छोटे परिवार के नियम को नहीं माना, इसलिए आंगनवाड़ी सेविकाओं को धोना पड़ा नौकरी से हाथ

छोटे परिवार के नियम को नहीं माना, इसलिए आंगनवाड़ी सेविकाओं को धोना पड़ा नौकरी से हाथ

Anita Peddulwar
Update: 2018-10-20 13:45 GMT
छोटे परिवार के नियम को नहीं माना, इसलिए आंगनवाड़ी सेविकाओं को धोना पड़ा नौकरी से हाथ

डिजिटल डेस्क,मुंबई।  राज्य सरकार ने दो से ज्यादा बच्चे होने के कारण दो आंगनवाड़ी सेविकाओं को नौकरी से निकाले जाने के अपने निर्णय को बांबे हाईकोर्ट में न्याय संगत ठहराया है। महिला व बाल विकास विभाग के संयुक्त सचिव ने हलफनामा दायर कर साफ किया है कि दोनों आंगनवाडी सेविकाओं ने छोटे परिवार से जुड़े नियम का उल्लंघन किया था इसलिए उनकी सेवा को समाप्त किया गया है। 

तीन बच्चों की मां हैं दोनों आंगनवाड़ी सेविकाएं

हलफनामा में कहा गया है कि सरकार ने जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए एक दशक पहले ही ठोस कदम उठाए थे। जिसके तहत छोटे परिवार का नियम बनाया गया था। यह हलफनामा  नौकरी से निकाली गई रत्नागिरी की दो आंगनवाडी सेविकाओं की याचिका के जवाब में दायर किया गया है। एक आंगनवाड़ी सेविका के चार बच्चे हैं, जबकि दूसरी आंगनवाड़ी सेविका तीन बच्चों की मां है। याचिका में सरकार के 13 अगस्त 2014 के उस शासनादेश को चुनौती दी गई है जिसके तहत आंगनवाडी सेविका के लिए दो बच्चों का नियम बनाया गया है। 

कई तथ्यों को छुपाया

हलफनामे के अनुसार सरकार ने छोटे परिवार के तहत दो बच्चों का नियम बनाया था। यह नियम ए, बी, सी व डी सभी श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों पर लागू होता है। याचिका में कहा गया है कि याचिका सिर्फ इस धारणा पर आधारित है कि साल 2014 में पहली बार दो बच्चों का नियम बनाया गया है। जबकि ऐसा नहीं है। यह महाराष्ट्र सिविल सर्विस नियमावली साल 2005 में ही अधिसूचित कर दिया गया था।। जिसके तहत सभी सरकारी पदों के लिए अनिवार्य रुप से छोटे परिवार के नियम का उल्लेख किया गया है। इसके अलावा कई निर्वाचित प्रतिनिधियों को भी दो से ज्यादा बच्चे होने पर अपात्र ठहराने का नियम बनाया गया है। सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि सेवा से हटाई गई आंगनवाड़ी सेविकाओं ने कई तथ्यों को याचिका में छुपाया है इसलिए याचिका को खारिज कर दिया जाए। 

 

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