परीक्षा प्रणाली मजबूत करने के लिए याद किए जाएंगे डॉ. सिद्धार्थविनायक
परीक्षा प्रणाली मजबूत करने के लिए याद किए जाएंगे डॉ. सिद्धार्थविनायक
डिजिटल डेस्क, नागपुर। राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय कुलगुरु डॉ. सिद्धार्थविनायक काणे मंगलवार को सेवानिवृत्त हो गए। उनकी जगह अब संत गाडगेबाबा अमरावती विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ.मुरलीधर चांदेकर को प्रभार सौंपा गया है। मंगलवार को डॉ.काणे ने डॉ.चांदेकर को प्रभार सौंपा। परीक्षा प्रणाली मजबूत करने, नई प्रशासकीय इमारत बनवाने और अमरावती रोड स्थित विश्वविद्यालय की जमीन से अतिक्रमण हटवाने जैसी महत्वपूर्ण उपलब्धियों के लिए डॉ. काणे का कार्यकाल याद किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि मंगलवार को डॉ.काणे के कामकाज का आखिरी दिन था। इसमें वे राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी द्वारा बुलाई गई वीडियो कांफ्रेंसिंग का हिस्सा बने। बैठक के अंत में राज्यपाल ने डॉ.काणे का अभिनंदन किया। बैठक मंे उपस्थित संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. श्रीनिवास वरखेडी, एसएनडीटी मुंबई कुलगुरु डॉ. शशिकला वंजारी, माफसू कुलगुरु डाॅ. आशीष पातुरकर ने डॉ. काणे का शॉल श्रीफल देकर सत्कार किया। इस दौरान नागपुर विवि प्रभारी कुलसचिव डॉ.नीरज खटी भी उपस्थित थे।
डॉ.काणे ने 7 अप्रैल 2015 को कुलगुरु पद का चार्ज संभाला था। वे मूलत: विवि के सांिख्यकी विभाग में प्रोफेसर थे, प्रोफेसर पद से वे पिछले साल नवंबर में सेवानिवृत्त हो गए थे। अब मंगलवार को वे बतौर कुलगुरु भी सेवानिवृत्त हो गए। कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन के बीच नागपुर विश्वविद्यालय में उनका विदाई समारोह नहीं हो सका। साधे सरल ढंग से सीमित लोगों की उपस्थिति उन्हें विदा किया गया।
ऐसा रहा कार्यकाल
डॉ.काणे के पिछले पांच वर्षों के कार्यकाल में करीब 2 वर्ष विश्वविद्यालय में बगैर प्राधिकरणों के कामकाज चला। यानी इस दौरान प्रशासनिक फैसले उन पर निर्भर रहे। पांच वर्षों में उनके द्वारा किए गए अधिकांश वादे अधूरे भी रह गए। उन्हें अपने कार्यकाल में अमरावती रोड स्थित जमीन से अतिक्रमण हटवा कर नई प्रशासकीय इमारत तैयार करने और परीक्षा प्रणाली मजबूत करने में सफलता मिली। वहीं अपने कार्यकाल में वे विद्यार्थियों के लिए एक भी नया हॉस्टल नहीं बनवा पाए। आधी परीक्षाओं की जिम्मेदारी कॉलेजों को सौंपने का उनका सपना कॉलेजों के विरोध के कारण सपना ही बन कर रह गया। वहीं वर्ष 2016 में पूनर्मूल्यांकन शुल्क लौटाने का उनका फैसला लंबे समय तक अमल में नहीं आ सका। हां पूनर्परीक्षा शुल्क विषय निहाय करने के उनके फैसले को खूब सराहना मिली।