52 साल पहले पति से अलग हुई पत्नी को 24 वर्ष का भत्ता 2 सप्ताह में देने के हाईकोर्ट ने दिए निर्देश

52 साल पहले पति से अलग हुई पत्नी को 24 वर्ष का भत्ता 2 सप्ताह में देने के हाईकोर्ट ने दिए निर्देश

Anita Peddulwar
Update: 2018-11-24 11:50 GMT
52 साल पहले पति से अलग हुई पत्नी को 24 वर्ष का भत्ता 2 सप्ताह में देने के हाईकोर्ट ने दिए निर्देश

डिजिटल डेस्क, मुंबई। यदि पति की बदसलूकी व प्रताड़ना से तंग आकर पत्नी खुद घर छोड़कर चली जाती है तो इसे पति का पत्नी के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया माना जाएगा। बांबे हाईकोर्ट ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए पति को करीब 52 साल पहले घर छोडकर गई पत्नी को 24 साल का गुजारा भत्ता दो सप्ताह में देने के निर्देश दिए हैं।  पत्नी ने पहले 1994 में मैजिस्ट्रेट कोर्ट में 500 रुपए के गुजारे भत्ते की रकम की मांग को लेकर आवेदन दायर किया था, लेकिन मैजिस्ट्रेट ने 1999 में पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश देने से इंकार कर दिया। क्योंकि वह अपनी शादी को साबित करने में नाकाम रही थी। इसके साथ ही गवाही के दौरान वह अपने ससुर का नाम व शादी के दौरान कितने फेरे लिए थे इसकी जानकारी नहीं दे पायी थी। मैजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश के खिलाफ पत्नी ने सत्र न्यायालय में अपील की। सत्र न्यायालय ने वर्ष 2001 में मैजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया और पति को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया।  सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में अपील की।

महिला ने गुजाराभत्ता के लिए  30 साल बाद किया आवेदन

न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर के सामने पति की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान पति की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि पत्नी ने घर छोड़ने के 30 साल बाद गुजाराभत्ता के लिए आवेदन किया है। इसके अलावा घर से निकालने के बाद पत्नी ने मेरे मुवक्किल के खिलाफ कोई शिकायत भी नहीं दर्ज कराई थी। साथ ही वह अपने विवाह को साबित नहीं कर पायी है। इसके विपरीत पत्नी के वकील ने सबूतों के साथ विवाह को साबित किया और कहा कि घर से निकाले जाने के बाद मेरे मुवक्किल के पिता जीवित थे इसलिए उसने गुजारे भत्ते के लिए आवेदन नहीं किया।

साबित नहीं कर पाई थी अपनी शादी

अब उसके पिता नहीं है, जिसके चलते उसे अपना गुजर-बसर कर पाने में मुश्किल हो रही है। उन्होंने अदालत को बताया कि मेरे मुवक्किल के पति ने दूसरी शादी भी कर ली है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि न्यायाधीश को इस तरह के मामले में संवेदनशील रुख अपनाना चाहिए। याचिकाकर्ता का विवाह 1964 के दौर में हुआ है वह बहुत शिक्षित भी नहीं है। इसलिए मैजिस्ट्रेट को ग्रामीण इलाके के परिवेश को देखकर तकनीक की बजाय व्यवहारिक रुख अपनाना चाहिए। वैसे भी गुजारे भत्ते से जुड़े मामले में शादी को साबित करना बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। यह कहते हुए न्यायमूर्ति ने पुणे सत्र न्यायालय के आदेश को यथावत रखा और पति को गुजारा भत्ते की रकम का भुगतान करने का निर्देश दिया। 

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