अहमद पटेल ने एक समुदाय को निशाना बनाए जाने पर एनएचआरसी की चुप्पी पर सवाल उठाए

Ahmed Patel questions NHRCs silence over targeting a community
अहमद पटेल ने एक समुदाय को निशाना बनाए जाने पर एनएचआरसी की चुप्पी पर सवाल उठाए
अहमद पटेल ने एक समुदाय को निशाना बनाए जाने पर एनएचआरसी की चुप्पी पर सवाल उठाए

नई दिल्ली, 4 मई (आईएएनएस)। समाज के कुछ हिस्सों और मीडिया द्वारा मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के बीच कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की चुप्पी पर सवाल उठाया है जो मानव अधिकारों के लिए काम करने वाला शीर्ष निकाय है।

पटेल ने सोमवार को कहा कि भाजपा और उसके कुछ मुख्यमंत्रियों द्वारा कोविड-19 प्रसार को लेकर समुदाय विशेष पर कलंक लगाए जाने पर एनएचआरसी ने चुप्पी साधे रखी।

हालांकि, पटेल ने मुसलमानों का नाम नहीं लिया, लेकिन वे स्पष्ट रूप से विभिन्न माध्यमों से मुस्लिम विक्रेताओं के उत्पीड़न की बात कर रहे थे।

अहमद पटेल ने कहा कि इस तरह की बात डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों के विपरीत है।

निजामुद्दीन मरकज की घटना के बाद तब्लीगी जमात को एक राजनीतिक पार्टी और मीडिया द्वारा वायरस के प्रसार के लिए दोषी ठहराया गया और इसके परिणामस्वरूप समुदाय को लोगों द्वारा कलंकित किया गया है। यहां तक कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के दो विधायकों ने कथित तौर पर लोगों को मुस्लिम विक्रेताओं से सब्जियां नहीं खरीदने के लिए कहा और मध्य प्रदेश में एक गांव में एक पोस्टर लगाया गया कि मुस्लिम व्यापारियों को व्यापार करने की अनुमति नहीं है। मप्र सरकार ने एफआईआर दर्ज करके कार्रवाई की है और उत्तर प्रदेश में भाजपा इकाई ने भी उक्त विधायक को नोटिस जारी किया है।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष ने गरीब प्रवासियों के जबरन पलायन पर भी राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की चुप्पी पर सवाल उठाया है।

उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, एनएचआरसी की चुप्पी आश्चर्यजनक है। इस महामारी के दौरान दो बड़े मानवाधिकारों का हनन हुआ है और हमने अभी तक इस संवैधानिक निकाय से इस बारे में कुछ नहीं सुना है - गरीब प्रवासियों के पैदल चलकर पलायन करने और एक समुदाय को डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों के विपरीत जाकर कलंकित करना।

कांग्रेस लॉकडाउन के दौरान पलायन के मुद्दे को बड़े पैमाने पर उठाती रही है और उसने आरोप लगाया है कि लॉकडाउन ने लोगों को परेशान किया है क्योंकि बिना किसी रणनीति के जल्दबाजी में इसकी घोषणा की गई थी।

सोनिया गांधी ने सोमवार को अपने बयान में कहा, केंद्र सरकार ने लॉकडाउन की सूचना बमुश्किल चार घंटे पहले दी, जिसने श्रमिकों और प्रवासी मजदूरों को अपने घरों में लौटने के अवसर से वंचित कर दिया। 1947 के विभाजन के बाद, यह पहली बार है जब भारत ने इतने बड़े पैमाने पर ऐसी मानवीय त्रासदी देखी, जिसमें हजारों प्रवासी श्रमिकों और मजदूरों को कई सौ किलोमीटर पैदल चलने के लिए मजबूर किया गया, वो भी बिना भोजन, बिना दवा, बिना पैसे के और बिना परिवहन के। वे केवल अपने परिवार और प्रियजनों के पास लौटने की इच्छा के साथ रास्ते पर निकले।

Created On :   4 May 2020 3:30 PM IST

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