21 की उम्र में बने टीम इंडिया के कैप्टन, एक आंख और पैर के दम पर खेली थी पारी

21 की उम्र में बने टीम इंडिया के कैप्टन, एक आंख और पैर के दम पर खेली थी पारी

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-05 05:39 GMT
21 की उम्र में बने टीम इंडिया के कैप्टन, एक आंख और पैर के दम पर खेली थी पारी

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मंसूर अली खान पटौदी, एक जाने-माने क्रिकेटर और पटौदी रियासत के आखिरी नवाब। मंसूरी अली खान पटौदी, जिन्हें नवाब पटौदी के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 5 जनवरी 1941 को भोपाल के नवाब इफ्तिखार अली खान के घर हुआ था। नवाब पटौदी के पिता भी इंडियन क्रिकेट के कैप्टन रह चुके थे। पटौदी को जब टीम इंडिया का कैप्टन बनाया गया, तब उनकी उम्र 21 साल और 70 दिन थी। इसके अलावा टीम इंडिया की हालत भी ठीक उसी तरह थी, जैसी आज की जिंबाब्वे टीम की है। उसके बावजूद नवाब पटौदी ने टीम को संभाला और कई मैच जिताए। यही कारण है कि आज भी नवाब पटौदी का नाम इंडियन क्रिकेट के सफल कप्तानों में गिना जाता है। नवाब पटौदी के बर्थडे के मौके पर आज हम आपको उनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में आप शायद ही जानते हों।

 

 

 

 


सिर्फ 21 साल की उम्र में बने कैप्टन

मंसूर अली खान पटौदी उर्फ नवाब पटौदी जब टीम इंडिया के कैप्टन बनाए गए थे, तो उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 21 साल और 70 दिन थी। नवाब पटौदी को अचानक से ही टीम इंडिया का कैप्टन बना दिया गया था। दरअसल, नवाब पटौदी से पहले नारी कॉन्ट्रेक्टर टीम के कैप्टन थे। 1 मार्च 1962 को इंडिया और बारबडोस के बीच खेले गए एक टेस्ट मैच में नारी कॉन्ट्रेक्टर, चार्ली ग्रिफिथ की बॉल पर चोटिल हो गए थे। चार्ली उस समय के सबसे फास्ट बॉलर थे और उनकी बॉल आकर सीधे नारी के सिर पर लगी। उस वक्त नवाब पटौदी टीम के वाइस कैप्टन थे। नारी कॉन्ट्रेक्टर के चोटिल होने के बाद नवाब पटौदी को टीम की कमान दी गई और उसके बाद से ही इंडियन क्रिकेट में पटौदी युग की शुरुआत हुई।



बहुत मुश्किल हालात में मिली टीम की कमान

नवाब पटौदी को टीम इंडिया की कमान उस वक्त मिली, जब टीम के हालात बहुत खराब थे। टीम के पास कोई भी अच्छा बॉलर नहीं था और जीत की आदत भी टीम को नहीं था। आलम तो ये था कि उस वक्त विकेटकीपर रहे बूधी कुंदरन पहला ओवर डालते थे। क्योंकि टीम के पास कोई भी अच्छा बॉलर नहीं था। इसी टीम के साथ नवाब पटौदी ने 47 में से 40 टेस्ट मैचों में कप्तानी की। उसमें से सिर्फ 9 मैचों में उन्हें जीत मिली, जबकि 19 में हार का सामना करना पड़ा और 12 मैच ड्रॉ रहे। भले ही पटौदी का रिकॉर्ड आज अच्छा न लगे, लेकिन उस वक्त और टीम के हिसाब से ये रिकॉर्ड बहुत अच्छा था। वो नवाब पटौदी ही थे, जिन्होंने टीम इंडिया को जीत का स्वाद चखाया।



बैटिंग नहीं बल्कि कप्तानी के लिए चुने जाते थे पटौदी

नवाब पटौदी की कप्तानी के मायने इसी बात से समझ सकते हैं कि टीम में उनका सिलेक्शन सिर्फ उनकी कैप्टेंसी के लिए ही किया जाता था। बताया जाता है कि 1975 में वेस्टइंडीज के दौरे से पहले नवाब पटौदी अपने भतीजे साद बिन जंग के साथ दिल्ली में अपने घर पर प्रैक्टिस कर रहे थे। उस वक्त पटौदी सीमेंट की पिच पर प्रैक्टिस कर रहे थे और उन्होंने अपने भतीजे साद से कहा कि वो जितनी तेजी से प्लास्टिक की बॉल डाल सकता है, डाले। इसके बाद पटौदी ने 2-3 बॉलें तो खेल लीं, लेकिन फिर बोल्ड हो गए। ऐसा ही एक-दो बार हुआ। पटौदी ने कहा कि उन्हें बॉल नहीं दिखाई दी। इसके बाद पटौदी ने सीधे सिलेक्शन कमेटी के चेयरमैन को फोन लगाकर कहा कि उन्हें वेस्टइंडीज के खिलाफ टीम में न खिलाया जाए। तब चेयरमैन ने हंसते हुए कहा कि "हम आपको बैटिंग नहीं बल्कि आपकी कैप्टेंसी की वजह से टीम में सिलेक्ट करते हैं।" इसके बाद पटौदी ने टीम मैनेजमेंट को निराश नहीं किया और 0-2 से पीछे चल रही टीम इंडिया को लगातार दो टेस्ट जिताए और 2-2 की बराबरी पर ले आए।



