नेत्रदान करने निकाली जनजागरण रैली, मेडिकल अस्पताल में मनाया जा रहा नेत्रदान पखवाड़ा 

नेत्रदान करने निकाली जनजागरण रैली, मेडिकल अस्पताल में मनाया जा रहा नेत्रदान पखवाड़ा 

Anita Peddulwar
Update: 2018-08-25 12:02 GMT
नेत्रदान करने निकाली जनजागरण रैली, मेडिकल अस्पताल में मनाया जा रहा नेत्रदान पखवाड़ा 

डिजिटल डेस्क, नागपुर। मेडिकल अस्पताल के नेत्ररोग विभाग की ओर से नेत्रदान पखवाड़े का शुभारंभ शनिवार को किया गया। पखवाड़े के पहले दिन जनजागरण रैली निकाली गई। पालकमंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने हरी झंडी दिखाकर रैली को रवाना किया। मेडिकल से निकलकर रैली प्रमुख मार्गों से होते हुए गुजरी। रैली के दौरान नेत्ररोग विभाग के चिकित्सक व प्रशिक्षु बड़ी संख्या में उपस्थित थे। सभी ने हाथों में तख्ती लिए घोषवाक्य से नेत्रदान का संदेश दे रहे थे। उनके साथ एनसीसी के स्टूडेंट भी शामिल हुए।

इस मौके पर विभाग प्रमुख डॉ. अशोक मदान ने कहा कि मरने के बाद भी दुनिया को देखने की हसरत नेत्रदान से पूरी हो सकती है। फिर भी भारत में नेत्रदान को अपेक्षित प्रतिसाद नहीं मिल रहा है। भारत ने विविध क्षेत्रों में सफलता के आयाम स्थापित किए हैं, लेकिन विविध भ्रांतियों के चलते नेत्रदान को लेकर लोगों के दिल में हिचक है। इसे दूर करने के लिए जनजागरण सबसे प्रभावी उपाय योजना है। नेत्रदान पखवाड़ा अंतर्गत जनजागरण के उद्देश्य से नेत्र रोग विभाग से रैली का आयोजन किए जाने की जानकारी उन्होंने दी। डॉ. मदान ने बताया कि विश्व में 40 दस लाख लोग दृष्टिहीन हैं, इनमें 16 लाख भारतीय हैं। मोतियाबिंद के कारण अंधत्व आने वालों का प्रमाण सबसे अधिक 55 प्रतिशत है। ऑपरेशन से इस समस्या का पूरी तरह समाधान किया जा सकता है।

कार्निया की खराबी से अंधत्व आने पर प्रत्यारोपण से दृष्टि वापस लाई जा सकती है। मात्र 40 प्रतिशत लोगों पर ही प्रत्यारोपण किया जा सकता है। भारत में कार्निया की खराबी से अंधत्व आने वालों का आंकड़ा 1.1 लाख है। हर साल 40 हजार नए मरीज जुड़ते हैं। हर साल 1 लाख लोगों को प्रत्यारोपण की आवश्यकता है, परंतु नेत्रदान करने वालों का आंकड़ा 52,000 है। इनमें 50 से 60 प्रतिशत का कार्निया उपयोग में आता है। यानी 25 से 30 हजार लोगों में प्रत्यारोपण किया जाता है। आवश्यकता के मुकाबले 25 प्रतिशत ही लोग नेत्रदान करते हैं। 75 प्रतिशत का अनुशेष है। इसकी प्रतिपूर्ति के लिए जनजागरण सबसे प्रभावी उपाय है। मरने वालों के परिजनों का समुपदेशन कर नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित करने से इस कमी को पूरा किया जा सकता है। इस मौके पर डॉ. स्नेहल बोंडे, डॉ. कविता दाबार्डे, डॉ. आनंद पसारी उपस्थित थे

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