कैसे एक छोटा सा मजाक बना क्रिकेट की दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्विता का कारण 

द एशेज कैसे एक छोटा सा मजाक बना क्रिकेट की दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्विता का कारण 

Manuj Bhardwaj
Update: 2021-12-07 14:22 GMT
कैसे एक छोटा सा मजाक बना क्रिकेट की दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्विता का कारण 
हाईलाइट
  • मेजबानी इस बार ऑस्ट्रेलिया कर रहा है
  • नकली मृत्युलेख बना कारण
  • यह सीरीज बारी-बारी से इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में आयोजित की जाती है

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ऑस्ट्रेलिया के मैदान एक बार फिर से तैयार है क्रिकेट की दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी प्रतिद्वंद्विता को होस्ट करने के लिए। हर साल आयोजित होने वाली इस सीरीज में विजेता टीम, खेलों की दुनिया की सबसे प्रसिद्ध और सबसे छोटी ट्रॉफी पर कब्जा जमाते है। जिसे एशेज कलश (Ashes Urn) भी कहा जाता है। 

यह सीरीज बारी-बारी से इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में आयोजित की जाती है, जिसकी मेजबानी इस बार ऑस्ट्रेलिया कर रहा है। इस सीरीज में दोनों टीमें पांच दिनों तक चलने वाले पांच टेस्ट मैच खेलती है।  

कोरोना महामारी के कारण एशेज का दो साल बाद आयोजन होने जा रहा। पिछली बार इंग्लैंड में खेली गई सीरीज ड्रा रही थी। इसी वजह से ऑस्ट्रेलियाई टीम ने इसे रिटेन किया था (रिटेन का मतलब है अगर सीरीज का परिणाम नहीं निकला तो, यह उसी देश के पास रहेगी जिसने इसे पिछले सीजन में जीता था)। 

139 साल से चली आ रही इस प्रतिद्वंद्विता की 72वीं बार सीरीज बुधवार 8 दिसंबर को ब्रिस्बेन के गाबा में शुरू होने जा रही।

तो आइये एक बार नजर डालते है क्रिकेट की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्विता के इतिहास पर-

नकली मृत्युलेख बना कारण 

ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच पहला आधिकारिक अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट मैच 1877 में मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर खेला गया था। लेकिन द एशेज की शुरुआत होती है 1882 से, जहां ऑस्ट्रेलिया ने मेजबान इंग्लैंड को मात्र दो दिन के अंदर ही 7 रन से हरा दिया था। जिसके बाद एक स्थानीय अखबार "द स्पोर्टिंग टाइम्स" ने इंग्लैंड क्रिकेट को लेकर एक नकली मृत्युलेख छापा, जो रेजिनाल्ड शर्ली ब्रूक्स द्वारा लिखा गया था।

 

      Pic-Credit- The British Library

उसमे लिखा था "29 अगस्त 1882 को ओवल में मारे गए इंग्लिश क्रिकेट के स्नेहपूर्ण स्मरण में। दुखी मित्रों और परिचितों RIP के एक बड़े समूह द्वारा गहरा शोक व्यक्त किया गया। एनबी - शरीर का अंतिम संस्कार किया जाएगा और राख को ऑस्ट्रेलिया ले जाया जाएगा।" 

कप्तान ने कहा वापस लेकर आएंगे राख (इज्जत के रूप में)

कुछ हफ्ते बाद इवो ब्लिग (बाद में लॉर्ड डर्नले) की अगुवाई में इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे के लिए रवाना हुई, जिसमें ब्लिग ने "राख के साथ लौटने की कसम खाई।" 

इसके जवाब में उनके विपक्षी दल ऑस्ट्रेलिया के कप्तान डब्ल्यूएल मर्डोक ने भी उनका बचाव करने की कसम खाई थी।

          Pic-Credit-Wikipedia

जिसके बाद ऑस्ट्रेलियाई की टीम के खिलाफ तीन टेस्ट टेस्ट मैच की सीरीज 2-1 जीतने के बाद (जिसे पहली एशेज सीरीज माना जाता है), उनकी टीम ने शौकिया तौर पर कई सामाजिक मैचों में भी भाग लिया।

जिसके बाद क्रिसमस की पूर्व संध्या पर मेलबर्न के बाहर रूपर्ट्सवुड एस्टेट में इसी तरह के एक मैच के बाद, ब्लिग को राख के प्रतीक के रूप में छोटा टेराकोटा कलश (terracotta urn) दिया गया था, जिसमे क्रिकेट बेल्स (stump bails) की राख थी, यह वहीं पल था जिसे इज्जत के रूप में हासिल करने के लिए ही वो ऑस्ट्रेलिया आए थे।  

इसी अवसर पर उनकी मुलाकात पत्नी फ्लोरेंस मोर्फी से हुई थी। वह उसी महिलाओं के ग्रुप का हिस्सा थी जिन्होंने उन्हें ये रेप्लिका भेट किया था।   

20 साल बाद हुआ "एशेज" का नामकरण  

1882/83 में ब्लिग की ओर से ऑस्ट्रेलिया के दौरे के बाद दो दशकों तक एशेज के मामले को काफी हद तक भुला दिया गया था, लेकिन 1903/04 की सीरीज के बाद इसने फिर से सुर्खियां बटोरी, इंग्लैंड के कप्तान पेलहम वार्नर ने दौरे पर एक किताब लिखी थी, जिसमे उन्होंने एक लेख में कहा- "हमने राख (एशेज) को कैसे रिकवर किया"।

उस दिन से, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच सीरीज प्रसिद्ध "द एशेज" का नामकरण हो गया।

एशेज की पहली फोटो और उसका मोटो 

एशेज की पहली तस्वीर जनवरी 1921 के एक अखबार "द इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज" में छपी। जिसपर छह-पंक्ति की कविता है भी है। 

एशेज ट्रॉफी पर कविता के रूप में लिखा है-

“When Ivo goes back with the urn, the urn;

Studds, Steel, Read and Tylecote return, return;

The welkin will ring loud;

The great crowd will feel proud;

Seeing Barlow and Bates with the urn, the urn;

And the rest coming home with the urn.”

ये छः पंक्ति मेलबर्न पंच (1 फरवरी, 1883) में "हू इज इन द क्रिकेट फील्ड" नामक गीत से प्रकाशित गीत के चौथे पैरा हैं। 

छोटी, नाजुक और अपरिवर्तनीय "एशेज ट्रॉफी" एमसीसी संग्रहालय में है

1927 में लॉर्ड डार्नले की मृत्यु हो गई और उनकी पत्नी ने कलश को एमसीसी को दे दिया। 1953 में संग्रहालय में ले जाने से पहले इसे पहली बार लॉन्ग रूम में प्रदर्शित किया गया था।

जीतने वाले टीम को जश्न मनाने के लिए एक रेप्लिका दी जाती है, क्योंकि असली ट्रॉफी बहुत नाजुक है।

असली "एशेज ट्रॉफी" ने लॉर्ड्स से ऑस्ट्रेलिया का दौरा सिर्फ दो बार किया है। पहली बार 1988 में ऑस्ट्रेलिया के द्विशताब्दी समारोह के हिस्से के रूप में सिडनी में ब्रिटिश अपराधी जहाजों के पहले बेड़े के आगमन की सालगिरह के उपलक्ष्य में और दूसरा 2006/07 की एशेज सीरीज के दौरान।

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