9 साल में महासागरों में कई गुना बढ़ा प्लास्टिक कचरा, इस प्रदूषण से न सिर्फ पानी में रहने वाले जानवर बल्कि इंसानों के सिर भी मंडरा रहा बड़ा खतरा

Plastic waste has emerged as a big problem in front of the world, so many trillions of pollution
9 साल में महासागरों में कई गुना बढ़ा प्लास्टिक कचरा, इस प्रदूषण से न सिर्फ पानी में रहने वाले जानवर बल्कि इंसानों के सिर भी मंडरा रहा बड़ा खतरा
नई आफत 9 साल में महासागरों में कई गुना बढ़ा प्लास्टिक कचरा, इस प्रदूषण से न सिर्फ पानी में रहने वाले जानवर बल्कि इंसानों के सिर भी मंडरा रहा बड़ा खतरा
हाईलाइट
  • जलीय जीव हो रहे हैं प्रभावित

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्लास्टिक दुनिया के लिए खतरा बनता जा रहा है फिर भी यह धड़ल्ले से मार्केट में खुलेआम मिल रहा है। अब इसी को लेकर कुछ शोधकर्ताओं ने जानकारी हासिल की है। जो मानव जाति के लिए चिंता का सबब बन गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया कि अगर इस बार जल्द से जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो स्थिति खराब हो सकती है। 

रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 15 सालों से महासागरों में रिकॉर्ड स्तर पर प्रदूषण पहुंच गया है। रिसर्च के मुताबिक, करीब डेढ़ दशक के पहले से कहीं ज्यादा महासागरों में प्लास्टिक फैल चुका है। जिसकी वजह से मानव के जीवन और जलीय जीव पर सीधे तौर पर असर पड़ रहा है। पर्यावरण शोधकर्ताओं की मानें तो साल 2014 में महासागरों में 5 ट्रिलियन प्लास्टिक कचरा था जबकि मौजूदा समय में 170 ट्रिलियन तक पहुंच गया है।

दरअसल, पर्यावरण को सही मायनों में समझने वाले शोधकर्ताओं ने चिंता जताई है। कैलिफोर्निया की फाइव गाइरेंस इंस्टीट्यूट की लिसा एम एर्डल और मार्कस एरिक्सन, मूर इंस्टीट्यूट फॉर प्लास्टिक पॉल्यूशन रिसर्चे के विन काउगर और स्वीडन की पेट्रीसिया विलाररूबिया-गोमेज़ ने जल्द से जल्द महासागरों से प्लास्टिक निकालने की बात कही है। ताकि जलीय जीव को समय रहते ही बचाया जा सके,नहीं तो बड़ी मुसीबत आ सकती है।  

विलाररूबिया-गोमेज़ का दावा

स्वीडन की पेट्रीसिया विलाररूबिया-गोमेज़ ने इस पूरे मामले पर कहा कि अगर दुनिया को प्लास्टिक प्रदुषण से निजात पाना है तो इसकी उपयोगिता बंद करनी  होगी। हमने रिसर्च में जिस तरह की उम्मीद पाई थी उसके ठीक विपरीत आया और हम सबको को आश्चर्यचकित कर दिया। विलाररूबिया-गोमेज़ ने आगे कहा कि फिलहाल महासागरों की स्थिति बेहद ही खराब है। हम अगर साल 2014 से आज की स्थिति की तुलना करें तो जमीन आसमान का फर्क है। पिछले रिसर्च में समुद्र में 5 ट्रिलियन प्लास्टिक पाया गया था जबकि हाल फिलहाल के रिसर्च में ये आंकड़े लंबी छलांग लगाते हुए 170 ट्रिलियन के आंकड़े को पार कर गया है। जो दुनिया के सभी सरकारों के लिए नई मुसीबत ला सकता है।

लिसा एम एर्डल ने जताई चिंता

कैलिफोर्निया में स्थित फाइव गाइरेंस इंस्टीट्यूट की लिसा एम एर्डल ने न्यूज एजेंसी एएफपी से बातचीत में बताया कि मैंने महासागरों में प्रदुषण को लेकर पाया कि साल 2005 से इस घटनाक्रम में काफी तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। महासागरों में प्रदुषण को रोकने के लिए कई रणनीतियां है लेकिन इस बात पर कोई अमल नहीं करता। जिसकी वजह से आज हमारे महासागरों की स्थिति बद से बदत्तर होती जा रही है। 

लिसा ने कहा कि साल 2005 से हमने 5,000,000 टन से ज्यादा नए प्लास्टिक का उत्पादन किया है। जिसकी वजह से प्रदूषण खूब पनपा है। उन्होंने आगे बताया कि हमने जिन महासागरों को लेकर जांच की उनका नाम उत्तरी अटलांटिक, दक्षिण अटलांटिक, उत्तरी प्रशांत, दक्षिण प्रशांत, भारतीय और भूमध्यसागरीय महासागर है। लिसा ने जोर देते हुए कहा कि, अगर आने वाले दिनों में हम इस प्लास्टिक प्रदुषण को नहीं रोकते हैं तो हमारे जीवन के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। अगर हम कोई कड़ा निर्णय लेते हैं तो साल 2040 तक जलीय वातावारण में बहने वाले प्लास्टिक को 2.6 गुने की बढ़ोत्तरी को रोक सकते हैं नहीं तो स्थिति और भयावह हो सकती है

जलीय जीव हो रहे हैं प्रभावित

लिसा ने जलीय वातावरण को दूषित देख कहती है कि जल में रहने वाले जीव को यह प्रदूषण काफी हद तक इफेक्ट कर रहा है। जिसकी वजह से व्हेल और डॉल्फिन के आयु सीमा कम होती जा रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये विलुप्त होने की कगार पर आ सकती हैं।

इन दोनों पर्यावरण शोधकर्ताओं के अलावा दुनिया भर के रिसर्च ने महासागरों में हो रहे प्रदूषण को लेकर चिंता जाहिर की है। अगर हम अपने देश की बात करें तो भारत में भी काफी मात्रा में प्रदूषण समुद्र, बीच, नदी एवं तालाब सहित कई जगहों पर प्लास्टिक के अंबार लगे हुए हैं। भारत सरकार ने 1 जुलाई 2022 को देश में पॉलीथिन तो बैन कर दिया था लेकिन इसका असर अब तक कुछ खास देखने को नहीं मिल पाया है।

इंसानों को खतरा

महासागरों में बढ़ रहे प्रदूषण की वजह से सीधे तौर पर मानव के जीवन पर असर पड़ेगा।

  • समूद्र में प्लास्टिक की अधिक मात्रा होने की वजह से वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा अधिक बढ़ जाएगी।
  • कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ने की वजह से सीधे तौर पर पेड़ पौधों को इफेक्ट करेगा, जिसकी वजह से पेड़-पौधे अधिक मात्रा में पानी एवं खनिज लवण को अवशोषित करेंगे।
  • सही समय पर खनिज लवण न मिलने की वजह से पेड़-पौधे सुखने लगेंगे। जो मानव के जीवन पर सीधे तौर पर असर डाल सकते हैं।
  • अगर पेड़-पौधे सुखने लगेंगे तो मानव को ऑक्सीजन की समस्या से दो चार होना पड़ेगा और इंसानों की जीवन संकट में पड़ सकती है।

Created On :   3 April 2023 12:13 PM GMT

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