हाईकोर्ट का फैसला- ‘जज पद के उम्मीदवार का आचरण दागी नहीं होना चाहिए’

हाईकोर्ट का फैसला- ‘जज पद के उम्मीदवार का आचरण दागी नहीं होना चाहिए’

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-12 18:54 GMT
हाईकोर्ट का फैसला- ‘जज पद के उम्मीदवार का आचरण दागी नहीं होना चाहिए’

डिजिटल डेस्क, जबलपुर। हाईकोर्ट की फुल बैंच ने शुक्रवार को अहम फैसला देते हुए कहा है कि जज पद के उम्मीदवार का आचरण दागी नहीं होना चाहिए। किसी आपराधिक मामले में भले ही उम्मीदवार समझौते के आधार पर बरी हो गया, लेकिन ऐसा होने से संबंधित उम्मीदवार को अच्छे आचरण का सर्टिफिकेट नहीं मिल जाता। इस मत के साथ चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता, जस्टिस आरएस झा और जस्टिस नंदिता दुबे की युगलपीठ ने कहा है कि चूंकि राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता को नियुक्ति के लिए अयोग्य करार दे दिया है, इसलिए उसे अवैध नहीं ठहराया जा सकता।

हाईकोर्ट की फुल बैंच ने यह फैसला इन्दौर के आशुतोष पवार की ओर से दायर याचिका पर दिया। याचिका में प्रदेश सरकार के विधि और विधायी कार्यविभाग द्वारा 9 मार्च 2016 को जारी आदेश को चुनौती दी गई थी। उक्त आदेश के तहत याचिकाकर्ता को सिविल जज के पद पर नियुक्ति के लिए इस आधार पर अयोग्य ठहराया गया था कि उसके खिलाफ दो आपराधिक मामले थे, जिनमें वह संदेह का लाभ पाकर बरी हो गया था। याचिकाकर्ता का दावा था कि हाईकोर्ट की एकलपीठ ने 27 अक्टूबर 2016 को उसके जैसे ही एक मामले पर याचिकाकर्ता को सिविल जज-2 के पद पर नियुक्ति व सभी लाभ देने के आदेश दिए थे। लिहाजा बरी होने के कारण उसे भी वही लाभ दिलाए जाएं। इस मामले पर 23 अक्टूबर 2017 को हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस आरएस झा और जस्टिस नंदिता दुबे की युगलपीठ के सामने सरकार की ओर से मप्र हाईकोर्ट का ही एक दूसरा फैसला पेश किया गया था। रूपनारायण साहू के मामले पर हाईकोर्ट की युगलपीठ ने 11 अगस्त 2017 को यह अभिनिर्धारित किया  था अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय किसी भी नियोक्ता को किसी की नियुक्ति के बारे में कोई निर्देश नहीं दे सकती। नियुक्ति के मुद्दे पर दो विरोधाभासी फैसलों पर जस्टिस झा की अध्यक्षता वाली युगलपीठ ने 23 अक्टूबर 2017 को उनका निराकरण करने मामला फुल बैंच के पास भेजा था। विगत 4 जनवरी को दो घंटे तक चली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ईशान सोनी, हाईकोर्ट की ओर से अधिवक्ता अनूप नायर और राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता समदर्शी तिवारी व शासकीय अधिवक्ता ब्रम्हदत्त सिंह की दलीलें सुनने के बाद फुल बैंच ने मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

शुक्रवार को सुनाए फैसले में फुल बैंच ने कहा - ‘याचिकाकर्ता के नाम की सिफारिश करते वक्त हाईकोर्ट ने उसकी योग्यता के प्रश्न का निर्धारण राज्य सरकार पर छोड़ दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि हाईकोर्ट के पास ऐसा कोई मैकेनिज़म नहीं है, जिससे  याचिकाकर्ता के पिछले रिकाॅर्ड का पता चल सके। यद्धपि याचिकाकर्ता ने अपने पिछले रिकाॅर्ड की जानकारी दे दी थी, लेकिन एक बार जब हाईकोर्ट ने योग्यता का निर्णय राज्य सरकार पर छोड़ दिया था, तब सरकार द्वारा लिए जा चुके फैसले को अवैध या बिना क्षेत्राधिकार का नहीं कहा जा सकता।’

हालांकि फुल बैंच ने यह भी स्पष्ट किया है आपराधिक केस में लिप्त होने पर किसी भी उम्मीदवार की योग्यता का अब हाईकोर्ट को ही फैसला लेना होगा। यदि राज्य सरकार के पास किसी उम्मीदवार के पिछले रिकॉर्ड का कोई ब्यौरा रहता है, तो उसे हाईकोर्ट को भेजना उसकी िजम्मेदारी होगी। उसके बाद आखिरी फैसला हाईकोर्ट का ही होगा। 
 

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