राजनीति: न्यायिक आदेश बाधा, सरकार एफआईआर दर्ज करने में लाचार जस्टिस वर्मा मामले पर उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली, 6 जून (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन जज के आवास से नोटों के बंडल मिलने संबंधी मामले पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को कहा कि आज की सरकार लाचार है। वह एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती, क्योंकि एक न्यायिक आदेश बाधा है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह आदेश तीन दशक से भी अधिक पुराना है। वह लगभग अभेद्य सुरक्षा प्रदान करता है। जब तक न्यायपालिका के सर्वोच्च स्तर पर कोई पदाधिकारी अनुमति नहीं देता, एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती। मैं स्वयं से एक सवाल पूछता हूँ, पीड़ा में, चिंता में, व्याकुलता में कि वह अनुमति क्यों नहीं दी गई? यह तो न्यूनतम कदम था, जो सबसे पहले उठाया जाना चाहिए था।”
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारी न्याय प्रणाली एक अत्यंत पीड़ादायक घटना से जूझ रही है, जो मार्च मध्य में दिल्ली में एक कार्यरत न्यायाधीश के निवास पर हुई थी। वहां नकदी बरामद हुई, जो स्पष्ट रूप से अवैध, बेहिसाब थी। यह जानकारी 6-7 दिन बाद सार्वजनिक हुई। उन्होंने कहा कि कल्पना कीजिए, यदि यह जानकारी बाहर नहीं आती, तो क्या होता? हमें यह भी नहीं पता चलता कि यह एकमात्र मामला है या और भी मामले हैं। जब भी इस तरह की बेहिसाब नकदी मिलती है, तो हमें यह जानना चाहिए कि यह पैसा किसका है। इसकी मनी ट्रेल क्या है? क्या इस पैसे ने न्यायिक कार्य में प्रभाव डाला? यह सब केवल वकीलों की चिंता नहीं, आम जनता की भी चिंता है।
गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट के एक तत्कालीन जज के घर में आग लगने की घटना हुई थी। आग बुझाने के दौरान फायर ब्रिगेड को वहां एक कमरे में रखे नोटों के बंडल मिले थे। शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के सदस्यों से बातचीत करते हुए
उपराष्ट्रपति ने कहा, “अगर कोई ऐसा अपराध हुआ है, जो लोकतंत्र और कानून के शासन की नींव को हिला देता है, तो उसे दंड क्यों नहीं मिला? हम तीन महीने से अधिक समय खो चुके हैं और जांच की शुरुआत भी नहीं हुई। जब भी आप अदालत जाते हैं, वे पूछते हैं एफआईआर में देरी क्यों हुई? क्या न्यायाधीशों की समिति को संवैधानिक या वैधानिक मान्यता प्राप्त है? क्या उसकी रिपोर्ट से कोई ठोस कार्यवाही हो सकती है? अगर संविधान में न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया लोकसभा या राज्यसभा में प्रस्ताव द्वारा ही निर्धारित है, तो यह समिति उस प्रक्रिया या एफआईआर का विकल्प नहीं हो सकती। अगर हम खुद को लोकतंत्र का दावा करते हैं, तो हमें यह मानना होगा कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही केवल कार्यकाल के दौरान अभियोजन से छूट है, किसी और को नहीं। अब अगर ऐसा कोई कृत्य, जो अपराध है, सामने आता है और उसके पीछे नकदी की बात सुप्रीम कोर्ट द्वारा सामने लाई जाती है, तो उस पर कार्यवाही क्यों नहीं?”
उपराष्ट्रपति ने कहा, “देशभर की बार एसोसिएशन इस मुद्दे को उठा रही हैं। मुझे आशा है कि एफआईआर दर्ज होगी। अनुमति पहले दिन दी जा सकती थी, दी जानी चाहिए थी। रिपोर्ट के बाद तो कम से कम दी ही जानी थी। क्या यह अनुमति न्यायिक पक्ष से दी जा सकती थी? न्यायिक पक्ष में जो हुआ है वह सबके सामने है। मैं पूर्व मुख्य न्यायाधीश का आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने दस्तावेजों को सार्वजनिक किया। हम यह कह सकते हैं कि नकदी की जब्ती हुई, क्योंकि रिपोर्ट कहती है और रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक की। हमें लोकतंत्र के विचार को नष्ट नहीं करना चाहिए। हमें अपनी नैतिकता को इस कदर गिराना नहीं चाहिए। हमें ईमानदारी को समाप्त नहीं करना चाहिए।”
धनखड़ ने कहा, “मैं राजस्थान उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन का पूर्व अध्यक्ष रहा हूं। शायद यह पहला मौका है जब हम इस तरह एकत्र हुए हैं। लोकतंत्र में वकीलों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। और जब न्याय प्रणाली खतरे में हो, बार के सदस्यों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।”
धनखड़ ने लोकतांत्रिक समाज की महत्ता पर बल देते हुए कहा कि अगर कानून के समक्ष समानता और शासन का सिद्धांत कुछ लोगों के लिए समाप्त हो जाए, अगर कुछ लोग कानून से ऊपर, जांच से परे हों तो यह लोकतंत्र को गंभीर रूप से कमजोर करता है। उन्होंने कहा कि भारतीय नागरिकों की सबसे बड़ी शक्ति है, तब तक निर्दोष माने जाना, जब तक दोष सिद्ध न हो। इसलिए मैं किसी को दोषी नहीं ठहरा रहा। लेकिन जांच अवश्य होनी चाहिए। क्योंकि जब परदा उठेगा, हमें नहीं पता कितने लोग सामने आएंगे।
उन्होंने कहा, “यदि यह पैसे न्यायिक कार्य से जुड़े हुए हैं, अगर निर्णय पैसे से प्रभावित होते हैं तो वह दिन कम से कम मैं नहीं देखना चाहता और कोई सांसद देखना नहीं चाहेगा जब तक कि वह स्वयं उसमें शामिल न हो।”
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Created On :   6 Jun 2025 8:20 PM IST