। सरकार अब इन्हें स्मार्ट सिटी की तर्ज पर विकसित करने की योजना बना रही है। हालांकि देश में अभी तक स्मार्ट सिटी का काम ही ठीक से पूरा नहीं हुआ है। सेना देश में 2,000 मिलिट्री स्टेशन्स को स्मार्ट सिटी की तरह ही बनाने के प्लान को अंतिम रूप देने में जुटी है। एक सीनियर सैन्य अधिकारी ने बताया, "हम सैन्य छावनियों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करना चाहते हैं, जिसमें हरेक लेटेस्ट फेसिलिटी दी जाएगी। नवीनतम तकनीकी से लैस आईटी नेटवर्क इसकी मुख्य विशेषता होगी।

सैन्य अधिकारियों के अनुसार, बताया कि पायलट प्रॉजेक्ट के लिए 58 छावनियों की पहचान कर ली गई है। बताया जा रहा है कि इस प्रॉजेक्ट में देश के मिलिट्री स्टेशन्स को शामिल किया जाएगा। हाल ही में कमांडर्स कॉन्फ्रेंस के दौरान वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने प्रॉजेक्ट पर काफी विचार-विमर्श किया। बता दें कि यह कदम आर्मी के उस आधुनिकीकरण अभियान का पार्ट है, जिसमें देशभर के सभी सैन्य स्टेशनों के इन्फ्रास्ट्रक्चर को और बेहतर और सुरक्षित करने की प्लानिंग की गई है।


बता दें कि मनोहर पार्रिकर के कार्यकाल में रक्षा मंत्रालय ने लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) डीबी शेकतकर की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक कमिटी बनाई थी। जिसके संबंध में पिछले साल ही रिपोर्ट भेज दी गई थी। इस रिपोर्ट में आर्म्ड फोर्स की जंगी क्षमता बढ़ाने और रक्षा खर्चों को बैलेंस करने के बारे में ब्योरा है। एक सैन्य अधिकारी ने कहा कि सेना ले. जनरल (रिटायर्ड) डी.बी शेकतकर कमिटी की सिफारिशों पर भी आगे बढ़ रही है, जिसमें 57,000 अधिकारियों और अन्य रैंक के सैनिकों की नए सिरे से तैनाती शामिल है। 


जानकारी के अनुसार, रक्षा मंत्रालय ने कमिटी की 99 सिफारिशों को सशस्त्र बलों के पास भेजा, ताकि इन पर काम शुरू किया जा सके। रक्षा मंत्री रहते हुए अरुण जेटली ने पहले चरण में इनमें से 65 सिफारिशों को मंजूरी दी थी। साथ ही 31 दिसंबर तक इनको पूरा किए जाने की बात भी कहीं।  
 

हालांकि, कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति ने 39 फार्मों को समयबद्ध तरीके से बंद करने का फैसला पहले ही ले लिया है। इनमें करीब 25 हजार पशुओं का पालन किया जा रहा था। बता दें कि करीब 130 साल पहले अंग्रेजी शासन काल में इस तरह के फार्मों की शुरुआत हुई थी, जब बाजार में दूध की कमी हो गई थी। सूत्रों के अनुसार, इसमें सेना से रिटायर हुए लोगों को काम पर लगाया जाएगा।
 

Similar News