नर्मदा के परम उपासक अमृतलाल वेगड़ नहीं रहे

नर्मदा के परम उपासक अमृतलाल वेगड़ नहीं रहे

Bhaskar Hindi
Update: 2018-07-07 09:19 GMT
नर्मदा के परम उपासक अमृतलाल वेगड़ नहीं रहे

डिजिटल डेस्क, जबलपुर। पवित्र नर्मदा नदी की सुन्दरता को शब्दों और रंगों से सार्थक करने वाले लेखक और चित्रकार अमृतलाल वेगड़ ने 90 वर्ष की आयु में शुक्रवार को दुनिया को अलविदा कह दिया। श्वांस की बीमारी से ग्रस्त माँ नर्मदा के परम उपासक वेगड़ ने सुबह 10 बजे अपने निवास पर अंतिम सांस ली। उनकी अंत्येष्टि ग्वारी घाट पर की गयी। अक्टूबर 1928 को जबलपुर में जन्मे श्री वेगड़ अपना जीवन नर्मदा को समर्पित कर चुके थे। उन्होंने अपने जीवन में नर्मदा जी की दो बार परिक्रमा की। पहली परिक्रमा के समय उनकी आयु करीब 50 वर्ष और दूसरी के समय 75 वर्ष की थी।

नर्मदा जी के उपासक का जीवन सफ़र
जबलपुर में जन्मे अमृतलाल वेगड़ जी ने अपने कला की शुरुआती शिक्षा यहीं से प्राप्त की। उम्र के हिसाब से कला में पारंगत हने के बाद वेगड़ जी ने कला की और ऊंची तालीम लेने के लिए 1948 में शान्ति निकेतन का रुख किया। लेकिन साल 1953 में उनकी अपने जन्मस्थान जबलपुर में वापसी हुई। जबलपुर लौटने के बाद यहां उन्होंने कला निकेतन के प्राचार्य का पद संभाला।सीएम ने वेगड़ जी की म्रत्यु को अपूर्ण क्षति बताया है


नर्मदा के प्रति लगाव के चलते उन्होंने कलम और ब्रश के माध्यम से साधना शुरू कि। इसी साधना में वे निकल पड़े करीब 4 हजार किमी की पदयात्रा पर और " सौन्दर्य के नदी नर्मदा" से इसे जीवंत कर दिया।  उनकी रचना चाहे वे लेखनी हो या चित्रण, आज भी पुरानी पीढ़ी के ह्रदय में बसा है। 

नर्मदा की पदयात्रा का वृतांत हिंदी के अलावा मराठी, बंगाली, संस्कृत, और अंग्रेजी में छापी हैं।  अमृतलाल वेगड़ जी को हिंदी और गुजराती में साहित्य अकादमी के पुरूस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। 
 

सीएम ने जताया दुःख

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर अमृतलाल वेगड़ ने उनको श्रद्धांजलि दी है। सीएम चौहान ने वेगड़ जी की म्रत्यु को अपूर्ण क्षति बताया है

 



कवी प्रेमशंकर शुक्ल जी की एक कविता का अंश

(अमृतलाल वेगड़ के लिए)

बहुत धरती है तुम्हारे भीतर
अमृतलाल वेगड़
इसीलिए वर्षों से बह रही है
नर्मदा
तुम्हारे भीतर अबाध

तुम नर्मदा की परिकम्मा पर हो
कई जन्मों से तुम
नर्मदा की परिकम्मा पर हो

पेड़ों-पहाड़ों-पक्षियों-नदियों से
मनुष्य के रिश्ते को
आवाज दे रहे हो तु
अंतस् में तुम्हारे
बज रहे हैं
नर्मदा के किनारे

अनवरत है तुम्हारी यात्रा
नर्मदानुरागी
आदरणीय है तुम्हारा लक्ष्य

तुम्हारे लिखे नर्मदा किनारे के वृत्तांतों को
पढ़ा है मैंने
बहुत प्रांजल है तुम्हारा गद्य
होनी ही चाहिए तुम्हारी भाषा मधुर
पानी से प्रेम जो करते हो

आदिम-नदी नर्मदा
जो कितने जीवों-जनों की माँ है
को देखा-सुना-कहा है तुमने
हमने भी तुम्हारी धुन को
समझा और सराहा है

बहुत धरती है तुम्हारे भीतर
अमृतलाल वेगड़
और तुम्हारा लक्ष्य
आदरणीय

 


 

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