गौरव: 2 विश्व धरोहर होने के साथ रायसेन में पर्यटन की असीम संभावनाएं

2 विश्व धरोहर होने के साथ रायसेन में पर्यटन की असीम संभावनाएं
  • सत्य, अहिंसा और शांति का मार्ग दिखाता सांची स्तूप
  • द ग्रेट वॉल आफ इंडिया
  • भीमबैठका के शैलचित्र

डिजिटल डेस्क, भोपाल। पुरासम्पदाओं और शैलचित्रों से समृद्ध रायसेन जिला मध्यप्रदेश में एकमात्र ऐसा जिला है जिसे दो विश्व धरोहर होने का गौरव प्राप्त है। भीमबैठका के शैलचित्र आदिम जीवन शैली को समझने का अवसर देती है,तो वहीं सांची में बौद्ध स्तूप सत्य, अहिंसा और शांति का मार्ग दिखाते है। जितनी बड़ी संख्या में रॉक सेल्टर और रॉक पेंटिंग रायसेन जिले में है, उतनी शायद देश के किसी अन्य जिले तथा दूसरे देशों में कहीं नहीं है। ऐतिहासिक काल में बनी ये पेटिंग आज भी अपने मूल स्वरूप में विद्यमान है। रायसेन जिले के विशाल भू-भाग में फैले रॉक सेल्टर में वृहद संख्या में बनी रॉक पेंटिंग को देखते हुए रायसेन जिले को धरोहरों की राजधानी भी कहा जा सकता है।जिले में विश्व धरोहर साँची बौद्ध स्तूप तथा भीमबैठका के साथ ही प्रसिद्ध भोजपुर शिव मंदिर, रायसेन किला,जामवंत गुफा,आशापुरी मंदिर,द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया, तथा सतधारा-सोनारी, रणभैंसा शैलचित्र,रानी कमलापति का महल सहित अनेक दर्शनीय स्थल है।

साँची बौद्ध स्तूप:

रायसेन जिले के साँची में बौद्ध स्तूप दुनियाभर में बौद्ध धर्मविलंबियों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। पुरातत्व की दृष्टि से इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में शामिल किया गया हैं। यहां कई बौद्ध स्मारक हैं। जो तीसरी शताब्दी ई.पूर्व से बारहवीं शताब्दी के बीच के बताये जाते है। साँची का महान मुख्य स्तूप सम्राट अशोक ने तीसरी सदी ई.पूर्व में बनवाया था। इसके केंद्र मे एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित गोलाकार ढाँचा था। स्तूप परिसर स्थिर मंदिर में भगवान बुद्ध के अनुयायी सारिपुत्त तथा महामोदगलायन की पवित्र अस्थियां रखी गई है। साँची के स्तूपों का मुख्य आकर्षण सातवाहन तोरण द्वार है। स्तूप में एक अर्धगोलाकार गुंबद है जो इस स्थल का मुख्य आकर्षण है, यहां छोटे बड़े अनेक स्तूप हैं।

भीमबैठका: यूनेस्को ने 2003 में घोषित किया वर्ल्ड हेरिटेज:

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 40 किमी दूर रायसेन जिले के औबेदुल्लागंज को पर्यटन की दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त है। इसका कारण यहां विश्व धरोहर भीमबैठिका का होना है। जिसे देखने देश-दुनिया से सैलानी और शोधार्थी आते हैं। भीमबैठका औबेदुल्लागंज से 9 किमी दूर है, यह एक पाषाण आश्रय स्थल है। यह स्थल एक आर्कियोलॉजिकल साइट,पाषाण काल और भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन जीवन दृष्टी को दर्शाने वाली जगह है। यहां रॉक शेल्टर में वृहद संख्या में बनी पेंटिंग और शैल चित्रों के कई शैलाश्रय समूह हैं,जो आज भी अपने मूल स्वरूप में विद्यमान हैं। यूनेस्को।द्वारा इसे वर्ष 2003 में विश्व धरोहर वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया गया हैं।

भोजपुर शिव मंदिर:

