पितृपक्ष में पूर्वजों के श्राद्ध से इच्छित फल की प्राप्ति

पितृपक्ष में पूर्वजों के श्राद्ध से इच्छित फल की प्राप्ति

Bhaskar Hindi
Update: 2020-09-07 08:45 GMT
पितृपक्ष में पूर्वजों के श्राद्ध से इच्छित फल की प्राप्ति

डिजिटल डेस्क जबलपुर । कन्या के सूर्य में 16 दिवसीय श्राद्ध का आज के भौतिक युग में भी अपना महत्व है। सोमवार 7 सितंबर को पंचमी तिथि का श्राद्ध रहेगा।  पं. रोहित दुबे ने बताया कि महाराजा मनु ने श्राद्ध का विवेचन करते हुए कहा कि कोई भी चंद्र मास तिथि द्वितीया, चतुर्थी, चौदस को छोड़कर सम नक्षत्रों में भरणी, रोहणी में श्राद्ध करने से इच्छित फल की प्राप्ति होती है। एकादश, त्रयोदशी, विषम तिथियों तथा विषम नक्षत्रों (कृतिका, मृगशिरा आदि) में पितृ पूजा श्राद्ध कर्म करने से भाग्यशाली संतान की प्राप्ति होती है। पं. वासुदेव शास्त्री ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार सोमवार को श्राद्ध करने से सुख, मोक्ष, मंगलवार को युद्ध में विजय, बुधवार को मनोकामना की पूर्ति, गुरुवार को आंतरिक अभीष्ट ज्ञान, शुक्रवार को लक्ष्मी, शनि को दीर्घायु व रविवार को करने से रोगों से मुक्ति मिलती है। श्राद्ध कर्म करने से आयु, आरोग्य एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।  
संतुष्ट पितर देते हैं आशीर्वाद 
पं. राजकुमार शर्मा शास्त्री ने कहा कि मोहग्रस्त पितर में गति नहीं होती है और वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं। सामान्यत: मृतक का मोह उनके उत्तरदायित्व का पूरा न होना है। इसलिए  प्रयास करके मृतक के उत्तरदायित्वों को पूरा करना चाहिए। मृतक की अंतिम इच्छा पूरी करनी चाहिए। मृतक के जीवन साथी की देखभाल अच्छी और आदर सहित करनी चाहिए। कुल परंपरा का पालन करने से पितृ संतुष्ट होकर आशीर्वाद देते हैं।  
 

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