13 साल बुरा अतीत मानकर भुला चुके, अब बेटा घर आ रहा है यही हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी

Having forgotten 13 years as a bad past, now the son is coming home, this is the biggest happiness for us
13 साल बुरा अतीत मानकर भुला चुके, अब बेटा घर आ रहा है यही हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी
प्रेमिका की हत्या के झूठे आरोप में सजा काट रहे जिले के चंद्रेश मर्सकोले को हाईकोर्ट ने किया बरी, भास्कर ने चंद्रेश के ग 13 साल बुरा अतीत मानकर भुला चुके, अब बेटा घर आ रहा है यही हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी


 डिजिटल डेस्क बालाघाट। हम 13 सालों से अपने बेकसूर बेटे के लिए पल-पल तरस रहे थे। 19 अगस्त 2008 का वो मनहूस दिन और उसके बाद से अब तक का समय हमारे लिए बुरे सपने की तरह गुजरा है। उसे काला अतीत समझकर हम कुछ भुला चुके हैं। मेरा बेटा घर आ रहा है, यही हमारे लिए खुशी और राहत की बात है। ये कहना है कि उस पिता का, जिसका पुत्र पिछले 13 साल से उस जुर्म की सजा काट रहा था, जो उसने किया ही नहीं था। बुधवार को हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में बालाघाट के वारासिवनी तहसील के अंतर्गत ग्राम डोके निवासी चंद्रेश मर्सकोले (37) को अपनी प्रेमिका की हत्या के मामले में निर्दोष मानते हुए बरी कर दिया है। भास्कर ने जिला मुख्यालय से 27 किमी दूर ग्राम डोके पहुंचकर चंद्रेश के माता-पिता से उनके 13 सालों के दर्द, संघर्ष और हाईकोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया जानीं।
बड़े बेटे ने फोन पर दी सूचना
वर्ष 2013 में एचसीएल से रिटायर हुए जुगराम मर्सकोले (69) वर्ष 2015 से अपने पैतृक गांव डोके में निवासरत हैं। उन्होंने बताया कि बुधवार रात बड़े बेटे विमल ने फोन पर सूचना दी कि चंद्रेश का केस हम जीत गए हैं। हार्टकोर्ट ने चंद्रेश को बरी कर दिया है, वो कुछ दिन में घर आ जाएगा। ये सुनते ही माता-पिता की आंखें नम हो गईं। हालांकि, उन्हें हार्टकोर्ट के 42 लाख रुपए के मुआवजे, सक्षम फोरम में अपील करने की स्वतंत्रता करने की छूट जैसे फैसले के बारे में जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा कि उन्हें मुआवजा राशि में कोई दिलचस्पी नहीं है। बेटा बरी हो गया, इसमें ही खुशी है।  
वो 13 साल नहीं लौटा सकती मुआवजा राशि
परिवार का कहना है कि बेटे को झूठे आरोप में फंसाकर जिंदगी के 13 साल बर्बाद करने के बाद 42 लाख का मुआवजा देने का आदेश जरूर उसका भविष्य संवारने में मदद कर सकता है, लेकिन ये राशि जिंदगी के वो 13 साल नहीं लौटा सकती। निचली अदालत के एक फैसले ने डॉक्टर बनने का सपना संजोकर भोपाल पढ़ाई करने गए चंद्रेश का पूरा जीवन अव्यवस्थाओं के भेंट चढ़ा दिया।
विवादों से हमेशा दूर रहा चंद्रेश
दरअसल, चंद्रेश मर्सकोले का बचपन मलाजखंड में गुजरा। स्कूली शिक्षा वहीं हुई। चंद्रेश को जानने वाले बताते हैं कि चंद्रेश शांत और व्यवहारकुशल था। वह विवादों से हमेशा दूर रहा। पढ़ाई में होशियार होने के साथ क्रिकेट खेलने में भी अव्वल था। जब उसके द्वारा अपनी पे्रमिका की हत्या करने की खबर मलाजखंड पहुंची, तब लोग हैरत में पड़ गए। चंद्रेश द्वारा ऐसा अपराध करना लोगों के गले नहीं उतरा था।
नहीं करना चाहते सक्षम फोरम में अपील
खंडवा में विद्युत विभाग में कार्यरत चंद्रेश के बड़े भाई विमल ने बताया कि उन्हें पूरी उम्मीद थी कि हाईकोर्ट एक दिन जरूर न्याय करेगा। हालांकि, ये फैसला कुछ साल पहले आता तो शायद और बेहतर होता। सक्षम फोरम में अपील करने के सवाल पर विमल ने कहा कि अब वो या उनका परिवार दोबारा कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटना नहीं चाहता। मेरा भाई अब घर लौट रहा है, इतना ही हमारे लिए सुकूनभरा है।
एमबीबीएस की डिग्री पूरी कराएंगे
जानकारी के अनुसार, चंद्रेश पर जब हत्या का आरोप लगा, तब वह एमबीबीएस अंतिम सेमेस्टर में था। दो पेपर की परीक्षा देने के बाद उसकी डिग्री पूरी हो जाती, लेकिन एक द्वेषपूर्ण अभियोजन के चलते चंद्रेश बेगुनाह होते हुए भी सलाखों के पीछे चला गया और 13 साल सजा काटी। बड़ेे भाई विमल ने बताया कि उसके बरी होते ही हम उसे एमबीबीएस की डिग्री पूरी कराएंगे, ताकि उसका डॉक्टर बनने का सपना सच हो।

Created On :   5 May 2022 5:41 PM GMT

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