निपाह वायरस से संदेह में जलगांव का केला कारोबार ठप, रोजी-रोटी का मंडरा रहा संकट

निपाह वायरस से संदेह में जलगांव का केला कारोबार ठप, रोजी-रोटी का मंडरा रहा संकट

Anita Peddulwar
Update: 2018-07-20 07:51 GMT
निपाह वायरस से संदेह में जलगांव का केला कारोबार ठप, रोजी-रोटी का मंडरा रहा संकट

भूपेन्द्र गणवीर, नागपुर। बीते मई महीने में केरल में निपाह वायरस के संक्रमण फैलने का असर महाराष्ट्र पर भी पड़ता दिख रहा है। दरअसल, आशंका जताई गई थी कि ये वायरस चमगादड़ों द्वारा खाए फलों से फैलता है। जिसके चलते लोग फलों को खरीदने और उन्हें उपयोग करने से डरने लगे। फलों की खरीद-फरोख्त कम होने का असर राज्य के जलगांव जिले के केला उत्पादक किसानों पर भी पड़ रहा है। क्योंकि देश भर से केला खरीदने जलगांव आने वाले व्यापारियों की संख्या में इस बार खासी कमी देखी जा रही है। पूछ-परख कम होने से केले के भाव भी 1300 रुपए से गिरकर 800 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गए हैं। ऐसे हालात में केला उत्पादक किसानों को प्रति क्विंटल 500 रुपए तक का नुकसान झेलना पड़ रहा है। इससे पहले जून के महीने में तूफान और ओले गिरने की वजह से किसानों की करीब 400 करोड़ रुपए की फसल खराब हो गई थी।

जिसके बाद अब उन्हें भाव गिरने की मार भी सहनी पड़ रही है। जलगांव का केला देश भर में प्रसिद्ध है। साथ ही इनका निर्यात विदेश में भी किया जाता है। यहां 46 हजार हेक्टेयर में केले की फसल लगाई जाती है और प्रति हेक्टेयर में 40 से 70 टन तक उत्पादन होता है। करीब 1500 ट्रक केले प्रतिदिन बाहर भेजे जाते हैं। यही वजह है कि महाराष्ट्र के अलावा दूसरे राज्यों के ट्रांसपोर्टर भी यहां डेरा डाले रहते हैं। जिनसे स्थानीय होटल और लॉजवालों को भी फायदा होता है। लेकिन केले का व्यापार कम होेने से इन पर भी असर पड़ा है। केले तोड़ने से लेेकर, उसकी सफाई, ढुलाई, पैकिंग जैसे कामों से स्थानीय स्तर पर करीब सौ से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है। इनके आगे भी रोजी-रोटी का संकट खड़ा होने लगा है।

इस पद्धति से होती है फसल
जिले के कुल केला उत्पादक 30 हजार किसानों में से 20 प्रतिशत टिश्यू कल्चर रोप से फसल उगाते हैं। ये पद्धति रोगों और वायरस से बचाव करती है। लेकिन इसकी लागत 14 रुपए प्रति रोप तक पड़ती है। केला संशोधक वनस्पतिशास्त्री डॉ.केबी पाटील का कहना है कि विशेष रूप से तैयार इस रोप से केला लंबा और ठोस होता है। फिलहाल देश भर में 18 करोड़ टिश्यू रोप की आवश्यकता है लेकिन केवल 2 करोड़ रोप ही लगाए जा रहे हैं।

महाराष्ट्र के किसानों को नहीं मिल रहा लाभ 
महाराष्ट्र के केले उत्पादक रावेर व दूसरे तालुका से सटे मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में भी केले की खेती होती है। जून में तूफान और ओलावृष्टि से हुए नुकसान की भरपाई के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों को आर्थिक मदद दी लेकिन राज्य के केला उत्पादक किसानों के लिए अभी तक कोई घोषणा नहीं की गई है। राज्य के रावेर, यावेल, मुक्तानगर तालुका व आसपास के किसानअभी भी राहत की बाट जोह रहे हैं।

सुविधाओं के अभाव से बढ़ी परेशानी
तापमान के ऊपर-नीचे होने का असर भी केले पर पड़ता है। निर्यात के लिए पौधे से अलग किए जाने के बाद 6 घंटे के भीतर प्री कूलिंग प्रक्रिया की जाती है, जिससे केला 50 दिन तक खराब नहीं होता है। लेकिन जलगांव में इसकी सुविधा अब तक नहीं मिल रही है। प्री कूलिंग के लिए केलों को नाशिक ले जाना पड़ता है। इसके अलावा केले के तने से फायबर धागे और फर्टिलाइजर बनाए जाते हैं, जबकि फल से चिप्स, पापड़, आटा और शराब भी बनाए जाते हैं। लेकिन जिले में ऐसा कोई भी कारखाना नहीं है। जलगांव में केवल चिप्स बनाने के लिए कुछ ही कुटीर उद्योग चल रहे हैं। रावेर नगर परिषद के भूतपूर्व अध्यक्ष हरीश गणवानी के मुताबिक, यहां केले के संशोधक केंद्रों की खासी आवश्यकता है। वहीं किसान नेता सोपान पाटील ने कहा कि सरकारें इस तरफ से पूरी तरह उदासीन रही हैं। 

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