खाद्य तेल के दामों में लगी आग से आम जनता परेशान, जानिए क्या है बढ़ोतरी का कारण?

Reason behind increase in price of vegetable oils
खाद्य तेल के दामों में लगी आग से आम जनता परेशान, जानिए क्या है बढ़ोतरी का कारण?
खाद्य तेल के दामों में लगी आग से आम जनता परेशान, जानिए क्या है बढ़ोतरी का कारण?
हाईलाइट
  • खाने के तेल के दाम डेढ़ गुना तक बढ़े
  • दामों में बढ़ोतरी का क्या है कारण?
  • महंगाई की मार से आम जनता परेशान

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इन दिनों महंगाई की मार से आम जनता परेशान है। वनस्पति तेलों जैसी आवश्यक चीजों पर उनका मासिक खर्च लगातार बढ़ रहा है। एक लीटर सरसों के तेल की कीमत 200 रुपए के करीब पहुंच गई है, जो पिछले साल मई में कीमत से लगभग डेढ़ गुना है। तब इसकी कीमत 130 रुपये प्रति लीटर के करीब थी। सरसो के तेल के अलावा सोयाबीन तेल, सूरजमुखी तेल और मूंगफली तेल की कीमतें भी बढ़ गई हैं। हैरानी की ये है कि तेल की कीमतों में उछाल ऐसे समय में आया है जब इसकी डिमांड भी कम है। देश में इस बार ऑइल सीड का रिकॉर्ड प्रोडक्शन हुआ है। दूसरे शब्दों में कहे तो तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का कोई घरेलू कारण नहीं है- यह एक अंतरराष्ट्रीय घटना है।

पिछले पांच वर्षों में, भारत में ऑइल सीड का उत्पादन 44 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा है। 2015-16 में ऑइल सीड का प्रोडक्शन लगभग 25.3 मिलियन टन था जो 2020-21 में बढ़कर लगभग 36.6 मिलियन टन हो गया है। बहरहाल, यह भी भारत की खाद्य तेल की आधे से भी कम मांग को पूरा करता है। वार्षिक प्रति व्यक्ति खपत के आंकड़ों के आधार पर - 19 किलोग्राम प्रति वर्ष - भारत में 2.5 करोड़ टन खाद्य तेल की वार्षिक मांग है, जिसमें से केवल 10.5 मिलियन टन घरेलू उत्पादन से आपूर्ति की जाती है। शेष 60 प्रतिशत की आपूर्ति आयात से की जाती है। फिलहाल, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऑइल सीड और खाद्य तेल की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं, इसलिए घरेलू कीमतों पर असर पड़ रहा है।

पाम ऑइल:
भारत के कुल खाद्य तेल आयात में पाम और सोयाबीन तेल की हिस्सेदारी 86 फीसदी है। मलेशिया और इंडोनेशिया पाम ऑइल के सबसे बड़े ग्लोबल एक्सपोर्टर हैं, और इन देशों में कीमतें पिछले एक साल में बढ़ी हैं। इस साल मई में पाम ऑइला वायदा करीब 4,525 रिंगिट (80,576 रुपये) प्रति टन पर कारोबार कर रहा था। पिछले साल कीमतों में 1,939 रिंगिट (34,527 रुपये) प्रति टन का निचला स्तर देखा गया था। दूसरे शब्दों में कह तो, पिछले एक साल में कीमत लगभग 133 प्रतिशत बढ़ी है। 1 जून को कीमतें मामूली रूप से कम होकर लगभग 3,910 रिंगिट (70,000 रुपये) प्रति टन हो गई थीं।

इस बढ़ोतरी के बारे में बताते हुए, एसईएआई (सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया) के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता कहते हैं, "पाम ऑइल का क्षेत्र बहुत श्रम प्रधान है, और मलेशिया, दुनिया के सबसे बड़े पाम तेल निर्यातक देशों में से एक, प्रवासी मजदूर पर बहुत निर्भर है। चूंकि कोविड के चलते सीमाओं को बंद कर दिया गया है, इसलिए श्रमिकों की कमी हो गई है, जिससे उत्पादन प्रभावित हो रहा है।" वह कहते हैं कि फ्यूल सेक्टर में वनस्पति तेलों की मांग में भी उछाल आया है। बायोडीजल प्रोगाम में औद्योगिक ईंधन में वनस्पति तेलों के मिनिमम ब्लेंड परसेंटेज की अनिवार्यता है। इससे कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है।

