अनूपपुर जिले की तीनों सीटों पर आदिवासी मतदाताओं की मजबूत पकड़, तय करते है चुनावी मुकाबला

  • अनूपपुर में तीन सीट, पड़ोसी प्रदेश का प्रभाव
  • दो सीट एसटी आरक्षित,1 सामान्य आरक्षित
  • 2003 में बीजेपी तो 2018 में कांग्रेस ने किया क्लीन स्वीप

ANAND VANI
Update: 2023-07-27 10:30 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। शहडोल संभाग में शहडोल, उमरिया,डिंडोरी और अनूपपुर जिले आते है। शहडोल को आदिवासियों की संस्कृति का केंद्र माना जाता है। आज हम शहडोल संभाग के अंदर आने वाले अनूपपुर जिले की राजनीति की चर्चा करेंगे। वहां की विधानसभा सीटों के चुनावी गणित को समझने का प्रयास करेंगे। अनूपपुर जिले में अनूपपुर, कोतमा और पुष्पराजगढ़ तीन विधानसभा सीट आती है।

छत्तीसगढ़ से सटे होने के कारण अनूपपुर जिले की राजनीति पर छत्तीसगढ़ के सियासी समीकरण का भी प्रभाव पड़ता है। 2003 में अनूपपुर जिले की तीनों सीटों पर बीजेपी ने कांग्रेस को क्लीन स्वीप किया था। वहीं 2018 में कांग्रेस ने बीजेपी को क्लीन स्वीप किया था। कांग्रेस ने तीनों सीटों पर कब्जा किया, मगर 15 महीने बाद सिंधिया समर्थक बिसाहूलाल सिंह ने कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। बाद में हुए उपचुनाव में बीजेपी से भी बिसाहूलाल ने जीत हासिल की। हालफिलहाल जिले की तीन में से दो सीट कोतमा और पुष्पराजगढ़ पर कांग्रेस और एक सीट अनूपपुर पर बीजेपी का कब्जा है। आपको बता दें अनूपपुर और पुष्पराजगढ़ सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है, वहीं कोतमा सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी इस इलाके में बड़ा फैक्टर है।

अनूपपुर विधानसभा सीट

अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित अनूपपुर विधानसभा सीट पर 31.8 फीसदी अनुसूचित जनजाति वर्ग के मतदाताओं की मजबूत पकड़ है और अनुसूचित जनजाति वर्ग के मतदाता ही यहां जीत और हार तय करते हैं। अनूपपुर विधानसभा सीट पर 15.4 फीसदी अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाताओं की संख्या करीब 25 हजार से अधिक है। अनूपपुर सीट में ओबीसी मतदाताओं का असर साफ दिखाई देता है, वहीं ब्राह्मण वोट बैंक भी चुनाव की दशा तय करने में अहम भूमिका निभाते है।

2020 उपचुनाव में बीजेपी के बिसाहूलाल सिंह

2018 में कांग्रेस के बिसाहूलाल सिंह

2013 में बीजेपी के रामलाल रौतेल

2008 में कांग्रेस के बिसाहूलाल सिंह

2003 में बीजेपी के रामलाल रौतेल

1998 में कांग्रेस के गुलाब सिंह

1993 में कांग्रेस के लाल विजय प्रताप सिंह

1990 में बीजेपी के चंदप्रताप सिंह

1985 में कांग्रेस के विजय सिंह

1980 में कांग्रेस के विजय सिंह

1977 में जेएनपी के राम सिंह

कोतमा विधानसभा चुनाव

कोतमा विधानसभा सीट पारंपरिक तौर पर कांग्रेस की रही है। 1957 में जब यह विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी, तब से लेकर अब तक ज्यादातर यहां कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. वर्ष 1957 में इस सीट से कांग्रेस के हरि राज कंवर विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। अभी तक तीन बार ही यहां बीजेपी जीत दर्ज कर सकी है। सीट पर 29 फीसदी गौड़ व कोल मतदाताओं का बोलबाला है। 10 फीसदी केवट भी चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करते है।

2018 में कांग्रेस के सुनील सराफ

2013 में कांग्रेस के मनोज कुमार अग्रवाल

2008 में बीजेपी के दिलीप जयसवाल

2003 में बीजेपी के जय सिंह मरावी

1998 में बीजेपी के जयसिंह मरावी

1993 में कांग्रेस के राजेश नंदानी सिंह

1990 में जेडी के कुंदन सिंह

1985 में कांग्रेस के भगवानदीन

1980 में कांग्रेस के भगवानदीन

1977 में जेएनपी से बाबूलाल सिंह

पुष्पराजगढ़ विधानसभा सीट

सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व है, यहां दो बार ही बीजेपी चुनाव जीत सकी है। यहां आदिवासियों की गौड़ जनजाति निर्णायक भूमिका में होती है। पुष्पराजगढ़ सीट में 60 फीसदी आदिवासी, बाकी 40 फीसदी में अन्य वर्ग के मतदाता हैं। इस क्षेत्र में आदिवासियों की बाहुल्यता होने के कारण यह अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित माना जाता है। पुष्पराजगढ़ क्षेत्र की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से इलाके में मौजूद खनिजों को निकालने वाली खदानों पर निर्भर है, जिनमें से प्रमुख संसाधन कोयला, मिट्टी और संगमरमर हैं। इन्हीं के इर्द गिर्द इलाके की राजनीति घूमती है। इलाके में बेरोजगारी, शिक्षा, सड़क और स्वास्थ्य प्रमुख मुद्दे है।

1957 में कांग्रेस के ललन सिंह

1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के चिन्ता राम

1967 कांग्रेस के एल सिंह

1972 निर्दलीय दलबीर सिंह

1977 जनता पार्टी से हजारी सिंह

1980 कांग्रेस से अंबिका सिंह

1985 कांग्रेस से दीलन सिंह

1990 जनता दल से कुंदन सिंह

1993 कांग्रेस से शिवप्रसाद सिंह

1998 कांग्रेस से शिवप्रसाद सिंह

2003 बीजेपी से सुदामा सिंह

2008 बीजेपी से सुदामा सिंह

2013 कांग्रेस के फुंदेलाल सिंह मार्को

2018 कांग्रेस के फुंदेलाल सिंह मार्को



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