एक्सीडेंट होने के बाद भी नहीं मानी हार

बताया जाता है कि नवाब पटौदी जब 20 साल के थे, तो उनके साथ एक हादसा हुआ, जिस वजह से उनका क्रिकेट करियर ज्यादा नहीं चल पाया। 1 जुलाई 1961 को एक मैच के बाद ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सभी खिलाड़ी वैन में बैठ गए, लेकिन पटौदी ने रॉबिन वॉल्टर्स के साथ कार में जाने का फैसला लिया। इसके बाद कार थोड़ी ही दूर चली थी कि उसका एक्सीडेंट हो गया। नवाब पटौदी अपनी एक आंख पर हाथ रखकर कार से बाहर निकले। उस वक्त सबको मामूली चोट लगी है, लेकिन ऐसा नहीं था। जब हॉस्पिटल में पटौदी का इलाज कराया गया तो पता चला कि एक कांच का टुकड़ा उनकी आंख में चला गया है। इसके बाद काफी सर्जरी की गई, लेकिन उनकी आंख ठीक नहीं हो सकी। कहा जाता है कि जब कुछ दिन बाद उन्होंने क्रिकेट खेलने की कोशिश की, तो उन्होंने 2 बॉल दिखाई देती थी। इस बात का जिक्र पटौदी ने अपनी आत्मकथा "टाइगर गर्ल्स" में करते हुए लिखा है कि "जब मैं लाइटर से सिगरेट जलाने की कोशिश करता था, तो मैं उसे मिस कर देता था। ऐसा ही जब मैं जग से गिलास में पानी लेता था, तो पानी गिलास की बजाय नीचे गिर जाता था।" इसके बाद पटौदी ने नेट्स पर घंटों प्रैक्टिस की और अपनी इस कमजोरी पर जीत हासिल कर ली।



एक आंख और एक पैर से खेली पारी

यूं तो नवाब पटौदी के करियर की सबसे बेस्ट इनिंग दिल्ली के खिलाफ थी, जब उन्होंने 203 रन बनाए थे, लेकिन पटौदी मेलबर्न में बनाए गए 75 रनों को अपने करियर की बेस्ट इनिंग मानते हैं। दरअसल, 1967 में इंडिया-ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट मैच खेला गया। इस मैच में टीम इंडिया के 75 रन पर 5 विकेट गिर चुके थे। उसके बाद नवाब पटौदी क्रीज पर आए। उस वक्त पटौदी को घुटने के पीछे चोट लगी थी और वो ठीक से झुक भी नहीं पा रहे थे। तब पटौदी एक रनर को लेकर मैदान पर उतरे और सिर्फ खड़े-खड़े ही शॉट खेलकर उन्होंने 75 रन बनाए। अपनी इस इनिंग में नवाब पटौदी ने कई ऐसे शॉट्स खेले, जिन्हें आज भी याद किया जाता है। पटौदी की इस इनिंग का जिक्र करते हुए मिहिर बोस ने अपनी किताब "हिस्ट्री ऑफ क्रिकेट" में लिखा था कि "एक आंख और एक पैर के सहारे खेली गई पारी।"



40 टेस्ट में बनाए 2424 रन

टीम इंडिया के लिए पटौदी ने 47 टेस्ट मैच खेले हैं, जिसमें से 40 टेस्ट मैचों में कप्तानी भी की थी, जिसमें उन्होंने 2424 रन बनाए थे। जब वो कैप्टन थे उस समय उन्होंने डबल सेंचुरी लगाई थी। लेकिन अपनी कप्तानी में खेले 40 मैचों में से वे सिर्फ 9 मैच ही जीत पाए थे, 19 मैचों में हार हाथ लगी थी और 12 मैच ड्रॉ हो गए थे। 1967 में इन्हीं की कप्तानी में भारत ने न्यूजीलैंड के खिलाफ एशिया के बाहर अपना पहला टेस्ट मैच जीता था।



लंग इंफेक्शन के कारण मौत

साल 2011 में लंग इंफेकशन के कारण नवाब पटौदी की दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में मौत हो गई थी। इसके बाद बेटे सैफ अली खान की 10वें नवाब के रूप में ताजपोशी हुई। मंसूर अली को उनकी मौत के बाद उनको नवाब परिवार के पटौदी पैलेस के नाम से महल है उन्हें उसी महल परिसर में ही दफना दिया गया था। उनके अन्य पूर्वजों की कब्र भी यहीं आसपास है।

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