बिहार चुनाव बोचाहा में दलित मतदाताओं पर टिकी नजरें, जातीय समीकरण और विकास भी चुनौतियां

बिहार चुनाव  बोचाहा में दलित मतदाताओं पर टिकी नजरें, जातीय समीकरण और विकास भी चुनौतियां
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की बोचाहा विधानसभा सीट राजनीति में एक अलग पहचान रखती है। यह अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है और मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। ग्रामीण स्वरूप वाला यह इलाका बिहार की दलित राजनीति, विरासत और सामाजिक समीकरणों की जटिल कहानी कहता है।

पटना, 24 अक्टूबर (आईएएनएस)। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की बोचाहा विधानसभा सीट राजनीति में एक अलग पहचान रखती है। यह अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है और मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। ग्रामीण स्वरूप वाला यह इलाका बिहार की दलित राजनीति, विरासत और सामाजिक समीकरणों की जटिल कहानी कहता है।

बोचाहा प्रखंड के 13 ग्राम पंचायतों और मीनापुर प्रखंड के मुसहरी विकास खंड के 22 ग्राम पंचायतों को मिलाकर बना यह विधानसभा क्षेत्र एक कृषि प्रधान इलाका है।

चुनाव आयोग की ओर से 2024 में जारी आंकड़ों के अनुसार, यहां की कुल आबादी 4,91,370 है, जिनमें 2,55,935 पुरुष और 2,35,435 महिलाएं शामिल हैं। वहीं, कुल मतदाताओं की संख्या 2,84,874 है, जिसमें 1,50,362 पुरुष, 1,34,506 महिलाएं और 6 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं।

बोचाहा मूल रूप से कृषि आधारित है। यहां की प्रमुख फसलें मक्का, धान और सब्जियां हैं। साथ ही डेयरी व्यवसाय और लघु व्यापारिक नेटवर्क भी स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं। ग्रामीण सड़कें अब भी संकरी हैं और टोले-गांवों को जोड़ने वाली पगडंडियां यहां आम दृश्य हैं। मुसहरी क्षेत्र के कुछ हिस्सों में मतदाताओं का झुकाव अर्ध-शहरी जीवनशैली की ओर दिखता है, मगर पूरी सीट की पहचान अब भी ग्रामीण है।

इस विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1967 में हुई थी और तब से लेकर अब तक यहां 16 चुनाव हो चुके हैं (जिनमें 2009 और 2022 के उपचुनाव शामिल हैं)। अब तक इस सीट पर सबसे ज्यादा 5 बार जीत राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के खाते में गई है। इसके अलावा संयुक्त समाजवादी पार्टी, जनता पार्टी और जनता दल ने दो-दो बार, जबकि हिंदुस्तानी शोषित दल, लोकदल, जदयू, वीआईपी और निर्दलीय प्रत्याशी ने एक-एक बार जीत दर्ज की है।

इस सीट के सबसे प्रभावशाली नेता रहे रमई राम, जिन्होंने बोचाहा को राज्य की दलित राजनीति के केंद्र में ला दिया। उन्होंने 1972 में हिंदुस्तानी शोषित दल से पहला चुनाव जीता था और 1980 से 2010 तक लगातार जनता पार्टी, लोकदल, जनता दल, राजद और जदयू के टिकट पर जीत दर्ज की। वे कई बार मंत्री भी रहे। हालांकि, 2015 और 2020 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

यहां पर 2022 में उपचुनाव हुआ, जिसमें रमई राम के बेटे अमर पासवान ने राजद के टिकट पर जीत हासिल की और अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभाला।

बोचाहा सीट का समीकरण पारंपरिक रूप से दलित मतदाताओं पर केंद्रित रहा है, लेकिन यादव, कुशवाहा, पासवान और मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यहां जातीय आधार पर वोटिंग का चलन है, और विकास से ज्यादा विरासत व पहचान की राजनीति असर डालती रही है।

बोचाहा में आज भी मूलभूत सुविधाओं की कमी प्रमुख मुद्दे हैं। यहां सड़क और जल निकासी की स्थिति खराब है। बेरोजगारी और पलायन लगातार बढ़ रहे हैं। किसानों को फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा। ग्रामीण इलाकों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं। वहीं, युवाओं में स्थानीय विकास की उम्मीद और राजनीतिक परिवर्तन की चाह भी दिखाई देती है।

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Created On :   24 Oct 2025 4:41 PM IST

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