पर्यटन मंत्रालय ने ‘‘देखो अपना देश’’ वेबिनार श्रृंखला के अंर्तगत "बुद्ध के पदचिन्हों पर (इन द फुटप्रिंट्स ऑफ बुद्धा)" पर अपना नवीनतम वेबिनार प्रस्तुत किया
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत का बौद्ध धर्म से गहरा नाता है। भारत की मध्य भूमि के क्षेत्रों में इस धर्म के पदचिन्ह काफी प्रसिद्ध हैं, और इन्हें दुनिया भर में भारत के बौद्ध सर्किट के रूप में जाना जाता है। भारत में बौद्ध धर्म और भगवान बुद्ध के जीवन से संबंधित स्थल बहुत हैं और ये स्थल पूरे भारत में फैले हुए हैं जो अपने आप में एक दर्शनीय गंतव्य स्थल बन जाते हैं। दुनिया भर के विभिन्न देशों में रहने वाले बौद्ध धर्म के अनुयायी बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं से संबंधित स्थानों की पावन यात्रा करने की स्वाभाविक इच्छा रखते हैं। पर्यटन मंत्रालय की ‘देखो अपना देश’ वेबिनार की श्रृंखला में "बुद्ध के पदचिन्हों पर (इन द फुटप्रिंट्स ऑफ बुद्धा)" शीर्षक से 12 सितंबर, 2020 को आयोजित हुए नवीनतम वेबिनार में शाक्य मुनि बुद्ध द्वारा दुखों पर विजय प्राप्त करने और व्यक्ति, परिवार और समाज में खुशी लाने की सच्चाई पर विचार-विमर्श किया गया। बुद्ध ने अपने निर्वाण से पहले सुझाव दिया था कि मेरी शिक्षाओं में रुचि रखने वाले लोगों को मेरे जीवन से जुड़े स्थानों की तीर्थयात्रा करना बहुत फायदेमंद साबित होगा। देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला एक भारत श्रेष्ठ भारत के तहत भारत की समृद्ध विविधता को प्रदर्शित करने का एक प्रयास है। श्री धर्माचार्य शांतम द्वारा प्रस्तुत, मार्गदर्शक शिक्षक/संस्थापक बुद्धपथ/अहिंसा ट्रस्ट ने गंगा नदी के मैदानी इलाकों में बोधगया तक आभासी यात्रा में वेबिनार के प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया। इस यात्रा में बोधगया का दर्शन कराये गए क्योंकि बोधगया वह पावन स्थल हैं जहां बुद्ध ने आत्मज्ञान प्राप्त किया, राजगीर में गिद्ध चोटी, श्रावस्ती में जटावन (जहां उन्होंने 24 वर्षा ऋतु में साधना की) जैसे स्थल जहां उन्होंने साधना की, कपिलवस्तु, जहां उन्होंने अपना बचपन बिताया, सारनाथ स्थित डियर पार्क, जहां उन्होंने अपनी पहली शिक्षाएं और कुशीनगर जहां उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। धर्माचार्य शांतम ने बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं की कथाओं को सभी प्रतिभागियों के साथ साझा किया ताकि हम एक इंसान के रूप में महात्मा बुद्ध और उनके जीवन व उनकी शिक्षा के महत्व को आसानी से समझ सकें। गौतम के बारे में कोई लिखित रिकॉर्ड उनके जीवनकाल से या उसके बाद एक या दो शताब्दियों तक नहीं मिला। लेकिन तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य से, अशोक (269 ई. पू. से 232 ई. पू. तक शासन) के कई शिलालेखों में बुद्ध का उल्लेख मिलता है, और विशेष रूप से अशोक के लुम्बिनी स्तंभ के शिलालेख में बुद्ध के जन्मस्थान के रूप में लुम्बिनी में सम्राट अशोक की तीर्थयात्रा की स्मृति का उल्लेख किया गया है, इसमें उन्हें बुद्ध शाक्य मुनि कहा गया था। बौद्ध परंपरा के अनुसार, बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुम्बिनी में क्षत्रियों के एक महान परिवार में हुआ था। बचपन में उन्हें सिद्धार्थ गौतम कहा जाता था। उनके पिता राजा ̈शुद्धोधन थे, जो कोसल देश के शाक्य कुल के प्रमुख थे और उनकी माता रानी माया देवी थीं| प्रसव के महज सात दिन बाद ही मां की मृत्यु हो जाने के बाद महात्मा बुद्ध का पालन पोषण उनकी मां की छोटी बहन महाप्रजापति गौतमी ने किया। बुद्ध की आध्यात्मिक खोज के शुरुआती विवरण पाली आर्यापर्येता-सुत्त जैसे ग्रंथों में पाए जाते हैं। इस पाठ से पता चलता है कि गौतम के त्याग का कारण उनके मन में आया यह विचार था कि उनका जीवन बुढ़ापे, रोग और मृत्यु के अधीन है लेकिन जीवन में इससे कुछ बेहतर हो सकता है (यानी मुक्ति, निर्वाण)। उस वक्त उनकी उम्र 29 साल थी, जब उनका सामना नश्वरता और पीड़ा से हुआ था। उन्होंने अपने जीवन के सभी अनुभवों से सीख लेकर, अपने पिता की इच्छा के विपरीत जाकर अर्ध रात्रि के समय में राजमहल छोड़ने का फैसला किया। और एक घूमंतु तपस्वी बनने का निर्णय लिया। प्रारंभिक बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, यह महसूस करने के बाद कि ध्यान ही आत्म जागृति का सही मार्ग है तो, गौतम ने "मध्यम मार्ग" की खोज की। मध्यम मार्ग एक ऐसा मार्ग है जो भोगासक्ति का त्याग और आत्म- वैराग्य का भाव उत्पन्न हो जाता है और कई प्रकार की अतियों से बचा जा सकता है, इसे बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि तपस्वी जीवन से उनकी विरक्ति की वजह से उनके पांच साथियों ने उनका परित्याग कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि उन्होंने अपनी खोज छोड़ दी है और अनुशासनहीन हो गए हैं। पहाड़ी के नीचे चलते हुए वह बेसु%
Created On :   14 Sep 2020 11:28 AM GMT