सालों बाद अचानक दोस्त से हो गई मुलाकात, सीएस के सहपाठी हैं बांग्लादेशी अखबार के संपादक

सालों बाद अचानक दोस्त से हो गई मुलाकात, सीएस के सहपाठी हैं बांग्लादेशी अखबार के संपादक

Tejinder Singh
Update: 2018-05-10 13:05 GMT
सालों बाद अचानक दोस्त से हो गई मुलाकात, सीएस के सहपाठी हैं बांग्लादेशी अखबार के संपादक

डिजिटल डेस्क, मुंबई। दो देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को मजबूत बनाने के लिए कई विदेशी प्रतिनिधिमंडल महाराष्ट्र के दौरे पर आते रहते हैं। एसे ही एक विदेशी प्रतिनिधिमंडल के साथ मुलाकात के दौरान राज्य के मुख्य सचिव दिनेश कुमार जैन को उस वक्त सुखद आश्चर्य हुआ जब बांग्लादेश से आए प्रतिनिधिमंडल में उनके एक सहपाठी से मुलाकात हो गई। कुछ वक्त के लिए तो यह प्रसंग किसी बॉलीवुड फिल्म की पठकथा जैसी लगी। 

बांग्लादेश के मीडिया प्रतिनिधियों का एक प्रतिनिधिमंडल इन दिनों भारत दौरे पर आया है। अपने दो दिवसीय यात्रा के दौरान बुधवार की शाम प्रतिनिधिमंडल के सदस्य थे। उनकी राज्य के मुख्य सचिव जैन के साथ मुलाकात का भी कार्यक्रम था। शाम ठीक छह बजे प्रतिनिधिमंडल ने मंत्रालय परिसर में प्रवेश किया। मुख्य सचिव के समिति क्लब में सबसे पहले स्वागत और परिचय का औपचारिक कार्यक्रम हुआ। इसके बाद मुख्य सचिव ने प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया और देश की आर्थिक राजधानी मुंबई, विकसित महाराष्ट्र और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री बॉलीवुड इत्यादि विषयों पर चर्चा की।

प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने मुंबई से जुड़ी अपनी यादों को ही ताज़ा करने के साथ ही बांग्लादेशी लोगों में मुंबई और बॉलीवुड के क्रेज़ और आकर्षण के बारे में भी चर्चा की। इसके अलावा दोनों देशों के बीच वाणिज्यिक संबंधों और औद्योगिक निवेश पर भी बातचीत हुई। इसी दौरान प्रतिनिधिमंडल में शामिल सदस्य अल्तमास कबीर अचानक अपनी जगह से उठे और मुख्य सचिव के पास गए और उन्हें याद दिलाते हुए बोले, ‘दोस्त हम एक स्कूल ही नहीं बल्कि एक ही कक्षा में थे।’ मुख्य सचिव ने ऊंची क़द काठी, सांवले रंग और धीर-गंभीर स्वभाव वाले अल्तमास कबीर को फ़ौरन पहचान लिया। अल्तमास कबीर फिलहाल बांग्लादेश के प्रतिष्ठित अखबार दैनिक संगबाद के संपादक के रूप में काम कर रहे हैं।

मुख्य सचिव श्री जैन कि साल 1971 से 1976 के दौर की यादें ताज़ा हो उठीं। दरअसल, श्री जैन और अल्तमास कबीर राजस्थान के अजमेर जिले में ‘मेयो’ माध्यमिक विद्यालय में एक साथ पढ़ रहे थे। दोनों छठवीं से ग्यारहवीं कक्षा तक एक ही कक्षा में पढ़े। इतने लंबे अरसे के बाद भी देनों सहपाठियों ने एक दूसरे के पहचान लिया और तमाम स्मृतियाँ ताज़ी हो उठी। दोनों कुछ समय के लिए अतीत में चले गए। कक्षा में कौन कौन छात्र थे, उनका नाम क्या था। इसकी चर्चा ने मुख्य सचिव को फिर से बचपन के दिनों में धकेल दिया। दोनों बाल मित्रों के चेहरे पर सुखद आश्चर्य के भाव सहज और स्पष्ट रूप से पढ़े जा सकते थे। अल्तमास कबीर ने अपने बचपन के सहपाठी और गुरुभाई को बांगलादेश की यात्रा पर आने का निमंत्रण दिया। इस घटना के बाद तो बैठक का माहौल ही बदल गया।

सौहार्दपूर्ण संबंधों को और मज़बूत करने के लिए प्रदेश से आए प्रतिनिधिमंडल में अपने बचपन के दोस्त को देखने से बढ़कर ख़ुशी और क्या हो सकती थी। इंसान कितने भी बड़े पद पर क्यों न हो जब उसे अपना बचपन का दोस्त मिलता है तो तमाम शिष्टाचार और औपचारिकताएँ धरी की धरी रह जाती हैं और इंसान अपने बचपन को जीने लगता है। वह पुरानी यादों में खो जाता है। ऐसा ही मुख्य सचिव के साथ भी हुआ। मुम्बई दौरे की मीठी यादों के साथ कई सालों बाद अपने बचपन के मित्र से मुलाकात की यादें बांग्लादेश के कबीर के साथ हमेशा रहेंगी। 

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