भ्रष्टाचार के आरोपी आईपीएस मयंक जैन सेवा से हटाए गए

भ्रष्टाचार के आरोपी आईपीएस मयंक जैन सेवा से हटाए गए

Bhaskar Hindi
Update: 2018-08-17 08:43 GMT
भ्रष्टाचार के आरोपी आईपीएस मयंक जैन सेवा से हटाए गए
हाईलाइट
  • उनके पास आय से अधिक संपत्ति पाई गई थी।
  • करीब 3 साल पहले मयंक जैन के घर पर लोकायुक्त छापा पड़ा था
  • लोकायुक्त संगठन ने एक गोपनीय शिकायत के बाद करीब 21 महीने तक इसकी पड़ताल की थी

डिजिटल डेस्क,भोपाल। भ्रष्टाचार के आरोप में आईएएस दंपती अरविन्द-टीनू जोशी के बाद केंद्र ने मप्र कैडर के आईपीएस अफसर मयंक जैन को सेवा से बर्खास्त कर दिया है। वे 1995 बैच के आईपीएस अफसर थे। करीब 3 साल पहले मयंक जैन के घर पर लोकायुक्त छापा पड़ा था, जिसमें उनके पास आय से अधिक संपत्ति पाई गई थी। मई 2016 में उनके इंदौर,भोपाल, उज्जैन और रीवा स्थित ठिकानों पर पड़े छापे में करीब सौ करोड़ रुपए की सम्पत्ति उजागर हुई थी। लोकायुक्त संगठन ने एक गोपनीय शिकायत के बाद करीब 21 महीने तक इसकी पड़ताल की थी। इसके बाद छपे की कार्रवाई की गई थी। छापे के बाद प्रदेश सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया था। खबर है कि राज्य सरकार ने इसी साल 3 मार्च को उन्हें अनिवार्य सेवा निवृत्ति देने का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा था, जिसे भारत के गृह विभाग ने 13 अगस्त को मंजूर कर राज्य सरकार को सूचना भेज दी है।

डॉ. मयंक जैन एमबीबीएस गोल्ड मेडल लिस्ट हैं। उन्होंने इसके बाद आर्थोपेडिक से मास्टर ऑफ सर्जरी की पढ़ाई भी की। इसके बाद उन्होंने आईपीएस की नौकरी ज्वाइन कर ली। उनके पिता, भाई और पत्नी भी डाक्टर हैं। उनका भोपाल और रीवा में नर्सिंग होम भी है। लोकायुक्त की उज्जैन टीम ने 15 मई 2015 को उनके भोपाल, इंदौर और रीवा स्थित निवास पर छापा मारा था। उस समय कहा गया था कि आईपीएस की नौकरी से सवा करोड़ रुपए कमाने वाले मयंक जैन के पास लगभग 100 करोड़ की सम्पत्ति मिली है। जबकि मयंक जैन के परिजनों का कहना था कि जैन पूरी नौकरी में बेहद ईमानदार अधिकारी रहे। छापे में जो कुछ मिला वह उनकी पुश्तैनी संपत्ति और पारिवारिक संपत्ति है। वर्ष 2008 में जैन ने सिपाही आशीष जोसफ से नौकरी छुडवाकर अपनी प्रॉपर्टी देखने के काम में लगाया था।

डॉ. मयंक जैन निलंबन के बाद अपने विभाग से लगभग पूरी तरह कटे हुए हैं। वे इस बात का जिक्र करते रहें हैं कि विभाग के ही एक अधिकारी ने षड़यंत्र करके उनके घर छापा पड़वाया। खास बात यह है कि तीन साल से अधिक समय बाद भी लोकायुक्त उनके खिलाफ चालान पेश नहीं कर सकी है। इसके बाद भी उन्हें अनिवार्य सेवा निवृत्ति दे दी गई। सेवानिवृत्ति की खबर के बाद प्रदेश के आईपीएस अफसर चुप हैं।

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