शहादत का अपमान, शहीद के परिजनों को 2 वर्ष बाद भी नहीं मिली जमीन

Martyrs relative did not get land possession even after two years of announcement
शहादत का अपमान, शहीद के परिजनों को 2 वर्ष बाद भी नहीं मिली जमीन
शहादत का अपमान, शहीद के परिजनों को 2 वर्ष बाद भी नहीं मिली जमीन

डिजिटल डेस्क, अनूपपुर। देश की रक्षा के लिए सीमा पर शहीद होने वाले सैनिकों के परिजनों के जीवनयापन के लिए व उनकी शहादत के सम्मान में शासन द्वारा भूमि प्रदान किए जाने की घोषणा की गई थी। जिसके परिपालन में जिला प्रशासन द्वारा आवश्यक कार्यवाही कर कागजों में भूमि का आवंटन भी कर देता है। बावजूद इसके महीनों और वर्षो बीत जाने के बाद भी इस भूमि पर सैनिकों के परिजनों का कब्जा नहीं मिल पाता है।

28 फरवरी 2006 को जिले का युवा सेना में अपनी सेवा देने के साथ ही ऑपरेशन मेघदूत में जम्मू कश्मीर में बर्फ स्खलन के दौरान शहीद हो गया था। शासन द्वारा की गई घोषणा के बाद शहादत के 10 वर्षों के बाद शहीद के परिवारजनों को 3 एकड़ भूमि प्रदान की गई। भूमि का रकबा और स्थल उनके परिजनों को बतलाया गया। वर्ष 2016 में मिली भूमि पर आज तक शहीद के परिजनों का कब्जा नहीं हो पाया है और ना ही दस्तावेज मिल पाए हैं । 2 वर्षों से कार्यालयों के चक्कर लगा रहे शहीद के माता पिता ने एक बार फिर कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर अपनी व्यथा बतलाई।

ऑपरेशन मेघदूत में शहीद
जिले के फुनगा ग्राम में निवास करने वाले विनोद कुमार सिंह 28 फरवरी 2006 में जम्मू कश्मीर में अपनी सेवा के दौरान बर्फ स्खलन में शहीद हो गए थे जिसके बाद शासन की योजना अनुसार उनकी मां श्रीमती प्रमिला सिंह को 3 एकड़ भूमि प्रदान की गई और यह भूमि खसरा नंबर 582/2 रकबा 36.340 के अंश भाग 20.23 हेक्टेयर के 1.26 6 हेक्टेयर बतलाया गया। दो वर्ष पूर्व 24 मई 2016 को कागजों में यह भूमि प्रदान कर दी गई।

न दस्तावेज मिले ना भूमि
शहीद के परिवारजनों को कागजों में ही 3 एकड़ भूमि प्रदान कर दी गई जब शहीद की मां द्वारा ऋण पुस्तिका व भूमि पर कब्जे की मांग की गई तो दफ्तरों में बैठे अधिकारियों द्वारा एक दूसरे कार्यालय की बात कही जाती रही। आज दिनांक तक उन्हें सिर्फ भूमि का नंबर व भूमि का रकबा पता है ऋण पुस्तिका एवं कब्जे के लिए शहीद का परिवार बीते 2 वर्षों से दफ्तरों के चक्कर लगा रहा है।

26 वर्षो से भटक रहा एक और परिवार
ऐसे ही एक और मामले में जिले से सबसे पहले शहीद के रूप में बसंत सिंह का नाम दर्ज है। वर्ष 1988 में श्रीलंका में ऑपरेशन पवन शांति सेना में शामिल रहे बसंत सिंह की शहादत के चार साल बाद वर्ष 1992 में शासन द्वारा 5 एकड़ भूमि प्रदान किए जाने की घोषण की गई, तब न तो भूमि मिली और न ही कब्जा। 24 वर्ष बाद वर्ष 2016 में तीन एकड़ भूमि प्रदान की गई, किन्तु इस भूमि पर गांव के ही एक अन्य व्यक्ति का कब्जा है। कब्जा पाने के लिए शहीद बसंत सिंह के पुत्र द्वारा कलेक्टर कार्यालय से लेकर गृह मंत्री तक से मांग की जा चुकी है।

 

Created On :   15 Jun 2018 11:21 AM GMT

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