कर्नाटक हाईकोर्ट ने बलात्कारी पिता के लिए 10 साल की जेल की सजा बरकरार रखी

Karnataka High Court upholds 10-year jail term for rapist father
कर्नाटक हाईकोर्ट ने बलात्कारी पिता के लिए 10 साल की जेल की सजा बरकरार रखी
दंड कर्नाटक हाईकोर्ट ने बलात्कारी पिता के लिए 10 साल की जेल की सजा बरकरार रखी

डिजिटल डेस्क, बेंगलुरू। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के 2016 के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें एक व्यक्ति को उसकी 13 वर्षीय बेटी का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में 10 साल कैद की सजा सुनाई गई थी। कोर्ट ने आरोपी पिता की अपील भी खारिज कर दी है। न्यायमूर्ति के.एस. मुदगल ने हाल के एक फैसले में आरोपी पिता के इस तर्क पर विचार नहीं किया कि उनकी बेटी की मौसी द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी में कई कमियां और विरोधाभास हैं।

यह देखा गया कि प्राथमिकी दर्ज करने में देरी अपराध से इंकार नहीं करती है। अपराध के समय पीड़िता की मां पूरी तरह से बिस्तर पर थी और दादी की जल्द ही मृत्यु हो गई। परिवार एक गरीब पृष्ठभूमि से आता है और पिता खुद दुर्व्यवहार करते थे। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए बेंच ने फैसला सुनाया। घटना 27 सितंबर 2014 को एचएएल थाना क्षेत्र की है। इस संबंध में पीड़िता की मौसी ने 29 सितंबर 2014 को प्राथमिकी दर्ज कराई थी।

आरोपी के खिलाफ चार्जशीट पेश की गई और एक ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को आईपीसी की धारा 376, पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराया और उसे 16 सितंबर, 2022 को 10 साल कैद की सजा सुनाई। आरोपी ने फैसले को चुनौती देते हुए दावा किया था कि शिकायत दर्ज करने में दो दिन की देरी हुई है जो कि अनुचित है।

उन्होंने यह भी दावा किया कि पीड़िता के बयान और मजिस्ट्रेट और जांच अधिकारी के समक्ष जारी गवाहों के बयान विरोधाभासी थे। आरोपी ने यह भी दावा किया कि घर पर मौजूद मां और दादी से घटना के संबंध में जांच कार्यालय ने पूछताछ नहीं की। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि प्राथमिकी में मामले की बारीकियों का अभाव है।

पीड़िता की ओर से पेश वकील ने कहा कि लड़की ने अपने पिता के बारे में बात की थी। पीड़िता की मौसी और मामा ने भी उसके सबूतों और बयानों की पुष्टि की है। मेडिकल प्रूफ भी आरोपी के खिलाफ है। शिकायत दर्ज कराने के नौवें दिन पीड़िता की मां की मौत हो गई। ऐसे मामलों में, देरी से मामला खत्म नहीं होगा।

पीठ ने कहा कि अभियुक्तों के कृत्यों के विवरण के अभाव में मामले को गलत नहीं ठहराया जा सकता। मां की मौत के बाद पीड़िता ने जल्द ही अपनी दादी को खो दिया। मामले में मुख्य आरोपी पिता है। अत: प्राथमिकी दर्ज करने में देरी का तर्क अस्वीकार्य है।

आईएएनएस

Created On :   28 Feb 2022 9:31 AM GMT

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