एआईएमपीएलबी ने मदरसों का सर्वे कराने के फैसले पर उठाए सवाल

उत्तर प्रदेश एआईएमपीएलबी ने मदरसों का सर्वे कराने के फैसले पर उठाए सवाल

IANS News
Update: 2022-09-05 06:30 GMT
एआईएमपीएलबी ने मदरसों का सर्वे कराने के फैसले पर उठाए सवाल

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने राज्य में गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर सवाल उठाए हैं।

एआईएमपीएलबी ने इसे भाजपा शासित राज्यों द्वारा संस्थानों को निशाना बनाने का हिस्सा बताया है।

एआईएमपीएलबी के कार्यकारी सदस्य कासिम रसूल इलियास ने कहा, उत्तर प्रदेश और असम में मदरसों को निशाना बनाया जा रहा है। यह अल्पसंख्यक संस्थानों को कानून के तहत संरक्षित किए जाने के बावजूद किया जा रहा है। असम में सरकार कुछ छोटे मदरसों पर बुलडोजर चला रही है, जबकि अन्य को स्कूलों में परिवर्तित कर रही है। यदि मुद्दा धार्मिक शिक्षा को प्रतिबंधित करने और इसके बजाय धर्मनिरपेक्ष शिक्षा को बढ़ावा देने का है, तो सरकार गुरुकुलों के खिलाफ वही कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है?

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने मदरसों के एक सर्वे की घोषणा करते हुए कहा कि वह शिक्षकों की संख्या, उनके पाठ्यक्रम और उपलब्ध बुनियादी सुविधाओं के बारे में जानकारी इकट्ठा करना चाहती है।

इलियास ने कहा कि उत्तर प्रदेश में मदरसों की कुल संख्या का कोई स्पष्ट अनुमान नहीं है, लेकिन सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें करीब 4 फीसदी मुस्लिम बच्चे पढ़ते हैं, इनकी संख्या हजारों में होने की संभावना है।

इलियास ने इस्लामी शिक्षण की संरचना को निर्धारित करते हुए कहा कि यह अनिवार्य रूप से तीन प्रकार के संस्थानों के माध्यम से प्रसारित किया गया है- मकतब, जो हर दिन कई घंटों के लिए मस्जिदों के अंदर आयोजित धार्मिक कक्षाएं हैं, छोटे मदरसे या हिफ्ज, जहां 8-10 साल की उम्र तक के छोटे छात्रों को कुरान याद करना सिखाया जाता है और आलिमियत या बड़े मदरसे जहां छात्रों को इस्लामी विचारधारा, कुरान की व्याख्या के साथ-साथ पैगंबर मोहम्मद के शब्द और अन्य धार्मिक मामलों की शिक्षा दी जाती है।

उन्होंने कहा कि यह प्राथमिक रूप से आलिमियत के स्तर पर है कि कई मदरसे मदरसा बोर्ड से संबद्ध हैं और राज्य सरकारों से आंशिक धन और अनुदान प्राप्त करते हैं।

उन्होंने कहा, उन मदरसों के लिए, जिन्हें सरकार द्वारा फंड नहीं दिया जाता है, वे समुदाय द्वारा जुटाए गए फंड पर आधारित होते हैं और शिक्षा, बोर्डिग और भोजन नि:शुल्क देते हैं, ताकि गरीब छात्र पढ़ाई कर सके। मदरसों के खिलाफ सरकार की कार्रवाई प्रति-उत्पादक है, क्योंकि यह केवल यह सुनिश्चित करने का बोझ बढ़ाती है कि बच्चों को स्कूल में नामांकित किया जाए, क्योंकि उन्हें शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अनुसार होना चाहिए।

एआईएमपीएलबी को अंदेशा है कि मदरसों के खिलाफ राज्य सरकार की कार्रवाई छोटे निकायों तक ही सीमित नहीं रहेगी।

(आईएएनएस)

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ bhaskarhindi.com की टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Tags:    

Similar News