#YearEnder : 2017 की वो बातें, जो बीजेपी-कांग्रेस को रहेगी हमेशा याद

#YearEnder : 2017 की वो बातें, जो बीजेपी-कांग्रेस को रहेगी हमेशा याद

Bhaskar Hindi
Update: 2017-12-26 07:28 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। साल 2017 खत्म होने को है और कुछ ही दिनों में 2018 शुरू हो जाएगा। भारतीय राजनीति के लिए साल 2017 बहुत बड़ा रहा। इस साल जहां बीजेपी ने कई राज्यों में अपनी सरकार बनाई, वहां कांग्रेस में राहुल राज की शुरुआत हुई। इस साल की शुरुआत उत्तरप्रदेश समेत 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव से हुई, तो खत्म गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों पर हुआ। एक तरफ उत्तरप्रदेश में जहां पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र (वाराणसी) है, तो वहीं दूसरी तरफ गुजरात उनका गृह राज्य है। इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी को कामयाबी मिली और इसका क्रेडिट भी पीएम मोदी को ही मिला। इसके अलावा भी इस साल कई ऐसी बड़ी राजनीति घटनाएं हुई है, जिन्हें काफी लंबे समय तक याद किया जाएगा।


उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार

साल 2017 की शुरुआत में उत्तरप्रदेश समेत 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया गया। इसमें यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर थे। इन 5 राज्यों में से 4 में बीजेपी ने अपनी सरकार बनाई, तो कांग्रेस पंजाब में वापसी करने में कामयाब रही। मणिपुर और गोवा को छोड़ दिया जाए, तो यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी ने अपने दम पर सरकार बनाई। इसमें सबसे ज्यादा खास उत्तरप्रदेश की जीत रही, क्योंकि यहां पर बीजेपी ने जो कर दिखाया, वो आजतक कभी नहीं हुआ। यूपी में जब चुनाव अभियान शुरू हुआ, तो उम्मीद जताई जा रही थी कि बीजेपी शायद ही अपने बूते पर सरकार बना पाए, लेकिन जब चुनावी रिजल्ट आए, तो चौंकाने वाले थे। बीजेपी ने राज्य की 403 सीटों में से 325 सीटें जीती, यानी कि बहुमत के आंकड़े से भी लगभग 100 सीटें ज्यादा। बीजेपी की इस जीत ने पंजाब हार को दबा दिया। इस चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 54 सीटों पर तो बीएसपी 19 सीटों पर सिमट कर रह गई। उत्तरप्रदेश के चुनावों में पीएम मोदी ने कई रोड शो किए, रैलियां की और इसी का नतीजा था कि पार्टी ने 325 सीटों के साथ वापसी की। उत्तरप्रदेश में पहली बार किसी पार्टी ने इतनी सीटें जीती थी।



योगी आदित्यनाथ बने सीएम

उत्तरप्रदेश का चुनाव बीजेपी ने पीएम मोदी को आगे करके ही लड़ा। राज्य में इतनी बड़ी जीत होने के बाद सबसे बड़ी दिक्कत मुख्यमंत्री उम्मीदवार को लेकर हो रही थी। उस वक्त मोदी ने योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाकर सबको चौंका दिया था। योगी आदित्यनाथ हिंदूवादी नेता माने जाते हैं और राज्य में मुस्लिमों की आबादी भी ज्यादा है। ऐसे में आशंका जताई गई कि योगी के सीएम बनने के बाद अल्पसंख्यकों को नजरअंदाज किया जाएगा। राज्य में हिंसा भड़कने की भी आशंका थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। सीएम बनते ही योगी ने कई बड़े फैसले ले लिए और कई महीनों तक उनके कामों की चर्चा मीडिया में रही। योगी को सीएम बनाने के पीछे मतलब निकाला गया कि बीजेपी आगे की राजनीति हिंदुत्व के आधार पर ही लड़ेगी। इसके बाद से ही योगी आदित्यनाथ बीजेपी के स्टार प्रचारक बन गए और गुजरात में भी उन्हें स्टार प्रचारक बनाया गया।



नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी

सितंबर 2013 में जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया, तो नीतीश कुमार बीजेपी से नाराज होकर एनडीए से अलग हो गए। इसके बाद नीतीश कुमार ने 2015 में बिहार विधानसभा का चुनाव भी एनडीए से अलग होकर, लेकिन लालू के साथ मिलकर लड़ा। इसका नतीजा ये रहा कि बिहार में बीजेपी चुनाव हार गई और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद जुलाई 2016 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव से गठबंधन तोड़ दिया और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई। नीतीश कुमार 3 साल बाद फिर से एनडीए में शामिल हुए और बीजेपी के समर्थन से राज्य में सरकार बनाई। सुशील मोदी राज्य में डिप्टी सीएम बने। दरअसल, नीतीश ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव पर करप्शन के आरोप लगे। विपक्ष ने तेजस्वी के इस्तीफे की मांग की, लेकिन उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया। इसके बाद नीतीश ने चाल चलते हुए खुद ही सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। लालू प्रसाद यादव के साथ रहने से नीतीश कुमार की "सुशासन बाबू" वाली इमेज को भी नुकसान पहुंच रहा था, जिसको बनाए रखने के लिए नीतीश ने लालू से अलग होना ही बेहतर समझा।



सोनिया का जाना, राहुल का जाना

राहुल गांधी का कांग्रेस प्रेसिडेंट बनना, इस साल की सबसे बड़ी राजनैतिक घटना है, जिसे काफी लंबे समय तक याद रखा जाएगा। करीब 19 सालों तक कांग्रेस की कमान संभालने वाली सोनिया गांधी ने पार्टी की बागडोर अपने बेटे राहुल गांधी को सौंप दी। राहुल गांधी 16 दिसंबर 2017 को औपचारिक रुप से पार्टी की कमान संभाली। इसी के साथ सोनिया गांधी ने भी अपने रिटायरमेंट का ऐलान कर दिया। सोनिया गांधी 1998 से कांग्रेस प्रेसिडेंट थी और करीब 19 सालों तक इस पद पर रही। राहुल गांधी को ऐसे वक्त में कांग्रेस की कमान सौंपी गई है, जब पार्टी अपने सबसे खराब दौर में है और सिर्फ 4 राज्यों में उसकी सरकार है। ऐसे में राहुल के पास कांग्रेस को फिर से खड़ा करने की जिम्मेदारी है। हालांकि, जब सोनिया गांधी अध्यक्ष बनीं थीं, तब भी पार्टी के हालात कुछ इसी तरह थे, लेकिन सोनिया ने 2004 में पार्टी की वापसी कराई। इसके बाद पार्टी 10 सालों तक सत्ता में रही। हालांकि, सोनिया गांधी के पार्टी नेताओं के साथ-साथ दूसरी पार्टी के नेताओं से भी अच्छी ट्यूनिंग थी। इस मामले में राहुल अपनी मां से पीछे हैं। इसके दो कारण हैं, पहला तो ये राहुल युवा हैं, ऐसे में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में उनको लेकर नाराजगी है। दूसरा कारण ये कि राहुल अभी उतने मैच्योर नहीं है कि वरिष्ठ नेता राहुल के साथ तालमेल बैठा सकें। ऐसे में राहुल को अभी पार्टी नेताओं का भरोसा जीतने के लिए काफी समय लगेगा। 132 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के राहुल 87वें प्रेसिडेंट हैं और नेहरू-गांधी परिवार से इस पद को संभालने वाले 6वें शख्स हैं। राजनीति में जब-जब 2017 की बात होगी, इन तीनों घटनाओं को जरूर याद किया जाएगा। 

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