मध्यप्रदेश चुनाव परिणाम: वो पांच वजह जिसके चलते मध्यप्रदेश में बंपर जीत के करीब पहुंची बीजेपी, सौ के आंकड़े से पहले ही सिमट गई कांग्रेस

वो पांच वजह जिसके चलते मध्यप्रदेश में बंपर जीत के करीब पहुंची बीजेपी, सौ के आंकड़े से पहले ही सिमट गई कांग्रेस
  • बंपर जीत की तरफ बढ़ रही बीजेपी
  • सही प्लान से मिला फायदा
  • लाड़ली बहना साबित हुई गेमचेंजर

डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आना शुरु हो गए हैं। शुरूआती रुझानों में बीजेपी एक बार फिर सत्ता पर काबिज होती नजर आ रही है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक बीजेपी 230 सीटों में से बहुमत का आंकड़ा पार करते हुए 151 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। आइए जानते हैं उन 5 कारणों को जिनके चलते बीजेपी दोबारा प्रदेश में सरकार बनाते हुए दिखाई दे रही है।

लाड़ली बहना

मध्यप्रदेश में बीजेपी की दोबारा वापसी का मुख्य कारण उसकी लाड़ली बहना योजना है, जिसे गेमचेंजर माना जा रहा है। इस योजना से राज्य की करीब 1.25 करोड़ महिलाओं लाभांवित हो रही हैं। बीजेपी को चुनाव में इसका फायदा भी होता नजर आ रहा है। इस बार के वोटिंग प्रतिशत में महिला वोटिंग में 10 फीसदी का इजाफा भी हुआ था। तभी से कई राजनैतिक विश्लेषक इस बात का अंदाजा लगा रहे थे कि बीजेपी को इस योजना से बड़ा फायदा होने वाला है।

सांसदों को चुनाव में उतारना

सत्ता विरोधी लहर, कार्यकर्ताओं में नाराजगी, गुटबाजी को देखते हुए बीजेपी हाईकमान ने इस बार के चुनाव में राज्य के 7 सांसदों को उतारने का फैसला किया था। यह फैसला पार्टी के हक में जाता हुआ नजर आ रहा है। इन सात में से छह सांसद फिलहाल जीत की ओर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। यह सांसद हैं प्रहलाद सिंह पटेल नरसिंहपुर से, नरेंद्र सिंह तोमर दिमनी से, राव उदयप्रताप सिंह गाडरवारा से, रीति पाठक सीधी से, राकेश सिंह जबलपुर से और गणेश सिंह सतना से आगे हैं। इनमें से केवल मंडला के निवास से उम्मीदवार फग्गन सिंह कुलस्ते पीछे चल रहे हैं।

आदिवासी और हिंदू वोटरों को साधना

इस चुनाव में चाहे वो कांग्रेस हो या बीजेपी ये मानकर चल रहे थे कि अगर उनके पक्ष में आदिवासी वोटर आए तो उनकी सरकार बनना निश्चित है। यहां की कुल 230 विधानसभा सीटों में से आदिवासी वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। वहीं बात करें इस समुदाय के मतदाताओं की तो उनकी संख्या करीब 2 करोड़ है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार का बड़ा कारण आदिवासी वोटरों का उसे सपोर्ट न करना रहा है। उस चुनाव में बीजेपी इन 47 सीटों में से केवल 17 जीत पाई थी। जबकि इससे पहले हुए 2008 और 2013 के चुनाव जिनमें बीजेपी ने जीत हासिल की थी उनमें उसे 29 और 31 सीटें मिलीं थीं।

इन्हीं आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने इन सीटों पर इस बार ज्यादा फोकस किया। बिरसा मुंडा की जयंती पर बड़ा कार्यक्रम आयोजित करना, पैसा कानून लागू करना और पीएम मोदी से लेकर राज्य और केंद्र के नेताओं का इन विधानसभा क्षेत्रों में बार-बार रैली और कार्यक्रमों का आयोजन कराना बीजेपी का इस सुमदाय को दोबारा अपने पक्ष में करने का ही प्रयास था। जिस तरह के नतीजे आ रहे हैं उससे यह लग भी रहा है कि आदिवासी मतदाताओं ने इस बार बीजेपी को जमकर वोट दिया है।

वहीं सत्ताधारी बीजेपी ने इस बार हिंदू वोटरों को भी साधने के लिए कई घोषणाएं की। महाकाललोक कॉरिडोर के बाद प्रदेश में उसी की तर्ज पर अन्य धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार करने का ऐलान बीजेपी की तरफ से किया गया। हिंदू वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए मंदसौर में पशुपतिनाथ लोक कॉरिडोर, सलकनपुर में शक्तिलोक कॉरिडोर और ओरछा में रामराजा कॉरिडोर बीजेपी सरकार की इसी योजना का हिस्सा हैं।

एमपी के मन में मोदी

इस कैंपेन के जरिए बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान के चेहरे से नाराज चल रहे पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को सीधे मोदी के लिए चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया। एमपी के मन में मोदी नारे के साथ पार्टी कार्यकर्ता मतदाताओं के पास गए और वोट मांगे। इस बार के चुनाव में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन का यह भी बड़ा कारण सामने आ रहा है।

सीएम फेस क्लीयर न करना

चुनाव से पहले पार्टी में सीएम चेहरे के लिए शिवराज के नाम पर एंटीइन्कंबेंसी और पार्टी कार्यकर्ताओं व उम्मीदवारों में नाराजगी नजर आ रही थी। जिसके चलते पार्टी आलाकमान ने आंतरिक कलह और गुटबाजी से बचने के लिए इस चुनाव में उन्हें या किसी अन्य को सीएम फेस डिक्लेयर ही नहीं किया।

Created On :   3 Dec 2023 7:37 AM GMT

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