सदन: मोदी शासनकाल में मनमोहन कार्यकाल की तुलना में 400 फीसदी अधिक सांसदों का निलंबन, अब तक का सबसे बड़ा एक्शन

  • 7वीं लोकसभा का आखिरी शीतकालीन सत्र
  • सांसदों का निलंबन, सदन सुरक्षा में चूक
  • मोदी कार्यकाल में अब तक 255 सांसदों कानिलंबन

ANAND VANI
Update: 2023-12-20 05:43 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 17वीं लोकसभा का आखिरी शीतकालीन सत्र शुरू से ही सुर्खियों में है। पहले संसद में सुरक्षा चक्र को तोड़ते हुए 2 घुसपैठिए संसद के भीतर घुस गए। जब विपक्ष इस मामले में सरकार से सदन के भीतर चर्चा की मांग करने लगा तो विपक्ष के कई सांसदों को सदन की कार्यवाही से हाथ धोना पड़ा। दोनों सदनों से अब तक 141 सांसदों का निलबंन हो चुका है। इसे लेकर सदन में आज भी गहमागहमी का माहौल बने रहने की उम्मीद है।

सांसदों के निलबंन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व पीएम मनमोहन के कार्यकाल को देखा जाए तो ये बात साफ जगजाहिर हो जाती है कि मोदी कार्यकाल में अब तक  255 सांसदों पर निलंबन की कार्रवाई हो चुकी है। जबकि मनमोहन शासनकाल में कुल 59 सांसदों को निलंबन किया गया था। मोदी शासनकाल में मनमोहन शासनकाल की तुलना में 400 फीसदी से ज्यादा सांसदों का निलंबन हुआ है। आपको बता दें ये पहला मौका नहीं है जब किसी विषय पर चर्चा की मांग कर रहे सांसदों पर निलंबन की कार्रवाई की गई है। इससे पहले की सरकारों में भी ऐसे एक्शन होते हुए दिखाई दिए है। लेकिन अबकी तुलना में काफी कम हुए है।

मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल के दौरान 59 सांसद सस्पेंड किए गए थे। इनमें लोकसभा के 52 और राज्यसभा के 7 सांसद थे। मनमोहन सरकार के पहले कार्यकाल यानी की 2004 से 2009 तक सिर्फ 5 सांसद निलंबित किए गए थे। इससे पहले की कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार के दौरान 63 सांसदों को निलंबित किया गया था जबकि इंदिरा गांधी सरकार में 3 सांसदों को सदन से निलंबित किया गया था।

मोदी कार्यकाल में निलंबन की अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई हुई है। लोकसभा और राज्यसभा के आंकड़ों को देखा जाए तो मोदी सरकार के कार्यकाल में अब तक 206 सांसदों को निलंबित किया गया है। 2015 में तत्कालीन लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कांग्रेस के 25 सांसदों को निलंबित कर दिया था। 2019 में विपक्ष के 49 सांसद निलंबित किए गए थे। 2022 में महंगाई पर बहस कर रहे विपक्ष के 23 राज्यसभा सांसदों को सदन से निलंबित कर दिया गया था।

मनमोहन शासनकाल के आंकड़ों को देखे तो पता चलता है कि मनमोहन सरकार में कांग्रेस के सांसदों का सबसे ज्यादा निलंबित किया गया था। मनमोहन सरकार के दौरान कांग्रेस के 28 सांसद निलंबित किए गए थे। मनमोहन सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे समाजवादी पार्टी के भी 4 सांसद 2010 में निलंबित किए गए थे। तेलंगाना राज्य विधेयक के दौरान संसद से कांग्रेस के 11 सांसद निलंबित किए गए थे। इन सांसदों ने विधेयक का जमकर विरोध किया था। इतना ही नहीं, हंगामा करने के लिए 2012 में भी कांग्रेस के 8 सांसद लोकसभा से निलंबित किए गए थे। मनमोहन सरकार के दौरान बीजेपी के सिर्फ 2 सांसद निलंबित किए गए थे। इसके उलट मोदी सरकार के कार्यकाल में बीजेपी का एक भी सांसद सदन से निलंबित नहीं किए गए हैं। सदन से जिन 255 सांसदों को निलंबित किया गया है, उनमें अधिकांश कांग्रेस के ही सांसद हैं।

अब आपके मन में ये सवाल आ रहा होगा कि जनता के द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों को सस्पेंड क्यों किया जाता है?l तो आपको बता दें सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए भारतीय संसद ने कुछ नियम बनाए है, ताकि कार्यवाही के दौरान सदन की गरिमा बनी रही है।  संसद में अनुशासन बनाए रखने के लिए पीठासीन अधिकारी को निलंबन की कार्रवाई का भी अधिकार दिया गया है। निम्न सदन यानि लोकसभा में स्पीकर और उच्च सदन यानि राज्यसभा में सभापति को निलंबन का अधिकार है। निलंबन वापस लेने का अधिकार स्पीकर और सभापति को ही है। लोकसभा स्पीकर के पास नियम 373, नियम 374 और नियम 374-ए के तहत जबकि राज्यसभा सभापति नियम 255 और नियम 256 के तहत निलंबन की कार्रवाई कर सकते हैं। निलंबित सांसद सदन की कार्यवाही में शामिल नहीं हो सकते। ना ही कि सदन की किसी कमेटी का हिस्सा हो सकते है। 

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