भोजपुर स्थित परमारकालीन मंदिर देश-विदेश में उत्तर का सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है। इस शिव मंदिर को दुनिया के सबसे बड़े शिवलिंग के रूप में पहचाना जाता है। गर्भगृह में स्थित 7.5 फुट लंबा और 17.3 परिधि का यह शिवलिंग एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है जो बहुत ही आश्चर्यजनक हैं, इस मंदिर को पूरब का सोमनाथ होने का गौरव प्राप्त है। परमारकालीन इस मंदिर पर प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर विशाल मेला लगता है। संस्कृति एवं पर्यटन विभाग द्वारा तीन दिवसीय भोजपुर महोत्सव का आयोजन भी किया जाता है। हालांकि अभी भोजपुर मंदिर को विश्व धरोहर बनने के लिए लंबा इंतजार करना होगा। वर्तमान में अभी यह मंदिर यूनेस्को की प्रारंभिक सूची में भी शामिल नहीं किया गया है।

आशापुरी:खुदाई में मिले 10वीं शताब्दी के प्रतिहार काल और परमार काल के मंदिरों के अवशेष

भोजपुर से 8 किलोमीटर दूर आशापुरी गाँव में पुरातत्व विभाग को खुदाई के दौरान दो दर्जन मंदिरों के अवशेष मिले थे, जो नौ से दसवीं शताब्दी में प्रतिहार काल के बताए जाते हैं। सूर्य मंदिर का कार्य राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा कराया जा रहा है,पुरातत्व अधिकारी डॉक्टर रमेश यादव ने बताया कि आशापुरी एक मेजर डेस्टिनेशन है। गुर्जर प्रतिहार काल 8वीं से 10वीं शताब्दी और 11वीं से 13वीं शताब्दी तक परमार काल माना जाता है। इस कालखंड में 1300 साल पहले कई मंदिरों का निर्माण हुआ था। इनमें 25 मंदिर भूतनाथ परिसर में बनवाए थे, जो विदेशी आक्रांताओं और प्राकृतिक आपदाओं से नष्ट हो गए 2010 में विभाग ने खुदाई कराई थी, जिसमें 25 मंदिरों का समूह मिला था। यहां बड़ी संख्या में मंदिरों के अवेशष मिले थे,जिनकी सहायता से ही मंदिरों को फिर निर्माण शुरू किया गया है। जिससे मंदिर में अवशेषों का फिर से पुराना वैभव वापस लौट रहा है। साल के अंत मे मंदिर निर्माण के पूर्ण होने की संभावना है।

1 हजार साल पुरानी भारत की सबसे लंबी दीवार लंबाई 80 कि.मी.

रायसेन जिले के देवरी के पास गोरखपुर के जंगल से बाड़ी के चौकीगढ़ किले तक 15 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी यह दीवार करीब एक हजार साल पुरानी है। इसकी लंबाई 80 किमी है,10-11वीं शताब्दी में कल्चुरी शासकों के हमले से बचने के लिए परमार वंश के राजाओं द्वारा इंटरलॉकिंग सिस्टम से बनवाई गई थी। यह दीवार भारत की सबसे लंबी दीवार मानी जाती है। इस दीवार को बनाने में लाल बलुआ पत्थर की बड़ी चट्टानों का इस्तेमाल किया गया है। इसके दोनों ओर विशाल चौकोर पत्थर लगाए गए हैं। हर पत्थर में त्रिकोण आकार के गहरे खांचे बने हुए हैं,जिनसे पत्थरों की इंटरलॉकिंग की गई है। इसकी जुड़ाई में चूना, गारा का इस्तेमाल नहीं किया गया है। गोरखपुर से आठ किमी दूर मोघा डैम पर इस दीवार का काफी हिस्सा आज भी सुरक्षित है।

पुरातत्वविद डॉ नारायण व्यास का कहना है कि प्राकृतिक सौंदर्य व प्राचीन संम्पदा से सम्पन्न रायसेन जिले में दो यूनेस्को साइट है,जिनमें सांची और भीमबैठका शामिल है, यहाँ देश विदेश के पर्यटक आते है ।पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास तो किए जा रहे लेकिन वे अभी नाकाफी नजर आ रहे है। पर्यटन बढ़ने के लिहाज से यहां अच्छी सड़कें और रिसॉर्ट की जरूरत है, जिनका अभी यहां अभाव है। यहां पर्यटन को रोजगार के रूप में विकसित करने से स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध होने की आसानी होगी।

ये लेख पत्रकार दानिश अहमद के द्वारा लिखा गया है।

Created On :   6 Oct 2023 2:19 PM GMT

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