Parashurama Jayanti 2025: परशुराम जयंती पर बन रहे शुभ योग, जानिए पूजा विधि और मुहूर्त

- परशुराम जयंती पर तीन शुभ संयोग बन रहे हैं
- परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत में है
- परशुरामजी भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं
डिजिटल डेस्क, भोपाल। हर वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम जयंती (Parshuram Jayanti) बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। कहा जाता है कि भगवान शिव के परमभक्त परशुराम न्याय के देवता हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, परशुराम का जन्म प्रदोष काल के दौरान हुआ था और ऐसे में जिस दिन प्रदोष काल के दौरान तृतीया होती है उस दिन को उनके जन्मदिन के रूप में परशुराम जयंती मनाई जाती है।
मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन जो कुछ दान किया जाता है वह अक्षय रहता है, वह कभी भी क्षय नहीं होता है। ज्योतिषियों के अनुसार, इस साल परशुराम जयंती पर तीन शुभ योगों का संयोग बन रहा है। आइए जानते हैं मुहूर्त और पूजा विधि...
परशुराम जयंती मुहूर्त
तृतीया तिथि आरंभ: 29 अप्रैल 2025, मंगलवार की शाम 05 बजकर 31 मिनट पर
तृतीया तिथि समापन: 30 अप्रैल 2025, बुधवार की दोपहर 02 बजकर 12 मिनट पर
बन रहे ये तीन संयोग
परशुराम जयंती के दिन सौभाग्य योग 03 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। वहीं त्रिपुष्कर योग सुबह 05 बजकर 42 बजे से शाम 05 बजकर 31 बजे तक रहेगा। जबकि, सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 05 बजकर 42 बजे से शाम 06 बजकर 47 बजे तक रहेगा।
इन पुराणों में उल्लेख
परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। पुराणों के अनुसार भगवान राम के शौर्य, पराक्रम और धर्मनिष्ठा को देख कर भगवान परशुराम हिमालय चले गए थे। उन्होंने बुद्धिजीवियों और धर्मपुरुषों की रक्षा के लिए उठाया परशु त्याग दिया था।
परशुराम नाम का मतलब
परशुराम का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है। परशु का मतलब है कुल्हाड़ी और राम, अर्थात कुल्हाड़ी के साथ राम। जैसे राम भगवान विष्णु के अवतार है, वैसे ही परशुराम भी भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हीं की तरह ही शक्तिशाली भी हैं। परशुराम को अनेक नामों जैसे रामभद्र, भृगुपति, भृगुवंशी आदि से जाना जाता है। परशुराम महर्षि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका के पांचवे पुत्र थे।
पूजा विधि
- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवत्त होकर साफ कपड़े पहनें।
- इसके बाद सूर्यदेव को जल का अर्घ्य दें और भगवान परशुराम की पूजा उपासना करें।
- भगवान को पीले रंग के पुष्प और पीले रंग की मिठाई अर्पित करें। - अंत में आरती कर परिवार के कुशल मंगल की कामना करें।
- इस दिन व्रत करने वाले साधक को निराहार रहना चाहिए।
- संध्या काल में आरती-अर्चना करने के बाद फलाहार करें।
- अगले दिन पूजा-पाठ के पश्चात भोजन ग्रहण करें।
डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।
Created On :   28 April 2025 4:30 PM IST