रेलवे की जमीन पर 50 साल से आबाद है अवैध बस्ती, 25 अक्टूबर को चलेगा बुल्डोजर

रेलवे की जमीन पर 50 साल से आबाद है अवैध बस्ती, 25 अक्टूबर को चलेगा बुल्डोजर

Bhaskar Hindi
Update: 2020-09-20 11:54 GMT
रेलवे की जमीन पर 50 साल से आबाद है अवैध बस्ती, 25 अक्टूबर को चलेगा बुल्डोजर



डिजिटल डेस्क सतना। रीवा-सतना रेल मार्ग पर शहर से लगे कैमा स्टेशन में तकरीबन 50 वर्ष पहले आबाद किए गए 250 घरों की एक हजार की आबादी अब आखिर जाए तो जाए कहां? रेलवे फोर्स लगाकर जहां इस बस्ती को उजाडऩे की तैयारी में है,वही इन परिवारों के विस्थापन और व्यवस्थापन के संगीन सवाल के जवाब में शासन और प्रशासन के पास कोई कारगर कार्ययोजना नहीं है? जिस सरकारी जमीन पर गरीबों की यह बस्ती आबादी है, वही जमीन कैमा स्टेशन के विस्तार के लिए रेलवे के नाम पर आवंटित है।    
 वर्ष 1970 में प्रशासन ने ही बसाया था -
जानकारों की माने तो कैमा की नईबस्ती में आबाद ये गरीब परिवार मूलत: कोठी थाना क्षेत्र के सोनौरा गांव के बासिंदे हैं। दंबगों से परेशान इन परिवारों को तबके कलेक्टर ने सोनौरा से विस्थापित करते हुए यहां कैमा की सरकारी जमीन में बसाहट दी थी। वर्ष 1988 में इस मामले में तब नया मोड़ आया जब सतना-रेल लाइन के लिए जिला प्रशासन ने उक्त सरकारी भूमि रेल प्रशासन के नाम पर आवंटित कर दी। कैमा स्टेशन के बाद सतना-रीवा के बीच 50 किलोमीटर पर 450 करोड़ की लागत रेल दोहरीकरण का प्रस्ताव बना। अब इसी कैमा स्टेशन में एक और प्लेटफार्म तथा सायडिंग के साथ अन्य विस्तार कार्यों के लिए रेलवे को अपनी ही जमीन की जरुरत है।
 अब सिर्फ एक मोहलत-
जानकारों के अनुसार 2 सितंबर को रेलवे ने कैमा और राजेन्द्रनगर क्षेत्र की जमीनों पर काबिज रहवासियों को नोटिस देकर 18 सितंबर तक स्वयं खाली करने की चेतावनी दी थी। मगर, जब यह नोटिस बेअसर रही तो शनिवार की सुबह एईएन राजेश पटेल के साथ आरपीएफ  के असिस्टेंट कमांडेट एसके मिश्रा  भारी संख्या में सुरक्षा बल लेकर मौके पर कैमा पहुंच गए। आरपीएफ पोस्ट प्रभारी मानसिंह और जीआरपी के प्रभारी संतोष तिवारी से भी बल मंगा लिया गया। बाशिंदों ने कलेक्टर अजय कटेसरिया से मिलकर अपना पक्ष रखा।
फूट-फूट कर रो पड़ी 80 साल की कलावती -
कैमा में भारी पुलिस बल और रेल अफसरों की धमाचौकड़ी देखते ही 80 वर्ष की कलावती चौधरी तब फूट-फूट कर रो पड़ी जब उसे बताया कि अब उसका कच्चा घर नहीं रहेगा। कलावती वर्ष 1970 में जब कोठी के सोनौरा स्थित अपने पैतृक गांव से विस्थापित होकर कैमा आई थी, तब वह महज 30 साल की थी। उसके सुख-दुख की हर यादें अब इसी घर से जुड़ी हुई हैं। उसने कहा हम अतिक्रमणकारी नहीं हैं। रेलवे हटाना चाहता है तो या तो मुआवजा दे या फिर कहीं और रहने की जगह मिलनी चाहिए। जबकि रेल अफसरों की मुश्किल यह है कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। यह जिम्मेदारी राज्य शासन और उसके प्रशासन की है।
इनका कहना है -
 बारिश के दौरान किसी भी प्रकार के अतिक्रमण को नहीं हटाने के शासनादेश हैं। इस संबंध में रेल प्रशासन को भी अवगत कराया गया है। रेलवे ने कैमा में अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई  बरसात के बाद  करने पर सहमति जताई है।
 अजय कटेसरिया,कलेक्टर

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