बंगाल के 'पोल्टू' से भारत के राष्ट्रपति बनने तक का सफर...

बंगाल के 'पोल्टू' से भारत के राष्ट्रपति बनने तक का सफर...

Bhaskar Hindi
Update: 2017-12-11 05:43 GMT
बंगाल के 'पोल्टू' से भारत के राष्ट्रपति बनने तक का सफर...

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत के 13वें राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी सोमवार को 82 साल के हो गए हैं। 11 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के वीरभूम के मिराती गांव में जन्मे प्रणब मुखर्जी का राजनैतिक करियर 1969 में शुरू हुआ था। उनको कांग्रेस का "संकटमोचक" भी कहा जाता था । राष्ट्रपति के साथ-साथ प्रणब मुखर्जी कांग्रेस सरकार में फाइनेंस मिनिस्टर भी रह चुके हैं। प्रणब दा बेहद ही सहज और सरल स्वभाव के हैं। यही वजह है कि उनके विरोधी भी उन्हें काफी पसंद करते हैं। उनके जन्मदिन के मौके पर उनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में आप शायद ही जानते होंगे।

 

बचपन में पोल्टू कहकर बुलाते थे लोग

इस बात को बहुत ही कम लोग जानते हैंं कि भारत के राष्ट्रपति रह चुके प्रणब मुखर्जी को बचपन में लोग "पोल्टू" नाम से बुलाते थे। बताया जाता है कि प्रणब के पिता और उनकी बड़ी बहन अन्नपूर्णा देवी ने उनका ये नाम रखा था। कहा जाता है कि बंगाल में हमेशा से लोगों को उनके उपनाम से ही बुलाया जाता है। यही कारण है कि प्रणब दा को भी पोल्टू कहकर बुलाया जाने लगा। नंगे पैर स्कूल जाने वाला ये पोल्टू कभी देश का राष्ट्रपति बनेगा, इस बारे में शायद ही किसी ने कभी सोचा हो।


बचपन से ही जिद्दी हैं प्रणब दा

प्रणब मुखर्जी बचपन से ही बेहद जिद्दी रहे हैं। प्रणब दा का जन्म वीरभूम के मिराती गांव में हुआ था और उनकी पढ़ाई भी इसी स्कूल से शुरू हुई थी। बचपन में प्रणब दा जब दूसरी क्लास में पढ़ते थे, तो उन्होंने किरनाहर के स्कूल में पढ़ने की इच्छा जताई, लेकिन ये स्कूल 5वीं क्लास से ही था और प्रणब दूसरी क्लास में पढ़ते थे। ऐसे में किरनाहर के स्कूल में पढ़ने के लिए प्रणब को टेस्ट देना पड़ा और उन्होंने इस टेस्ट को पास किया और 5वीं क्लास में एडमिशन ले लिया।

हमेशा से था राष्ट्रपति बनने का सपना

बताया जाता है कि जब प्रणब मुखर्जी पहली बार 1969 में कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा मेंबर बने तो उनका घर राष्ट्रपति भवन के पास ही था। वो हमेशा से राष्ट्रपति भवन को निहारा करते थे और उसके ठाठ-बाठ देखते रहते थे। कहा जाता है कि एक बार प्रणब ने जब राष्ट्रपति की घोड़े वाली बग्गी को देखा तो उन्होंने अपनी बहन अन्नपूर्णा से कहा कि "इस आलीशान राष्ट्रपति भवन का आनंद उठाने के लिए वो अगले जन्म में घोड़ा बनना पसंद करेंगे।" इसपर उनकी बहन ने जवाब दिया कि "तुम्हें इसके लिए अगले जन्म तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा, बल्कि इसी जन्म में तुम्हें इसमें रहने का मौका मिलेगा।



कांग्रेस के संटमोचक रहे हैं प्रणब

प्रणब मुखर्जी सबसे पहली बार 1969 में कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा मेंबर बने। इससे पहले उन्होंने पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में हुए उपचुनावों में इंडिपिंडेंट कैंडिडेट वीके मेनन के लिए इलेक्शन कैंपेन किया। इसी दौरान तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नजर उनपर पड़ी और उन्हें कांग्रेस में शामिल किया गया। कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने कई बड़े पद संभाले। इसके बाद इंदिरा गांधी ने उन्हें 1969 में कांग्रेस की टिकट पर राज्यसभा भेजा और 1973 में उन्हें कैबिनेट में शामिल किया गया। इसके बाद से ही प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस के लिए "संकटमोचक" के तौर पर काम किया।



कांग्रेस ने किया नजरअंदाज

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस में नजरअंदाज कर दिया गया। बताया जाता है कि इंदिरा की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी राजीव की जगह खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत ने और पार्टी ने उनका साथ नहीं दिया और राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया। इसके बाद नाराज होकर प्रणब ने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस पार्टी बनाई। हालांकि, राजीव गांधी की मौत के बाद पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में प्रणब मुखर्जी की किस्मत फिर चमकी और 1991 में उन्हें योजना आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद 1995 में उन्हें फॉरेन मिनिस्टर बनाया गया।



जब प्रणब पर लगे आरोप

1975 से 1977 के बीच इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में इमरजेंसी की लगा दी। इसके बाद पूरे देश में कांग्रेस का विरोध शुरू हो गया। इसी दौरान कांग्रेस के बाकी नेताओं की तरह ही प्रणब मुखर्जी पर भी दमन करने के आरोप लगे। देश में प्रणब मुखर्जी का भी विरोध शुरू हो गया, हालांकि इन विरोधों से न ही कांग्रेस को कोई फर्क पड़ा और न ही प्रणब मुखर्जी को। इसके बाद प्रणब मुखर्जी को पहली बार फॉरेन मिनिस्टर बनाया गया। प्रणब पहली बार 1982 से लेकर 1984 तक विदेश मंत्री रहे। इसके साथ ही वो 1980 से लेकर 1985 तक राज्यसभा में सदन के नेता भी रहे।



13 नंबर से रहा है खास नाता

प्रणब मुखर्जी का हमेशा से 13 नंबर से एक खास नाता रहा है। प्रतिभा पाटिल के बाद प्रणब मुखर्जी ने भारत के 13वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। इसके अलावा दिल्ली में उनके बंगले का नंबर भी 13 ही है। इसके साथ-साथ उनकी शादी की सालगिरह भी 13 को ही आती है। प्रणब दा ने 13 जुलाई 1957 को सुवरा से शादी की थी। इतना ही नहीं, ममता बैनर्जी ने भी 13 जून को ही प्रणब दा का नाम राष्ट्रपति पद के लिए उछाला था। 

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