8 दिन के नवजात की जान बचाने अपनाई ब्लड एक्सचेंज प्रक्रिया, चार घंटे चले ऑपरेशन के बाद मिला नया जीवन 

Blood exchange procedure adopted to save the life of 8-day-old newborn, got a new life after the operation
8 दिन के नवजात की जान बचाने अपनाई ब्लड एक्सचेंज प्रक्रिया, चार घंटे चले ऑपरेशन के बाद मिला नया जीवन 
बालाघाट जिले में पहली बार हुआ ऐंसा जटिल उपचार  8 दिन के नवजात की जान बचाने अपनाई ब्लड एक्सचेंज प्रक्रिया, चार घंटे चले ऑपरेशन के बाद मिला नया जीवन 

डिजिटल डेस्क  बालाघाट । यहां जिला अस्पताल में पीलिया से गंभीर रूप से ग्रसित महज 8 दिन के नवजात बालक को ब्लड एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन प्रक्रिया के माध्यम से उपचार देकर उसका जीवन सुरक्षित किया गया । यह प्रक्रिया एकदम जटिल होने के  साथ ही जोखिमपूर्ण भी थी और यहां के सीमित संसाधनों वाले जिला अस्पताल के लिए एकदम पहली बार थी जिससे जोखित का प्रतिशत और भी ज्यादा था ।  लेकिन जिला अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ व एसएनसीयू प्रभारी डॉ. निलय जैन और उनकी सात सदस्यीय स्टाफ नर्सांे की टीम ने जोखिम उठाते हुए यह उपचार किया और पूरी टीम की मेहनत रंग लाई तथा बालक पूरी तरह स्वस्थ्य होकर आज अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया । इस संबध में आज डाक्टरों की टीम ने पत्रकारों को बताया कि उक्त बालक पीलिया से गंभीर रूप से ग्रसित था। पीलिया का प्रतिशत हर दिन बढ़ता जा रहा था। उसके बचने की उम्मीद न के बराबर थी। डॉक्टरों के प्रयास भी नाकाफी साबित हो रहे थे । ऐंसी स्थिति में शिशु रोग विशेषज्ञ व एसएनसीयू प्रभारी डॉ. निलय जैन ने जोखिम उठाते ब्लड एक्सचेंज ट्रांसफ्यूज प्रक्रिया अपनाई। चार घंटे तक चली इस प्रक्रिया के बाद नवजात बच्चे को नया जीवन मिल सका। यह पहला मौका है जब जिला अस्पताल में ब्लड एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन प्रक्रिया अपनाकर किसी नवजात की जिंदगी बचाई गई हो। आज गुरुवार को बच्चे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। अब वह 22 दिन का हो गया है।   
रोजाना जानलेवा हो रहा था पीलिया
डॉ. श्री जैन ने बताया कि रामपायली थाना अंतर्गत ग्राम सुकड़ी निवासी ज्योति ने 4 अगस्त को एक बालक को जन्म दिया। नवजात पीलिया से ग्रसित था। तब उसका पीलिया 26.98 प्रतिशत था। दिन गुजरने के साथ पीलिया जानलेवा हो रहा था। बच्चे को एसएनसीयू में भर्ती कराकर इलाज शुरू किया गया, लेकिन पीलिया नियंत्रण से बाहर था। 8 अगस्त तक पीलिया का प्रतिशत 33.1 तक पहुंच गया। नवजात के बचने की उम्मीद टूट रही थी। ऐसे में हमारे पास ब्लड एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन प्रक्रिया अपनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। ये प्रक्रिया इससे पहले जिला अस्पताल में कभी नहीं अपनाई गई। इसमें जोखिम भी था, लेकिन हमने ये जोखिम उठाया और नवजात की जान बच गई। 
विकलांग हो सकता था नवजात 
जानकारी के अनुसार, पीलिया अत्यधिक बढ़ जाने से बच्चे की स्थिति गंभीर हो चुकी थी। उसे झटके आने लगे थे। ऐसे में ये भी संभव था कि पीलिया दिमाग के ब्लड ब्रेन बैरियर को लांघकर दिमाग की झिल्लियों में जम जाता, जिससे नवजात की मृत्यु हो सकती थी या फिर वह हमेशा के लिए मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग हो सकता था। गौरतलब है कि डॉ. श्री जैन ने 20 वर्ष पूर्व इसी तरह के एक मामले में बालक को मुश्किल ऑपरेशन कर नया जीवन दिया था। आज वह पूर्णत: स्वस्थ है।  
क्या होता है ब्लड एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन 
शरीर के खराब रक्त को बदलकर नया खून पहुंचाने की प्रक्रिया को ही ब्लड एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन कहा जाता है। यह आमूमन बड़े शहरों के अस्पतालों या मेडिकल कॉलेजों में होता है। जिसमें 1.5 से 2 लाख का खर्च आता है। इसमें मरीज की मृत्यु की भी आशंका बनी रहती है। डॉ. श्री जैन ने बताया कि इस प्रक्रिया में 400 एमएल ताजा व बिना पीलिया वाला ब्लड बच्चे के शरीर में डाला गया और इतना ही पीलिया वाला ब्लड निकाला गया। ये प्रक्रिया करीब चार घंटे चली। इससे न सिर्फ पीलिया में गिरावट आई बल्कि उसकी सेहत में भी सुधार आने लगा।  
टीम में ये रहे शामिल
ब्लड एक्सचेंज ऑपरेशन को डॉ. निलय जैन ने लीड किया। वहीं, उनके साथ इंचार्ज किरण उइके, स्टाफ नर्स में सीमा दीक्षित, चंद्रकिरण, ज्योति पडवार, सुनीता राहंगडाले, स्वाति खरे व सपोर्टिंग स्टाफ में संतोष ठाकरे और लक्ष्मी ने अहम भूमिका निभाई।
 

Created On :   26 Aug 2021 1:12 PM GMT

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