Corona Effect: इतिहास में पहली बार माइनस में पहुंचे कच्चे तेल के दाम, एक कप कॉफी से भी हुआ सस्ता 

Corona Effect: इतिहास में पहली बार माइनस में पहुंचे कच्चे तेल के दाम, एक कप कॉफी से भी हुआ सस्ता 

डिजिटल डेस्क, लंदन। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था हाशिए पर पहुंच गई है। इसका एक उदाहरण सोमवार को उस समय सामने आया जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में 301.97 फीसदी की गिरावट हुई। अमेरिकी बेंचमार्क क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) के लिए सोमवार का दिन इतिहास में सबसे बुरा दिन रहा। पूरी दुनिया में इस समय लॉकडाउन है और लोग घरों में कैद हैं। इसी कारण कच्चे तेल की मांग घटने से डब्ल्यूटीआई वायदा भाव 0.97 डॉलर तक पहुंच गया। जबकि तेल की कीमत -37.63 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई।

पैसे देकर खरीदने गुजारिश कर रहे तेल उत्पादक देश
इस गिरावट के मायने यह हैं कि तेल उत्पादक देश अब खरीदारों को पैसे देकर तेल खरीदने की गुजारिश कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि अगर तेल नहीं बिका तो स्टोरेज की समस्या भी बढ़ेगी। स्टोरेज की समस्या को देखते हुए कई तेल फर्म टैंकर किराए पर ले रही हैं, ताकि बढ़ा हुआ स्टॉक रखा जा सके, लेकिन इसका असर अमरीका की तेल कीमतों पर हुआ और वो नेगेटिव हो गईं यानी जीरो से नीचे चली गईं।

ब्रेंट क्रूड की कीमत 6.3 फीसदी की गिरावट
कोरोना वायरस महामारी के कारण मांग निचले स्तर पर पहुंचने और इस साल कंपनियों के बदतर नतीजे आने की आशंका से तेल की कीमतों में यह गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, ब्रेंट क्रूड की कीमत 6.3 फीसदी की गिरावट के साथ 26.32 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंंच गई।

भारी पड़ रही मांग में गिरावट
कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए दुनियाभर में लॉकडाउन और यात्रा पर पाबंदी चल रही है। इस कारण क्रूड की मांग में भारी गिरावट आई है। सऊदी अरब और रूस के बीच प्राइस वॉर शुरू होने से तेल की कीमत गिरावट और गहरा गई। हालांकि, इस महीने के शुरू में दोनों देशों तथा कुछ अन्य देशों ने मिलकर तेल की कीमत बढ़ाने के लिए उत्पादन में करीब 1 करोड़ बैरल रोजाना की कटौती करने का फैसला किया, लेकिन कीमत में गिरावट जारी है। विशेषज्ञों का कहना है कि मांग में जितनी गिरावट आई है, उत्पादन उसके अनुरूप नहीं घटाया जा रहा है।

ओपेक सदस्य देश तेल उत्पादन में 10 फीसदी कमी करने पर राजी हुए थे 
इस महीने की शुरुआत में, ओपेक सदस्य देशों और इसके सहयोगी तेल उत्पादन में 10 फीसदी तक की कमी लाने को राजी हुए थे। तेल उत्पादन में इतनी बड़ी कमी लाने को लेकर यह पहली डील थी। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि तेल उत्पादन में कमी लाकर बहुत ज्यादा मुश्किलें नहीं सुलझीं। एक्सिकॉर्प के चीफ ग्लोबल मार्केट स्ट्रैटेजिस्ट स्टीफन इन्स ने कहा कि बाजार को यह समझने में देर नहीं लगी कि ओपेक प्लस तेल कीमतों में संतुलन नहीं बना पाएगा, खास मौजूदा हालात में तो बिल्कुल नहीं।

खपत नहीं हुआ पुराना तेल, रखने की जगह नहीं
कच्चे तेल की कीमतें माइनस में जाने का ये मतलब नहीं है कि आज या कल से ही तेल सस्ता हो गया है। दरअसल मई महीने में कच्चे तेल की सप्लाई के लिए जो ठेके दिए जाते हैं वो अब निगेटिव में चला गया है। तेल विक्रेता दुनिया के देशों से तेल खरीदने के लिए कह रहे हैं लेकिन तेल खर्च करने वाले देशों को इसकी जरूरत नहीं है, क्योंकि उनकी अरबों की आबादी घरों में बैठी है लिहाजा वे तेल नहीं खरीद रहे हैं। उनका तेल भंडार भरा हुआ है, पुराना तेल खर्च न होने से उनके पास नया तेल स्टोर करने के लिए जगह नहीं है। इसलिए वे तेल नहीं खरीद रहे हैं।

 

 

 

Created On :   20 April 2020 10:56 PM GMT

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