टीकमगढ़ में सपा-बसपा बिगाड़ती चुनावी गणित, तीन सीटों पर है बीजेपी का कब्जा

  • पानी,पलायन और बेरोजगारी प्रमुख समस्या
  • जातिगत समीकरण पर टिका है टीकमगढ़ का समीकरण
  • बीजेपी का गढ़ टीकमगढ़

ANAND VANI
Update: 2023-07-25 12:00 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। टीकमगढ़ जिले की सभी 5 विधानसभा सीटों पर बीजेपा का कब्जा है। बुदेलखंड के इस गढ़ में बीजेपी मजबूत स्थिति में है। टीकमगढ़ जिले में 3 विधानसभा सीटें टीकमगढ़, जतारा और खरगापुर आती है। मध्यप्रदेश का बुदेलखंड अंचल सियासी पार्टियों का सबसे बड़ा चुनावी अखाड़ा बन गया है। उत्तरप्रदेश से सटे होने से जिले की राजनीति पर सपा-बसपा का भी असर साफ दिखाई देता है। टीकमगढ़ का सियासी समीकरण जातिगत समीकरण पर टिका हुआ है। यहां ओबीसी और दलित हार जीता का फैसला करते है। पूरे प्रदेश में जब सवर्ण और दलित आंदोलन का प्रभाव पड़ा था, तब टीकमगढ़ बेअसर रहा था। टीकमगढ़ जिले में 3 विधानसभा सीटें टीकमगढ़, जतारा और खरगापुर आती है। तीनों सीटें बीजेपी के खाते में है।

टीकमगढ़ विधानसभा सीट

बुदेलखंड का ये क्षेत्र सूखे की मार से जूझता रहा है। पानी की समस्या यहां की सबसे बड़ी समस्या है। टीकमगढ़ विधानसभा सीट पर अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। इसके अलावा क्षेत्र में यादव, ठाकुर भी निर्णायक भूमिका में होते है। साल 2008 में बीजेपी की फायर ब्रांड नेता उमाभारती ने भाजपा से अलग होकर अपनी अलग पार्टी भारतीय जनशक्ति पार्टी बना ली थी। उमाभारती 2008 में चुनाव लड़ी और अपने ही घर टीकमगढ़ में चुनाव हार गई थी। सीट पर हार जीत का गणित बसपा-सपा पर निर्भर होता है।

2018 में बीजेपी के राकेश गिरी

2013 में बीजेपी से के के श्रीवास्तव

2008 में कांग्रेस के यादवेंद्र सिंह

2003 में बीजेपी के अखण्ड प्रताप सिंह यादव

1998 में बीजेपी के मगललाल गोयल

1993 में कांग्रेस के यादवेंद्र सिंह

1990 में बीजेपी के गोयल मगनलाल

1985 में कांग्रेस के यादवेंद्र सिंह

1980 में कांग्रेस से सरदार सिंह

1977 में जेएनपी से मगनलाल गोयल

जतारा विधानसभा सीट

जतारा विधासनभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। अहिरवार, वंशकार और कुशवाहा समाज के वोट, प्रत्याशी की हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। यहां के मुख्य चुनावी मुद्दे बेरोजगारी, सिंचाई और पलायन है। जतारा के चुनाव में सपा -बसपा बीजेपी कांग्रेस को कड़ी टक्कर देती है। जतारा सीट कोबीजेपी का गढ़ माना जाता है। 1990 से लेकर 2018 तक सीट पर सात बार हुए चुनाव में बीजेपी ने पांच बार और दो बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है।

2018 में बीजेपी के हरिशंकर खटीक

2013 में कांग्रेस के दिनेश कुमार अहिरवार

2008 में बीजेपी के हरिशंकर खटीक

2003 में बीजेपी के सुनील नायक

1998 में बीजेपी के सुनील नायक

1993 में कांग्रेस से अखण्ड

1990 में बीजेपी के सुरेंद्र प्रताप सिंह

1985 में कांग्रेस से ठाकुर दास यादव

1980 में निर्दलीय स्वामी प्रसाद पादरी

1977 में जेएनपी से अखण्ड प्रताप सिंह

खरगापुर विधानसभा सीट

खरगापुर सीट पर बीएसपी चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बना देती है। सीट पर निर्दलियों के साथ साथ बागीयों के चुनावी मैदान में आने से मुकाबला रोचक हो जाता है। यह निर्वाचन क्षेत्र 1967 में विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया और 1967 से 2008 तक यह अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित था। यहां बीएसपी बीजेपी और कांग्रेस का खेल बिगाड़ देती है।

2018 में बीजेपी के राहुल लोधी

2013 में कांग्रेस से चंदा सुरेंद्र सिंह गौड़

2008 में बीजेएसएच से अजय यादव

2003 में बीजेपी से हरिशंकर खटीक

1998 में बीजेपी से पर्वतलाल अहिरवार

1993 में बीजेपी से पर्वतलाल अहिरवार

1990 में बीजेपी से आनंदीलाल

1985 में कांग्रेस से वृन्दावन अहिरवार

1980 में कांग्रेस से नाथू राम अहिरवार

1977 में जनता पार्टी से नाथू राम अहिरवार

1972 में कांग्रेस से बैजू अहिरवार

1967 में कांग्रेस से आर राम

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