पूरे गांव ने ग्रहण किया जीवित व्यक्ति का तेरहवीं मृत्युभोज, आखिर क्या था माजरा

पूरे गांव ने ग्रहण किया जीवित व्यक्ति का तेरहवीं मृत्युभोज, आखिर क्या था माजरा

Bhaskar Hindi
Update: 2019-01-29 14:15 GMT
पूरे गांव ने ग्रहण किया जीवित व्यक्ति का तेरहवीं मृत्युभोज, आखिर क्या था माजरा

डिजिटल डेस्क, बालाघाट। जिला मुख्यालय से लगी गोंगलई पंचायत में जीवित व्यक्ति का तेरहवीं मृत्यु भोज पूरे गांव ने ग्रहण किया। इतना ही नहीं इस भोज में वह व्यक्ति भी शामिल हुआ जिसकी तेरहवीं थी। गोंगलई वैनगंगा चौक निवासी 65 वर्षीय संतलाल लिल्हारे ने अपने जीवित होते हुए स्वयं का तेरहवी संस्कार किया। संतलाल लिल्हारे द्वारा किये गये स्वयं के तेरहवी संस्कार में बड़ी संख्या में ग्राम के लोग शामिल हुए और भोजन ग्रहण किया।
 

दो पुत्रों में से एक की हो चुकी है मौत

बताया जाता है कि संतलाल लिल्हारे के दो पुत्र है, जबकि पत्नी की पूर्व में ही मौत हो गई है, संतलाल लिल्हारे का बड़ा पुत्र तिलक लिल्हारे नागपुर में परिवार के साथ रहकर कमाता-खाता है जबकि छोटे पुत्र की मौत हो गई है। जिसकी विधवा पत्नी अपने ससुर संतलाल के साथ ही रहती है। कबाड़ी का धंधा करने वाले संतलाल लिल्हारे को यह चिंता थी कि जिस माली हालत में परिवार है, उस स्थिति में उसकी मौत के बाद परिवार उसकी आत्मा की शांति के लिए होने वाले तेरहवी कार्यक्रम को करा पायेगा की नहीं। जिसके चलते उसने अपने जीवित होते हुए स्वयं का तेरहवीं कार्यक्रम पूरे हिन्दु परंपरा के अनुसार कराया।
 

खुद किया अपना पिण्डदान

संतलाल लिल्हारे ने स्वयं उपस्थित होकर रजेगांव से होकर गुजरने वाली वैनगंगा नदी के किनारे पिंडदान कार्यक्रम किया और उसके बाद आज 29 जनवरी को स्वयं की तेरहवी कार्यक्रम कराया। गोंगलई के वैनगंगा चौक में तेरहवी कार्यक्रम में होने वाली पूजा, पाठ के दौरान संतलाल लिल्हारे स्वयं पूजा में बैठा। बताया जाता है कि संतलाल लिल्हारे द्वारा जीवित होने के बाद भी स्वयं की तेरहवी कार्यक्रम के आयोजन में उसका बड़ा पुत्र तिलक लिल्हारे और उसका परिवार, गांव में होने के बावजूद शामिल नहीं हुआ है। हालांकि जानकार इसे हिन्दु परंपरा के अनुरूप नहीं मानते है। उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम मृतात्मा की शांति के लिए किया जाता है और यह किसी व्यक्ति के मृत होने के बाद ही किया जाता है, ताकि उसकी आत्मा को शांति मिले। जीवित अवस्था में इस तरह का कार्यक्रम कराया जाना, हिन्दु परंपरा के खिलाफ है।

 

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