चैपमैन का योगदान कभी भी भुलाया नहीं जा सकता : एआईएफएफ

Chapmans contribution can never be forgotten: AIFF
चैपमैन का योगदान कभी भी भुलाया नहीं जा सकता : एआईएफएफ
चैपमैन का योगदान कभी भी भुलाया नहीं जा सकता : एआईएफएफ
हाईलाइट
  • चैपमैन का योगदान कभी भी भुलाया नहीं जा सकता : एआईएफएफ

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ (एआईएफएफ) ने भारतीय टीम के पूर्व कप्तान काल्र्टन चैपमैन के निधन पर शोक व्यक्त किया है। कैपमैन ने सोमवार सुबह आखिरी सांस ली। वह 49 साल के थे। एआईएफएफ अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल ने एक बयान में कहा, चैपमैन के निधन की खबर सुनकर काफी दुख पहुंचा है। भारतीय फुटबाल में उनको योगदान भुलाया नहीं जा सकता।

वहीं एआईएफएफ महासचिव कुशल दास ने कहा, चैपमैन गिफ्टेड खिलाड़ी थे। उन्होंने अपनी कोचिंग से कई युवा खिलाड़ियों को प्रेरित किया है। भगवान उनकी आत्म को शांति दे। चैपमैन की कप्तानी में 1997 में भारतीय फुटबाल टीम सैफ चैम्पियंस ट्रॉफी का खिताब जीता था। भारत के लिए उन्होंने 39 मैच खेले और छह गोल किए, जिसमें से पांच तब किए जब वो टीम के कप्तान थे। वह भारत की उस टीम का हिस्सा थे जिसने मद्रास में खेले सैफ खेल (1995), कोच्चि में नेहरू कप (1997) और मडगांव में खेले गए सैफ चैम्पयनिशप (1999) में जीत हासिल की थी।

टाटा फुटबाल अकादमी (टीएफए) से निकले चैपमैन अपने दिनों में देश के जाने-माने मिडफील्डर थे। 1991 में उन्होंने टीएफए का दामन थामा और तीन साल बाद वह ईस्ट बंगाल चले गए जहां से खेलते हुए उन्होंने ईराक के फुटबाल कल्ब अल जावरा के खिलाफ हैट्रिक लगाई। जेसीटी मिल्स के साथ 1995 से खेलते हुए उन्होंने 14 टूर्नामेंट जीते। 1997-98 में एक सत्र एफसी कोच्चिन के साथ खेला और फिर वापस ईस्ट बंगाल आ गए। 2001 में उनकी कप्तानी में टीम ने नेशनल फुटबाल लीग का खिताब जीता। इसके बाद उन्होंने पेशेवर फुटबाल से संन्यास की घोषणा कर दी। भारत के लिए वह 1995 से 2001 तक बतौर मिडफील्डर खेले। संन्यास लेने के बाद वह टीएफए टीम के कोच बने। दिसंबर 2017 में उनको कोझिकोड स्थित क्वार्टज इंटरनेशनल फुटबाल अकादमी का तकनीकी निदेशक बनाया गया।

ईस्ट बंगाल के साथ उन्होंने कलकत्ता प्रीमियर लीग (1993, 1998-2000), आईएफए शील्ड (1994, 2000), डुरंड कप, रोवर्स कप, कलिंगा कप जीती। 2001 में संन्यासे लेने से पहले नेशनल फुटबाल लीग भी जीती। घरेलू स्तर पर चैपमैन ने बंगाल के साथ संतोष ट्रॉफी (1993-94, 1998) जीती। उन्होंने इसके अलावा 1999 और 2000 में भी राज्य का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने संतोष ट्रॉफी में इतिहास का पहला गोल्डन गोल किया जो गोला में 1995 में किया गया था।

Created On :   12 Oct 2020 3:00 PM IST

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