ढह गया बीजेपी का गढ़ चंबल, बड़े बड़े नेता नहीं दिलवा सके जीत

मध्य प्रदेश ढह गया बीजेपी का गढ़ चंबल, बड़े बड़े नेता नहीं दिलवा सके जीत

ANAND VANI
Update: 2022-07-20 09:53 GMT
ढह गया बीजेपी का गढ़ चंबल, बड़े बड़े नेता नहीं दिलवा सके जीत

डिजिटल डेस्क, मुरैना। मध्यप्रदेश के नगरीय निकाय चुनावी परिणामों में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा। महापौर की 16 में से सात सीट बीजेपी खो चुकी है। बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान चंबल क्षेत्र में हुआ है। जहां  केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर के बाद केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के क्षेत्र मुरैना में भी बीजेपी कांग्रेस के हाथ मात खा गई। जहां दोनों  केंद्रीय मंत्रियों के साथ सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष  वीडी शर्मा ने प्रचार किया, चारों बड़े नेताओं ने रोड शो , और रैलियां की, जिनमें भारी तादात में भीड़ जुटी थी, लेकिन ये भीड़ वोटों में तब्दील नहीं हो पाई।  
पहली बार कांग्रेस ने मुरैना महापौर सीट पर कब्जा किया हैं।  इससे पहले मुरैना मेयर पर बीजेपी के अशोक अर्गल थे। अर्गल ने शारदा सोलंकी के पति राजेंद्र सोलंकी को पिछले चुनाव में मात दी थी। लेकिन इस बार राजेंद्र सोलंकी की पत्नी शारदा सोलंकी ने बीजेपी और संघ से जुड़ी मीना मुकेश जाटव को हराया हैं। भिंड में भी नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह के क्षेत्र में बीजेपी कोई बड़ा करतब नहीं दिखा पाई। नतीजों के बाद से ये अटकले लगाई जाने लगी कि क्या बीजेपी चंबल में कमजोर पड़ गई हैं?। 

बीजेपी के हारने की वजह

हमारे संवाददाता जब चुनावी प्रचार का जायजा लेने मुरैना चुनावी मैदान पहुंचे थे, तब बीजेपी कार्यकर्ता प्रोग्राम में तो  दिखते थे, लेकिन जमीनी मतदाताओं से जुड़ाव में रूचि लेते नजर नहीं आए थे।

बीजेपी के हारने के पीछे  की मुख्य वजह सिंधिया और तोमर  के बीच आपसी वर्चस्व की लड़ाई । पूरा दारोमदार मंत्री तोमर के ऊपर छोड़ दिया। 

रोजगार को लेकर  इलाके के ज्यादातर युवाओं का बीजेपी  सरकार के खिलाफ खुलकर नाराजगी, चंबल क्षेत्र से ज्यादातर युवा सेना में भर्ती होना जज्बा रखते है, ऐसे में केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना को लेकर इलाके के युवाओं और उनके परिवारों  में सरकार के प्रति रोष

शिवराज सरकार में मुरैना जिले से एक भी मंत्री नहीं, इससे बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं में गुस्सा
बीजेपी  कैंडिडेट जिस समुदाय से आती, उस समुदाय के बड़े  नेताओं की अनदेखी, एससी महिला उम्मीदवार होने के बाद भी किसी भी महिला नेता को चुनावी प्रचार में नहीं उतारा।
अनुसूचित जाति मतदाताओं  में  समाज के वरिष्ठ नेताओं की बीजेपी में अनदेखी।

 

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