झारखंड में कोर्ट फीस बढ़ाने के कानून पर गहराया विवाद, राज्यपाल ने सरकार को पुनर्विचार का निर्देश दिया, हाईकोर्ट में भी हुई सुनवाई

झारखंड झारखंड में कोर्ट फीस बढ़ाने के कानून पर गहराया विवाद, राज्यपाल ने सरकार को पुनर्विचार का निर्देश दिया, हाईकोर्ट में भी हुई सुनवाई

IANS News
Update: 2022-09-28 14:00 GMT

डिजिटल डेस्क,  रांची। झारखंड की अदालतों में सुनवाई-कार्यवाही के लिए फीस बढ़ोतरी को लेकर राज्य सरकार की ओर से लाये गये कोर्ट फीस अमेंडमेंट एक्ट पर विवाद गहरा गया है। बुधवार को झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने कोर्ट फीस अमेंडमेंट बिल पर राज्य सरकार को दोबारा विचार करने का निर्देश दिया है। इधर इसी मुद्दे को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका पर बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने बताया कि इस एक्ट की समीक्षा के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई है।

राजभवन की ओर से बताया गया कि कोर्ट फीस (झारखंड संशोधन अधिनियम) को 22 दिसंबर 2021 को विधानसभा से पारित कराया गया था। इसपर 11 फरवरी 2022 को राज्यपाल का अनुमोदन प्राप्त हुआ था, लेकिन गजट प्रकाशित होने के बाद से कोर्ट फीस वृद्धि को लेकर जबरदस्त विरोध देखने को मिल रहा है। राजभवन ने कहा है कि उसके पास इसे लेकर कई आवेदन आये हैं। 22 जुलाई 2022 को झारखंड स्टेट बार काउंसिल ने भी राजभवन को आवेदन देकर कोर्ट फीस में हुई बढ़ोतरी को वापस लेने की मांग की है। ऐसे में राजभवन का मानना है कि आदिवासी समाज के हित को देखते हुए इस पर पुनर्विचार करना जरूरी है।

गौरतलब है कि झारखंड सरकार ने कोर्ट फीस अधिनियम 2021 में संशोधन कर स्टांप फीस छह से लेकर दस गुणा तक वृद्धि की है। विवाद संबंधित सूट फाइल करने में जहां 50 हजार रुपये लगते थे, अब अधिकतम तीन लाख रुपये तक की कोर्ट फीस लगेगी। जनहित याचिका दाखिल करने में पहले ढाई सौ रुपये कोर्ट फीस लगती थी। अब इसके लिए एक हजार रुपये की फीस तय की गयी है।

कोर्ट फीस में इस तरह बढ़ोतरी को वापस लेने की मांग को लेकर झारखंड स्टेट बार काउंसिल की ओर से हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल की गई है। इसपर बुधवार को झारखंड हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से बताया गया कि इसकी समीक्षा के लिए कमेटी बनाई गई है, जिसकी रिपोर्ट के अनुसार आगे कदम उठाया जायेगा। दूसरी ओर झारखंड बार काउंसिल के चेयरमैन राजेंद्र कृष्णा ने इस एक्ट को गरीबों पर आर्थिक बोझ बढ़ाने वाला और न्याय में बाधक बताते हुए इसे निरस्त करने की मांग की। उन्होंने कोर्ट में कहा कि यह अप्रत्याशित वृद्धि अतार्किक और अव्यावहारिक है। इससे राज्य की गरीब जनता न्याय से दूर हो जाएगी। कोर्ट फीस बढ़ाने से पहले सरकार को एक ड्राफ्ट बनाना चाहिए था, जिस पर सभी लोगों से आपत्ति मांगनी चाहिए।

 

 (आईएएनएस)

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