कोराना लॉकडाउन अवधि में महानायक बनकर उभरा भारत का अन्नदाता किसान

Annadana farmer of India emerged as a great hero in the Korana lockdown period
कोराना लॉकडाउन अवधि में महानायक बनकर उभरा भारत का अन्नदाता किसान
कोराना लॉकडाउन अवधि में महानायक बनकर उभरा भारत का अन्नदाता किसान

-कैलाश चौधरी, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री

वर्तमान में जहां पूरा विश्व कोरोना वायरस के संक्रमण से उबरने के लाख जतन कर रहा है, वहीं भारत देश भी इस महामारी से बचाव करने के लिए नित नए समाधान तलाशने की भरसक कोशिशों में लगा हुआ है।

कोरोना वायरस एवं इसके लगातार बढ़ते हुए संक्रमण को रोकने का सबसे कारगर उपाय लॉकडाउन साबित होता नजर आ रहा है। पूरा देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशानुसार लॉकडाउन का पालन करने का प्रयास कर रहा है। इन संवेदनशील परिस्थितियों को समझते हुए लोग घरों में रहते हुए लॉकडाउन का सख्ती से पालन कर अपना सहयोग प्रदान कर रहे हैं। राज्य सरकारें और प्रशासन अपने-अपने स्तर पर पूरी तरह से अलर्ट होकर कार्य करके सहयोग प्रदान कर रहा है। इसी का नतीजा है कि अन्य देशों की भांति कोरोना के संक्रमण के परिणाम से प्रभावित होने वाला आंकड़ा भारत में अभी तक विकराल रूप में सामने नहीं आ पाया है।

तमाम प्रयासों के माध्यम से भारत में संक्रमित मरीजों को बढ़ने से रोकने में हम भले ही कामयाब होते नजर आ रहे हैं लेकिन लॉकडाउन के प्रभाव के कारण दैनिक जीवनचर्या को सुचारू रख पाना अत्यंत कठिन सा हो गया है। एक तरफ देश की आर्थिक स्थिति लॉकडाउन के कारण काफी हद तक प्रभावित हुई है, वहीं दूसरी तरफ लोगों के लिए इन विपरीत परिस्थितियों में जीवन जीना दूभर हो रहा है।

इन सबके बीच एक सुखद पहलू उभर कर सामने आया है और वो है हमारे अन्नदाता का महत्व। इस लॉकडाउन में प्रत्येक व्यक्ति को ये बात समझ आ गई है कि हमारा किसान हमारे लिए किसी महानायक से कम नहीं है, जो लॉकडाउन के कारण घरों में बैठे लोगों के रोजमर्रा के लिए अनाज, दूध, फल, सब्जी आदि की आपूर्ति कीमतें बढ़ाने के बजाय सामान्य कीमत में करने का निरंतर प्रयास कर रहा है। आज सामान्य व्यक्ति से लेकर बड़े पूंजीपतियों तक को इस बात का भलीभांति एहसास हो रहा है कि विभिन्न प्रकार की जिन सुख-सुविधाओं को जुटाने के लिए दिन-रात एक करके उनके द्वारा मेहनत की जाती रही, जिनके बिना जीवन जीना असम्भव सा प्रतीत होता था। आज वो सब सुख-सुविधाएं हमारे भोजन के अन्न की कीमत के आगे नगण्य सी हो गई है।

आज केवल दो वक्त का अनाज, फल, सब्जी, दूध आदि की आपूर्ति सबसे बड़ी जरूरत बन गई है, जिसका जरिया हमारा वही सामान्य किसान बन रहा है जिसको हमने कभी कोई सम्मान अथवा महत्व दिया ही नहीं।

बाहर घूमने जाना, महंगे रेस्तरां में लजीज पकवान खाना, महंगी पोशाकें पहनना, मोबाइल, गाड़ी, आलीशान मकान जैसे अनेक प्रकार के लक्जरी सामानों की बड़ी लिस्ट की उपयोगिता एक मामूली किसान के द्वारा उगाए गए मुट्ठी भर अनाज के आगे आज गौण नजर आ रही है। छोटी-बड़ी इन सुख-सुविधाओं के बिना जीवन जिया जा सकता है, लेकिन बिना अन्न के जीवन जीने की कल्पना भी करना मुश्किल है। और उस अन्न को उत्पादित करने वाला कोई और नहीं बल्कि अपनी मेहनत और खून-पसीने को एक करने वाला हमारा भारतीय किसान ही है।

हमारा भारत देश कृषि प्रधान देश कहलाता है और इसमें 70 फीसदी आबादी किसानों की है। उसके बावजूद हमारे जीवन की अति महत्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हमारा किसान न तो स्वयं सक्षम है और न ही किसी भी रूप में समृद्ध है।

इसका सबसे बड़ा कारण कृषि एवं किसान को अन्य रोजगार के कार्यो की तुलना में सबसे कम आकलन करके छोटा व अनुपयोगी कार्य समझ लेना है।

आजादी के इन 70 सालों में किसानों के लिए कई योजनाएं तो बनी लेकिन उन योजनाओं का लाभ किसान तक कितना पहुंच पाया है, इस पर नए सिरे से विचार की आवश्यकता है। सबकी थाली में अन्न पहुंचाने वाला किसान आज भी स्वयं दो वक्त की रोटी को तरस जाता है।

