जांजगीर-चांपा : धान की फसल में लगने वाले कीट एवं रोग की पहचान तथा नियंत्रण के उपाय

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जांजगीर-चांपा : धान की फसल में लगने वाले कीट एवं रोग की पहचान तथा नियंत्रण के उपाय

डिजिटल डेस्क, जांजगीर-चांपा। कृषि विभाग के मैदानी सलाह पर कीट व रोग का उपचार करें जांजगीर-चांपा 29 सितम्बर 2020 जांजगीर-चाम्पा जिले में खरीफ 2020 में 2,48,000 में धान फसल की खेती की जा रही है जिसमें प्रमुख रूप से स्वर्णा, स्वर्णा सब-1, एच.एम.टी, एम.यू.टी. .1010ए एम.टी.यू.. 1001 राजेश्वरी एवं अन्य किस्म की खेती की जा रही है। वर्तमान समय में फसल पर कीटव्याधि एवं रोग लगने की प्रबल संभावना को देखते हुए किसानों को एकीकृत कीट एवं रोग प्रबंधन के बारे मे जानकारी कृषि विभाग एवं कृषि वैज्ञानिकों द्वारा दी जा रही है। उप संचालक कृषि ने बताया कि इस मौसम मे तना छेदक, भूरामाहो, गंधी कीट केे प्रकोप की प्रबल संभवाना है। इसके अलावा झुलसा, ब्लास्ट रोग, भूरी चित्ती रोग, पर्णछेदक, अभासी कंड, खैरा रोग और फाल्स स्मट रोगो की भी संभावना है। इनके उपचार के लिए कृषि वैज्ञानिको द्वारा परामर्श दिया गया है। जिले के पंजीकृत दुकानों मे इनके उपचार के लिए कीटनाशक उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि - झुलसा, ब्लास्ट रोग - यह रोग असिंचित फसल पर अधिक दिखाई देता है। इस रोग से पत्ती व तना को प्रभावित करता है। पौधें के गाठों मे काला दाग दिखाई देता है। इस रोग के उपचार के लिए कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील धूल की 15-20 ग्राम को 15 लीटर पानी में घोलकर इसका छिडकाव 10-12 दिन के अन्तराल पर किया जा सकता है। भूरी चित्ती रोग - इस रोग के कारण छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे पत्तियों पर दिखाई देते हैं। जो पत्तियों को सुखा देते हैं। इसके उपचार के लिए कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील धूल की 15 ग्राम को लगभग 15 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना होता है। पर्णछेदक सीट रोग- इसका प्रभाव पत्तियों पर दिखाई देते हैं। पत्ती की सतह पर होता है। इससे लाल रंग के धब्बा बन जाते हैंै। इस रोग के नियंत्रण के लिए फसल कटने के बाद अवशेषों को जलाने, खेतों में जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए। रोग के लक्षण दिखाई देने पर प्रोपेकोनाजोल 20 मिलीलीटर को 15 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर सकते हैं। आभासी कंड - यह फफूंदी जनित रोग है। बालियों के निकलने के बाद ही स्पष्ट होता है। रोग ग्रस्त दाने पीले से लेकर संतरे रंग के हो जाते हैं । इसके उपचार के लिए खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए। प्रोपेकोनाजोल 24 मिलीलीटर को 15-20 मिली लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना होता है । खैरा रोग- यह मिट्टी में जिंक की कमी के कारण होता है। इस रोग से पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं । इसके उपचार के लिए जिंक सल्फेट 100 ग्राम और 50 ग्राम बुझा हुआ चूना को 01 लीटर मे घोल तैयार कर घोल को 20 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं। फाल्स स्मट - इसके प्रकोप से धान की बालियों को नुकसान पहुचाता है। इसके उपचार के लिए प्रोपेकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी 1 मिली लीटर को 01 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव कर सकते है। तना छेदक - यह कीट पत्तियों मे छेद कर पौधें मे प्रवेश घुस जाती है और अंदर ही अंदर तने को खा जाती है। इसके उपचार के लिए क्लोरो 50 प्रतिशत, साईपर 5 प्रतिशत लीटर प्रति हैक्टेयर या बाईफ्रेथीन 10 प्रतिशत लीटर प्रति हेक्टेयर के द्वारा उपचार किया जाता है । गंधी कीट - यह कीट धान की कम अवधि वाले किस्म मे पाई जाती है। बाली निकलने के समय गंधी कीट का प्रकोप ज्यादा रहता है। लंबी टांगों वाले दुर्गंध युक्त होते हैं । इसके उपचार के लिए फोसलोन 35 ईसी 15 लीटर प्रति हेक्टेयर से उपचार किया जाता है। भूरामाहो - यह कीट पौधों के मूल में पानी की सतह से थोड़ा ऊपर पत्तों के घने छतरी के नीचे रहते हैं। जिसके कारण इसकी जानकारी किसानो को देर से होती है। इसके ईलाज के लिए थाइमेक्सो, लेम्डा के मिश्रण को निर्धारित मात्रा मे मिलाकर छिड़काव किया जाता है। इसके अलावा डाइनेटोफ्यूरन एसजी 250 ग्राम प्रति हेक्टर या पाईमेटरोजीन 300 ग्राम प्रति हेक्टयर या ईथयॉन 50 ई.सी1 लीटर प्रति हेक्टर का छिड़काव किया जा सकता है।

Created On :   29 Sep 2020 10:00 AM GMT

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