सोयाबीन ऑइल:
सोयाबीन की कीमतों में भी पाम ऑइल की ही तरह की बढ़ोतरी दिखाई देती है। ब्राजील और अमेरिका सोयाबीन के मेजर ग्लोबल प्रड्यूसर हैं। पिछले एक साल में अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 80 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। हालांकि पिछले एक पखवाड़े में दामों में थोड़ी नरमी भी आई है। जुलाई का सोयाबीन वायदा 1 जून को 1,542 डॉलर पर कारोबार कर रहा था, जो 12 मई को 1,667 डॉलर था। जबकि पिछले साल 1 जून को कीमत 840 डॉलर के करीब थी।

भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के महासचिव हेमंत गुप्ता ने अंतरराष्ट्रीय मांग के बारे में बताते हुए कहा, "चीन सोयाबीन की भारी खरीदारी कर रहा है, जो कीमतों में बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण है। 2021 के पहले चार महीनों (जनवरी से अप्रैल) में, चीन ने लगभग 28.6 मिलियन टन आयात किया, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 17 प्रतिशत अधिक है। उन्होंने कहा, दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक ब्राजील में बाढ़ से फसल की कटाई और निर्यात प्रभावित हुआ, जिससे सोयाबीन की कीमते तेज हुई। अमेरिका और ब्राजील सहित कई देशों ने भी अक्षय ऊर्जा कार्यक्रमों में सोयाबीन तेल का उपयोग करना शुरू कर दिया है। यह दर्शाता है कि यह ट्रेंड कोविड की समाप्ति के बाद भी जारी रहेगा।

क्या कहा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने?
भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से हाल ही में जारी एक वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि थोक और खुदरा मुद्रास्फीति के बीच का अंतर लगातार आपूर्ति बाधाओं और उच्च खुदरा मार्जिन के कारण है। इसमें कहा गया है: "दाल और खाद्य तेल जैसे फूड आइटम्स आपूर्ति असंतुलन के कारण दबाव में बने रह सकते हैं। जबकि अनाज की कीमतें 2020-21 में बम्पर पैदावार के साथ कम हो सकती हैं।

वैक्सीनेशन पूरा होने के बाद मांग फिर से बढ़ेगी
वहीं केडिया कमोडिटी के मैनेजिंग डायरेक्टर अजय केडिया कहते हैं, "वैक्सीनेशन पूरा होने के बाद मांग फिर से बढ़ेगी। ऐसे में कीमतों में किसी बड़ी गिरावट की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।" उन्होंने कहा, अगली फसल के बाद कीमतों में थोड़ी नरमी आएगी, लेकिन कीमतों में पिछले साल के स्तर पर लौटने की संभावना नहीं है। गौरतलब है कि चीन ने कोविड के कम होने के बाद मांग में वापसी की उम्मीद में बड़ी मात्रा में खाद्य तेलों का आयात किया है।

कैसे मिल सकती है आम जनता को राहत?
खाने के तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ऐसे समय में हुई है जब लोग कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं। उनकी आय में गिरावट आई है और कई लोगों के रोजगार छिन गए हैं। एसईएआई का मानना ​​है कि सरकार को वनस्पति तेल के वायदा कारोबार पर रोक लगाकर कीमतों पर नियंत्रण करना चाहिए। 4 प्रतिशत के अपर सर्किट को भी 2 प्रतिशत तक लाया जा सकता है। ये कदम त्वरित रिटर्न की तलाश करने वालों को हतोत्साहित कर सकता है। जिससे तेल की कीमतें कुछ हद तक नियंत्रण में आ सकती है।

इंपोर्ट ड्यूटी में कटौती को भी आम तौर पर इंपोर्ट पर निर्भर वस्तुओं की कीमतों में त्वरित राहत प्रदान करने के तत्काल विकल्प के रूप में देखा जाता है। हालांकि, उद्योग जगत इसके लिए उत्सुक नहीं दिख रहा है। मेहता का मानना ​​​​है कि यह कदम उल्टा साबित होगा, "अगर ग्लोबल प्राइज को चलाने वाला अभी का ट्रेंड जारी रहता है, तो उपभोक्ताओं को इंपोर्ट में कमी से ज्यादा लाभ नहीं मिलेगा, लेकिन सरकार को राजस्व का नुकसान उठाना पड़ेगा। उनका मानना है कि लोगों को राहत देने के लिए सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से बेचे जाने वाले खाद्य तेलों पर सब्सिडी देनी चाहिए।

Created On :   18 Jun 2021 3:33 PM GMT

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