यदि आजादी के बाद से ही किसान, कृषि एवं पशुपालन आदि को सक्षम व मजबूत बनाने पर जोर दिया जाता तो आज भारत का स्वरूप कुछ और ही होता। आज किसान अपने गांव खेतों को छोड़कर अन्य रोजगार के विकल्प की तलाश में सुदूर शहरों में नहीं भटक रहा होता। कृषि प्रधान देश होने के बावजूद कृषि को कभी भी हमारी शिक्षा से नहीं जोड़ा गया जिसका परिणाम ये हुआ कि आज भी शिक्षित व्यक्ति कृषि के कार्य को रोजगार के रूप में अपनाना नहीं चाहता है।

प्राकृतिक आपदाएं, पानी का अभाव, कृषि संसाधनों का अभाव, किसानों का अशिक्षित होना, कृषि की उन्नत किस्मों की जानकारी का अभाव, कम लागत में अधिक आय प्राप्त करने की जानकारी का अभाव, कृषि के अलावा रोजगार के अन्य विकल्प को अपनाना, कृषि को आय का अच्छा स्त्रोत न बनने देना आदि कई ऐसे कारण रहे हैं जिससे किसान की स्थिति कभी भी सुदृढ नहीं हो पाई है।

हालांकि सरकार के द्वारा समय-समय पर किसानों के लिए कई लाभकारी योजनाएं बनाई जाती रही है लेकिन पिछली कांग्रेस एवं कांग्रेस समर्थित यूपीए सरकारों में किसान के अशिक्षित होने, योजनाओं की जानकारी किसान तक सही तरीके से न पहुंच पाने एवं आपदाओं के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली राहत राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाने के कारण किसान की स्थिति सुधरने के बजाय दयनीय होती गई।

प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा जनधन योजना के माध्यम से सर्वप्रथम एक अच्छी पहल की गई जिसमें प्रत्येक भारतीय का बैंक में जीरो बैलेंस पर खाता खुलवाया गया। बैंक अकाउंट में खाता होने से सरकार आज जो भी जनकल्याण योजनाएं लागू कर रही है, उसका सीधा लाभ किसान, मजदूर एवं अन्य लाभार्थियों को प्राप्त हो पा रहा है।

प्रधानमंत्री द्वारा किसान हितैषी कुछ नई योजनाएं प्रारम्भ की गई है, जिसमें किसी भी रूप में आपदा के कारण यदि फसल का नुकसान हो जाता है तो उसका मुआवजा सीधे किसान के बैंक खाते में पहुंचाया जाता है। इसके अलावा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना किसानों के लिए काफी उपयोगी साबित हो रही है, जिसमें प्रत्येक किसान को 6 हजार रुपये सालाना दिया जा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा लगभग 7.92 करोड़ किसानों के बैंक खातों में अब तक ये राशि पहुंचाई भी जा चुकी है। लॉकडाउन अवधि में कृषि उत्पादों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने में अंतराज्यीय बाधाओं को दूर करने के लिए कृषि मंत्रालय की ओर से कृषि मोबाइल रथ एप्प शुरू किया गया। इसके हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करके किसान कृषि उत्पादों के परिवहन से संबंधित समस्याओं का समाधान करवा सकता है।

सरकारों द्वारा अधिक से अधिक किसानों को लाभ अथवा राहत पहुंचाने के प्रयास निरंतर जारी है, लेकिन इससे कृषि कार्य एवं किसानों से जुड़ी तमाम समस्याओं का स्थायी समाधान सम्भव नहीं है।

यदि किसान को वास्तविक रूप में सक्षम एवं सुदृढ किसान बनाना है तो कृषि से सम्बंधित समस्याओं का स्थायी निदान करना आवश्यक है। कृषि प्रधान भारत देश को पुन: कृषि प्रधान बनाने के लिए हर गांव एवं हर खेत में फसलें लहलहाती नजर आने लगे, इसके लिए शिक्षित युवा वर्ग स्वयं आगे आकर कृषि को रोजगार के रूप में अपनाना प्रारम्भ करें। फसलों को और अधिक उन्नत एवं अधिक आययुक्त बनाने के लिए किसानों को कृषि की समुचित जानकारी से अवगत करवाया जाए। उपजाऊ मिट्टी की जानकारी, उन्नत बीज का उत्पादन एवं वितरण, कम पानी में उन्नत फसल की खेती एवं समुचित व्यवस्था सहित फसलों का उचित मूल्य किसानों तक पहुंचने लगे तो लोगों का कृषि को रोजगार के रूप में अपनाने का रुझान भी बढ़ने लगेगा। रोजगार के रूप में कृषि को अधिक से अधिक अपनाने पर बढ़ती बेरोजगारी पर अंकुश भी लगाना सम्भव हो पायेगा।

यदि हमारा किसान स्वावलंबी और समृद्धशाली होकर उभरने लगे तो निश्चित रूप से इसका एक अच्छा प्रभाव हमारे भारत देश की अर्थव्यवस्था पर भी होगा और तब हमारा देश भी समृद्धशाली होकर विकसित देशों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा नजर आएगा।

(लेखक भारत के केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)

Created On :   25 April 2020 1:00 PM GMT

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