छत्तीसगढ़ का 76 प्रतिशत आरक्षण राजभवन में फंसा, सरकार की बढ़ी चिंता

रायपुर छत्तीसगढ़ का 76 प्रतिशत आरक्षण राजभवन में फंसा, सरकार की बढ़ी चिंता

Sanjana Namdev
Update: 2022-12-08 09:47 GMT
छत्तीसगढ़ का 76 प्रतिशत आरक्षण राजभवन में फंसा, सरकार की बढ़ी चिंता

डिजिटल डेस्क, रायपुर।  76 प्रतिशत आरक्षण संबंधी दोनों नये विधेयक राजभवन में फंस गये हैं। इसकी वजह से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्गों और गरीबों के लिए बनाए आरक्षण के नये प्रावधान अभी लागू नहीं हो पाएंगे। इससे सरकार की चिंता बढ़ गई है। संसदीय कार्य मंत्री रविंद्र चौबे ने इस पर चिंता जताते हुए कहा, यह विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुआ था। महामहिम ने स्वयं कहा था कि विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण के पक्ष में कानून बनना चाहिए। उन्होंने स्टेटमेंट भी दिया था कि जैसे ही बिल उनके पास आएगा वे तत्काल अनुमति जारी कर देंगी लेकिन महामहिम के दफ्तर में केवल लीगल ओपिनियन में इतना समय लग जाना लोगों को चिंतित करता है।

सूत्रों के मुताबिक पांच दिन से राज्यपाल अनुसूईया उइके के पास फाइल पड़ी है लेकिन उन्होंने उस पर दस्तखत नहीं किए हैं।  सोमवार और मंगलवर को दिन भर राजभवन के कानूनी सलाहकारों और अफसरों की टीम विधेयक की समीक्षा में लगी रही। बुधवार को भी यही क्रम चला। अब राज्यपाल राज्यपाल इस मामले में वरिष्ठ अफसरों से चर्चा करना चाहती हैं। वे यह देखना चाहती हैं कि इस कानून को कोई अदालतों में चुनौती दे तो उससे निपटने के लिए सरकार के पास क्या इंतजाम हैं। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 19 सितम्बर को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में फैसला सुनाते ही छत्तीसगढ़ में चल रहे 58 प्रतिशत  आरक्षण को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया था। उसके बाद से छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई आरक्षण रोस्टर नहीं बचा। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए सरकार ने एक व दो दिसम्बर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण संबंधी दो संशोधन विधेयक पारित कराये, इसमें आरक्षण को बढ़ाकर 76 प्रतिशत कर दिया गया था।


लागू होने के बाद कानूनी पचड़े में फंसने की संभावना प्रबल
संविधानिक मामलों के विशेषज्ञ बी.के. मनीष के अनुसार, राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन जाएगा और राजपत्र में प्रकाशित होने के साथ ही सरकार इसे लागू करने की स्थिति में होगी। लेकिन इस कानून में कुछ तकनीकी अड़चने हैं जो इसे लंबी कानूनी लड़ाई में फंसा सकती हैं। सबसे पहली बात यह कि अधिनियमों में सिर्फ जनसंख्या के आधार पर आरक्षण तय किया गया है। यह 1992 में आए मंडल फैसले और 2022 में ही आए पीएमके (तमिलनाडु

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