विस्थापित लोगों के साथ ‘गिनी पिग’ जैसा नहीं कर सकते बर्ताव-हाईकोर्ट

विस्थापित लोगों के साथ ‘गिनी पिग’ जैसा नहीं कर सकते बर्ताव-हाईकोर्ट

Anita Peddulwar
Update: 2019-09-19 14:14 GMT
विस्थापित लोगों के साथ ‘गिनी पिग’ जैसा नहीं कर सकते बर्ताव-हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क,मुंबई।  राज्य सरकार व मुंबई महानगरपालिका विस्थापितों के साथ ऐसा बर्ताव न करें जैसे प्रयोगशाला में जानवरों के साथ(गिनी पिग)  किया जाता है।  बांबे हाईकोर्ट ने पाइपलाइन के किनारे बनाए गए झोपड़ों को तोडे़ जाने के चलते बेघर हुए लोगों को महानगर में माहुल जैसे प्रदूषित इलाके में घर दिए जाने के मामले में यह कड़ी टिप्पणी की है। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदरा जोग व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ ने पाया कि माहुल इलाके में जारी वायु प्रदूषण में कोई सुधार नहीं हुआ है। फिर भी बेघर लोगों को माहुल इलाके में बसाया गया है।  महानगर के विभिन्न इलाकों से होकर निकली तानसा पाइप लाइन के किनारे बने  घरों को तोड़े जाने से करीब 15 हजार लोग बेघर हो गए है।  जिन्हें सरकार व मनपा ने मुंबई के माहुल इलाके में घर दिया है। मनपा के मुताबितक तोड़े गए घर अवैध रुप से बनाए गए थे। कोर्ट में बेघर हुए लोगों के आवेदन पर सुनवाई चल रही है।

भारी पोल्यूशन वाला है माहुल क्षेत्र

खंडपीठ ने मामले को लेकर विशेषज्ञों की ओर से माहुल इलाके में हवा को लेकर किए गए अध्ययन के संबंध में सौपी गई रिपोर्ट पर गौर करने के बाद कहा कि माहुल इलाके की हवा की गुणवत्ता में कोई खास सुधार नहीं आता है। वहां के हालात रहने के लिहाज से ठीक नहीं है। ऐसी स्थिति में क्या हम तोड़क कार्रवाई से प्रभावितों को माहुल इलाके में रहने के लिए विवश कर सकते हैं। राज्य सरकार व महानगरपालिका घर तोड़े गए लोगों के चलते प्रभावित हुए लोगों के साथ सूअर जैसा बर्ताव नहीं कर सकती है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने भी साल 2015 में अपनी एक रिपोर्ट में माहुल इलाके में भारी वायु प्रदूषण होने की बात कही थी। यहीं नहीं ट्रिब्युनल माहुल में एक अंतराल के बाद इस इलाके की हवा की गुणवत्ता का अध्ययन करने का भी निर्देश दिया था। 

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