क्या अब जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ तेज होगा एक्शन?
क्या अब जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ तेज होगा एक्शन?
डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। जम्मू कश्मीर में सरकार गिरने के बाद गवर्नर रूल लगाने की तैयारियां की जा रही है। जिस तरह से राज्य में बीते दिनों आतंकी घटनाएं बढ़ी है उसे ही गठबंधन टूटने की वजह माना जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राज्यपाल शासन लागू होने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं में कमी आएगी? क्या आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशंस में तेजी आएगी? जानकारों की राय में इसका जवाब हां है। राज्य में राज्यपाल शासन लगने के बाद आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशंस और पत्थरबाजों पर कार्रवाई में तेजी लाई जा सकती है। वहीं एक सवाल ये भी है कि क्या गठबंधन तोड़ना जम्मू-कश्मीर के भविष्य को लेकर बड़े फैसले लेने की तैयारी है?
घाटी में लगातार बिगड़ रहे हालात
जम्मू कश्मीर के हालातों पर नजर डाले तो बीते दिनों में आतंकी घटनाओं में इजाफा देखा गया है। रमजान के दौरान कश्मीर घाटी में शांति भरा माहोल बना रहे इसके लिए वहां की सीएम महबूबा मुफ्ती ने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी थी और कहा था कि रमजान के दौरान सेना आतंकियों के खिलाफ किसी तरह का ऑपरेशन न चलाए। केंद्र सरकार ने महबूबा मुफ्ती की बात को मानते हुए घाटी में रमजान के दौरान आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशंस पर रोक लगा थी, लेकिन इसके बावजूद घाटी में आतंकी घटनाएं कम होने की जगह बढ़ गई। रमजान के दौरान आतंकियों ने कई ग्रेनेड हमलों को अंजाम दिया। वहीं राइजिंग कश्मीर के एडिटर शुजात बुखारी की भी आतंकियों ने हत्या कर दी। कई जवान भी इस दौरान आतंकी के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए। माना जा रहा है कि कश्मीर के ऐसे हालातों को देखते हुए ही बीजेपी ने अपना समर्थन वापस ले लिया है।
आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशंस में आएगी तेजी
एक्सपर्ट्स कहते है कि अब राज्यपाल शासन लगने के बाद आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई में तेजी लाई जा सकेगी। कश्मीर में अमरनाथ यात्रा से पहले आतंकियों के खिलाफ कुछ बड़े ऑपरेशंस को अंजाम दिया जा सकता है। इसके लिए सेना की राष्ट्रीय राइफल्स और जम्मू-कश्मीर पुलिस दक्षिण कश्मीर के कुछ जिलों में बड़े स्तर पर अभियान चलाने की तैयारी भी कर रही है। माना जा रहा है कि सेना के जवान औरंगजेब और पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या की वारदातों के बाद सेना दक्षिण कश्मीर में कुछ बड़े ऑपरेशंस को अंजाम दे सकती है। इसके अलावा आने वाले दिनों में पैरा स्पेशल फोर्सेज के साथ "ऑपरेशन किल टॉप कमांडर" और "ऑपरेशन ऑल आउट" जैसे कुछ नए ऑपरेशंस भी शुरू किए जा सकते हैं।
पत्थरबाजों पर कार्रवाई में नहीं होगी सियासी दखलंदाजी
अगर अतीत पर गौर करें तो यह देखने को मिलता है कि 2016 की हिंसा के दौरान 9 हजार से ज्यादा पत्थरबाजों पर केस दर्ज हुए थे। इन सभी पत्थरबाजों में एक बड़ी संख्या उन युवकों की थी, जिन्हें दक्षिण कश्मीर के जिलों से गिरफ्तार किया गया था। कुछ महीनों बाद ही महबूबा सरकार ने गिरफ्तार किये गए सैकड़ों पत्थरबाजों पर से मुकदमे वापस ले लिए थे। सरकार का कहना था कि ये कदम उन्होंने इसलिए उठाएं है ताकि युवाओं को मुख्यधारा में वापस लाया जा सके, जबकि विपक्षी पार्टियों का आरोप था कि महबूबा ने श्रीनगर और अनंतनाग सीटों पर होने वाले उपचुनाव के मद्देनजर लोगों के समर्थन के लिए ऐसा किया था। बीजेपी सरकार को इस फैसले के बाद कई मोर्चों पर विरोध और आलोचना का सामना करना पड़ा था। अब जब कश्मीर में राज्यपाल शासन की स्थितियां बन रही है तो पत्थरबाजों पर कार्रवाई में कोई सियासी दखलंदाजी नहीं होगी। वहीं इसका फायदा देशभर में बीजेपी को भी मिलेगा।
पहले ही लिखी जा चुकी थी स्क्रिप्ट
सूत्रों के मुताबिक इस गठबंधन के टूटने की स्क्रिप्ट पहले ही लिखी जा चुकी थी। दरअसल गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 12 दिन पहले घाटी में सुरक्षा के हालातों की समीक्षा की थी। इस दौरान महबूबा सरकार को लेकर बीजेपी के मंत्रियों से उन्होंने फीडबैक लिया था। वहीं राजनाथ सिंह ने अमरनाथ यात्रा को लेकर सुरक्षा एजेंसियों से रिपोर्ट ली थी। राजनाथ ने तीनों संभागों जम्मू, श्रीनगर और लद्दाख क्षेत्रों के पार्टी नेताओं से मुलाकात की थी। जानकार कहते है कि पीएम मोदी ने राजनाथ सिंह को वहां की ग्राउंड रिपोर्ट जांचने के लिए भेजा था। राजनाथ ने इसके बाद दिल्ली पहुंचकर पीएम को इसकी रिपोर्ट भी सौंपी थी। जम्मू-कश्मीर में सरकार गिरने के बाद दिल्ली में तमाम उच्च स्तरीय बैठकों का दौर भी शुरू हो गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और गृह सचिव राजीव गौबा की मुलाकात के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह के आवास पर भी उच्च स्तरीय बैठक हुई है। माना जा रहा है कि इस बैठक में राज्य की सियासत पर आगे की रणनीति तय की गई है।