सुप्रीम कोर्ट: महाबोधि महाविहार का प्रबंधन बौद्धों को सौंपने वाली याचिका अदालत ने खारिज की

महाबोधि महाविहार का प्रबंधन बौद्धों को सौंपने वाली याचिका अदालत ने खारिज की
  • बौद्धों को प्रबंधन सौंपने की याचिका खारिज की
  • महाबोधि महाविहार के बारे में बड़ा फैसला लिया

Nagpur News. न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के बौद्धों के लिए आस्था का केंद्र, बिहार स्थित बोधगया को लेकर बड़ा फैसला आया। महाबोधि महाविहार के प्रबंधन को बौद्धों को सौंपने की मांग करने वाली रिट याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से इनकार कर दिया। पूर्व राज्यमंत्री एड. सुलेखा कुंभारे ने याचिका दायर की थी। इस याचिका में बोधगया टेम्पल एक्ट 1949 को असंवैधानिक घोषित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 13, 25, 26 और 29 का आधार लिया गया है। यह कानून संविधान लागू होने से पहले से अस्तित्व में है, और संविधान के अनुच्छेद 13 के अनुसार 26 जनवरी 1950 से पहले के सभी कानून रद्द किए जा सकते हैं। फिर भी, बोधगया टेम्पल एक्ट 1949 लागू है, जिसमें प्रबंधन समिति में चार बौद्ध, चार हिंदू और एक जिला अधिकारी शामिल हैं, जो संविधान के खिलाफ है और बौद्धों के मूलभूत अधिकारों का हनन करता है। संविधान का अनुच्छेद 25 प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का पालन, आचरण और प्रचार करने का अधिकार देता है, लेकिन बौद्धों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। अनुच्छेद 26 नागरिकों को अपने धार्मिक स्थलों के प्रबंधन का अधिकार देता है, जबकि अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यक समुदायों के सांस्कृतिक अधिकारों की। बोधगया टेम्पल एक्ट इन सभी संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।

इस मामले में सोमवार को हुई सुनवाई में न्या. एम.एम. सुंदरेश और न्या. के. विनोद चंद्रन की पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट में जाने की अनुमति दी। पीठ ने कहा, "हम आर्टिकल 32 के तहत याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं, हालांकि याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट में जाने की स्वतंत्रता है।

Created On :   30 Jun 2025 5:32 PM IST

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