शराबबंदी के लिए 50 फीसदी मतदान की शर्त में होगा बदलाव
शराबबंदी के लिए 50 फीसदी मतदान की शर्त में होगा बदलाव
डिजिटल डेस्क, मुंबई। शराबबंदी के लिए महिला मतदाताओं में 50 फीसदी द्वारा मतदान के नियम को बदला जा सकता है। उत्पाद शुल्क मंत्रीचंद्रशेखर बावनकुले ने बुधवार को विधानसभा में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस नियम में संशोधन पर अगले तीन महीनों में फैसला होगा। फिलहाल किसी वार्ड या गांव की 50 फीसदी महिला मतदाताओं द्वारा पक्ष में मतदान के बाद ही शराबबंदी की जाती है।
विधानसभा में आबकारी मंत्री ने कहा
BJP के अनिल बोंडे ने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जरिए अमरावती जिले के वरुड शहर में देशी शराब की पांच दुकानों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि यह स्थित सिर्फ वरूड की नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र की है। उन्होंने कहा कि स्कूल, कॉलेज, बाजार आदि के करीब शराब की दुकानों के चलते महिलाओं और लड़कियों को काफी परेशानी होती है। उन्होंने कहा कि 50 फीसदी महिलाओं के मतदान की जो शर्त है वह गलत है। ऐसा किसी चुनाव में नहीं होता। उन्होंने इस नियम में संशोधन की मांग की। जवाब में मंत्री बावनकुले ने कहा कि इस संबंध में अध्ययन कर संशोधन पर फैसला लिया जाएगा।
असंतुष्ट सदस्यों ने शर्त में ढील देने की मांग की
मंत्री के बयान से असंतुष्ट कई सदस्यों ने शर्त में ढील देने की मांग की इस पर बावनकुले ने कहा कि यह साल 2008 का परिपत्र है। इसमें संशोधन पर विचार किया जाएगा। इस बारे में एक दिन में कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सकता। कानून के मुताबिक अगर नगरपरिषद अथवा महानगरपालिका क्षेत्र के किसी वार्ड में 25 फीसदी से ज्यादा महिला मतदाता संबंधित अधीक्षक के पास शिकायत करें तो उस पर मतदान कराया जाता है। मतदान में उस वार्ड की 50 फीसदी से ज्यादा महिला मतदाता शराब बिक्री के खिलाफ मतदान करती हैं तो इलाके में शराबबंदी कर दी जाती है। इस पर आपत्ति जताते हुए विधायक आशीष शेलार ने कहा कि यह शर्त संविधान विरोधी और गैरकानूनी है।
संविधान में कहीं ऐसा नहीं
संविधान में कहीं ऐसा नहीं कहा गया कि 50 फीसदी मतदाताओं की उपस्थित अनिवार्य होगी। अन्य किसी चुनाव में इस तरह की शर्त नहीं होती। उन्होंने सरकार से यह आदेश रद्द करने की मांग की। इस मांग का सभी विधायकों ने समर्थन किया। इसके जवाब में आबकारी मंत्री ने कहा कि इस आदेश को एक ही दिन में बदलना संभव नहीं है। इसके लिए कानून के अनुसार प्रक्रिया अपनानी होगी। सदन के सभी सदस्यों की मांग पर विचार करते हुए तीन माह में इस पर संशोधन किया जाएगा।